Sunday, May 15, 2011

अहसास








मन के सूने गलियारों में किसीकी

जानी पहचानी परछाइयाँ टहलती हैं ,

दिल की सख्त पथरीली ज़मीन पर

दबे पाँव बहुत धीरे-धीरे चलती हैं !

पलकों के बन्द दरवाज़ों के पीछे

किसीके अंदर होने का अहसास मिलता है ,

कनखियों की संधों से अश्कों की झील में

किसीका अक्स बहुत हौले-हौले हिलता है !

हृदय के गहरे गह्वर से कोई पुकार

कंठ तक आकर घुट जाती है ,

कस कर भिंचे होंठों की कंपकंपाहट

बिन बोले ही बहुत कुछ कह जाती है !

किसीका ज़िक्र भर क्यों मन के

शांत सागर में सौ तूफ़ान उठा जाता है ,

मैं चाहूँ या ना चाहूँ क्यों मेरे स्वत्व को

नित नयी कसौटियों पर कस जाता है !



साधना वैद

12 comments:

  1. कनखियों की संधों से अश्कों की झील में
    किसीका अक्स बहुत हौले-हौले हिलता है !

    बड़ी ही मासूम सी अभिव्यक्ति....मन के अहसास सुन्दर शब्दों का साथ पा...मुखर हो उठे हैं.

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  2. ये एहसास ही है जो आहट सुना जाता है ...अश्कों की झील का बिम्ब बहुत सुन्दर लगा ..खुद को नित नयी कसौटी पर कसना .... शायद यही ज़िंदगी है ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  3. मैं चाहूँ या ना चाहूँ क्यों मेरे स्वत्व को नित नयी कसौटियों पर कस जाता है !.....yahi to vastvik prem hai.......bahut achche bhaav....

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  4. "मैं चाहूँ या ना चाहूँ -----नित्य नयी कसोटीयों पर कस जाता है "
    अच्छी पंक्तियाँ |सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति |
    बधाई

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  5. सुंदर कविता बधाई साधना जी |

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  6. मैं चाहूँ या ना चाहूँ -----नित्य नयी कसोटीयों पर कस जाता है "

    बहुत खूब कहा है आपने इन पंक्तियों में .. ।

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  7. एहसासों को सार्थक और सुन्दर अभिव्यक्ति देती रचना.....

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  8. किसीका ज़िक्र भर क्यों मन के

    शांत सागर में सौ तूफ़ान उठा जाता है ,

    मैं चाहूँ या ना चाहूँ क्यों मेरे स्वत्व को

    नित नयी कसौटियों पर कस जाता है !
    ek khaas abhivyakti mann ki

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  9. पलकों के बन्द दरवाज़ों के पीछे
    किसीके अंदर होने का अहसास मिलता है ,
    कनखियों की संधों से अश्कों की झील में
    किसीका अक्स बहुत हौले-हौले हिलता है !

    ऐसी अभिव्यक्ति जहाँ बस खुद जा कर ही अनुभव किया जा सकता है...!!

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  10. स्मिताMay 18, 2011 at 11:28 AM

    अंतर्मन में निहित भावों की सुंदर अभिव्यंजना|

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