Saturday, July 9, 2011

मंदिर और उनके खजाने

मंदिरों से मिली धन दौलत को लेकर समाज में इन दिनों जो सुनामी आई हुई है वह निश्चित रूप से हर व्यक्ति की सोच को प्रभावित कर रही है ! कम से कम इस बात का तो संतोष होना ही चाहिये कि यह धन मंदिरों के कोषागारों में सुरक्षित है और अभी तक इसका कोई दुरुपयोग नहीं हुआ है ! यह संचित राशि उसी प्रकार की है जैसे गुल्लक में बच्चे थोड़ा थोड़ा धन इसलिए जमा करते हैं कि कभी काम आयेगा ! हम सब लोगों की इच्छा होती है कि कुछ धन इसलिए जमा करें कि आवश्यकता पड़ने पर हमारे आने वाली पीढ़ियों के काम यह आयेगा ! यह कोई भ्रष्टाचार के द्वारा, लूट या डकैती के द्वारा या गबन करके जमा किया हुआ धन नहीं है ! यह भोले भाले भक्तों की श्रद्धा, आस्था एवं समर्पण का प्रतिफल है !
आजकल इस धन के अधिग्रहण को लेकर बड़ी उथल पुथल मची हुई है ! इसे सरकार और प्रशासन के ऐसे मंत्रियों और अधिकारियों को, जो सौ रुपयों में से अस्सी रुपये अपनी जेब में डालते हैं, इस आशा से सौंप देना कि वे इसे समाज के कल्याण के कार्य में लगायेंगे नितांत मूर्खतापूर्ण कदम होगा ! मन्दिरों में संकलित एवं संग्रहित यह धन राशि इन मंदिरों के ट्रस्टियों की ईमानदारी एवं साफ़ नीयत की ओर संकेत करती है ! वरना इस दौलत के बारे में तो आम जनता को कोई जानकारी ही नहीं थी ! इसका इधर उधर हो जाना किसीको शायद पता भी नहीं चल पाता ! अनेकों ऐसे मंदिर भी हैं जिनके कोई ट्रस्ट ही नहीं हैं और वहाँ पर चढ़ा हुआ सारा चढावा उन मंदिरों के पुजारी और सेवादार आपस में बाँट लेते हैं ! ना तो मंदिरों का ही ठीक से रख रखाव होता है ना गरीबों को ही दान पुण्य होता है ! हाँ ऐसे मंदिरों के पण्डे पुजारी दिन दूनी रात चौगुनी अपनी संपत्ति का विस्तार करने में अवश्य लगे हुए हैं !
समाज हित में यही होगा कि जिन मंदिरों में अक्षुण्ण खजाने मिले हैं उनके ट्रस्टियों को ही इसे समाज कल्याण के लिये उपयुक्त योजनाएं बना कर निवेशित करने का अधिकार दिया जाना चाहिये ! इसके लिये समाज के हर वर्ग से और स्थान विशेष के प्रबुद्ध, निष्ठावान एवं समर्पित समाजसेवियों को जोड़ कर एक समिति का गठन किया जाये जो इस बात का सही आकलन कर सकें कि उस जगह के लोगों की क्या ज़रूरते एवं समस्याएं हैं और किस आवश्यकता की पूर्ति के लिये धन का प्रयोग होना चाहिये ! देश में जब इतना संकट है और आम आदमी मंहगाई की चक्की में पिस रहा है, सरकारी तंत्र उसे हर तरह से निचोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है तो उसीकी जेबों से निकला यह धन ऐसे आड़े वक्त में यदि उसे कुछ राहत दिला जाये तो उसमें हर्ज ही क्या है !
वैसे आप सभी से मात्र इतनी प्रार्थना है मंदिरों में भगवान की मूर्ति पर केवल फूल चढाएं पैसे नहीं ! भगवान आस्था और प्यार के भूखे हैं ! ना वे इस भोग को चखते हैं और ना ही यह धन उनके पास जाता है ! इसका फ़ायदा पण्डे पुजारी उठाते हैं ! मंदिरों के रख रखाव की जब आवश्यकता हो तब जनता से धन की माँग की जा सकती है ! और मुझे पूरा विश्वास है ईश्वर में आस्था रखने वाली हमारी जनता ऐसे समय में कभी भी अपना कदम पीछे नहीं हटायेगी !

साधना वैद

9 comments:

  1. सुन्दर और सार्थक विचार है आपके.
    यह वास्तव में प्रसंसनीय है इतने बड़े खजाने के साथ
    भी ट्रस्टीज ने कोई हेरा फेरी नहीं की और उसके केवल ट्रस्टीज ही बने रहें.काश! हमारे नेतागण/मंत्रिगण भी इससे कुछ सीख पाते.

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

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  2. सही कह रही हैं ...काश इस धन में बन्दर बाँट न हो ...सार्थक विचार

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  3. बहुत सार्थक आलेख ...अगर एक साधारण व्यक्ति में जागरूकता आ जाये तो हमारी बहुत समस्याएं हल हो सकतीं हैं ...

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  4. आप ने एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है| जो लिखा है सच ही लिखा है| विश्व में धर्म को ले कर परिपक्व सोच की जरूरत वाकई में है|

    बेहतर है मुक़ाबला करना

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  5. बीना शर्माJuly 9, 2011 at 6:34 PM

    आपका सोच प्रशंशनीय है भगवान हमारे धन के भूखे नहीं होते श्रद्धा के भूखे होते हैं ये तो हम मनुष्य ही है जो अपने हित और स्वार्थ के लिए धन चडाने का लोभ दिखाते हैं |
    मेरा भी मानना है कि इस धन में बन्दर बाँट न हो |

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  6. समाज हित में यही होगा कि जिन मंदिरों में अक्षुण्ण खजाने मिले हैं उनके ट्रस्टियों को ही इसे समाज कल्याण के लिये उपयुक्त योजनाएं बना कर निवेशित करने का अधिकार दिया जाना चाहिये ! इसके लिये समाज के हर वर्ग से और स्थान विशेष के प्रबुद्ध, निष्ठावान एवं समर्पित समाजसेवियों को जोड़ कर एक समिति का गठन किया जाये जो इस बात का सही आकलन कर सकें ...

    sadhna ji me apna comment dete hue aapse kshama chaahungi kyuki me aapke is vichar se sehmat nahi hun......ye sab karne se to fir vahi haalaat paida ho jayenge ki...ANDHA BAANTE REVRI, BAAR BAAR DE APNO KO. Ho sakta hai samaj me faile bhrashtachaar ki vajeh se aaj hamara vishwas daul raha hai aur kisi par bhi vishwas nahi kiya ja sakta so nahi lagta ki trustee bhi apni jimmedari imandari se nibha paye.

    is se behtar to yahi soch theek hai ki....

    मंदिरों में भगवान की मूर्ति पर केवल फूल चढाएं पैसे नहीं ! भगवान आस्था और प्यार के भूखे हैं ! ना वे इस भोग को चखते हैं और ना ही यह धन उनके पास जाता है !मंदिरों के रख रखाव की जब आवश्यकता हो तब जनता ने धन की माँग की जा सकती है ! और मुझे पूरा विश्वास है ईश्वर में आस्था रखने वाली हमारी जनता ऐसे समय में कभी भी अपना कदम पीछे नहीं हटायेगी !

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  7. समसामइक मुद्दे पर गहन विचार प्रस्तुत करता लेख | बधाई |
    आशा

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  8. मंदिर में भगवान् के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के अन्य उपायों पर भी सोचना होगा ...
    सार्थक आलेख !

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