Monday, September 12, 2011

क्षणिका













माना
कि अब तक राष्ट्र हित में
तुम सदा संलग्न थे ,
माना कि औरों की व्यथा से
तुम समूचे भग्न थे ,
फिर ये बताओ देश चिंता को
ग्रहण क्यों लग गया ,
जो था तुम्हारे आसरे वो
आम जन क्यों ठग गया !

साधना वैद

14 comments:

  1. जो था तुम्हारे आसरे वो
    आम जन क्यों ठग गया !

    हमारे अपने लालच के कारण .....!हमें उसकी अपेक्षा अपनी चिंता ज्यादा होती है इसलिए ...!

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  2. पहले आ. निर्मला दीदी, फिर आ. आशा दीदी और अब आप ने जिस जीवट भरी रचना धर्मिता का परिचय दिया है उस के लिए नमन

    "हरिगीतिका छन्द" के माध्यम से इस जबर्दस्त प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई

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  3. क्यों कि
    अब अपना हित सर्वोपरी हो गया
    राष्ट्र हित कहीं पीछे खिसक गया .

    सार्थक चिंतन

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  4. उम्दा सोच
    भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।

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  5. जबर्दस्त प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई|

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  6. बेहतरीन प्रस्तुती.....

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  7. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  8. बहुत सुन्दर लिखा है |बधाई
    आशा

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  9. aaj to gagar me sagar bhar diya.

    jahan bhi bharosa karo yahi milta hai.

    auro ki chinta bata khud ka dukh hara jata hai.

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  10. ‘आम जन क्यों ठग गया’...यही तो अनुत्तरित प्रश्न है। बहुत सुन्दर...आभार। आप इतना सुन्दर लिखती हैं और हम आपसे अभी तक दूर रहे क्यूँ? पता नहीं...पर इसका हमें खेद है

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  11. बहुत ही सार्थक प्रश्न है आपका.
    सोचने को विवश करता है.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    नई पोस्ट पर आपका इंतजार है.

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  12. आज ओना हित ही सबसे आगे रहता है ... और उसका चिंतन खत्म हो तो राष्ट्र हित की बात हो ... प्रभावी ...

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  13. सार्थक प्रश्न.....

    "जो था तुम्हारे आसरे वो
    आम जन क्यों ठग गया !"

    शब्दों का सुन्दर संयोजन ..

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