Wednesday, December 28, 2011

मोक्ष

कब तक तुझसे सवाल करेंगे

और कब तक तुझे

कटघरे में खड़ा करेंगे !

नहीं जानते तुझसे

क्या सुनने की

लालसा मन में

करवटें लेती रहती है !

ज़िंदगी ने जिस दहलीज तक

पहुँचा दिया है

वहाँ हर सवाल

गैर ज़रूरी हो जाता है

और हर जवाब बेमानी !

अब तो बस एक

कभी ना खत्म होने वाला

इंतज़ार है

यह भी नहीं पता

किसका और क्यों

और हैं मन के सन्नाटे में

यहाँ वहाँ

हर जगह फ़ैली

सैकड़ों अभिलाषाओं की

चिर निंद्रा में लीन

अनगिनत निष्प्राण लाशें

जिनके बीच मेरी

प्रेतात्मा अहर्निश

भटकती रहती है

उस मोक्ष की

कामना में

जिसे विधाता ने

ना जाने किसके लिये

आरक्षित कर

सात तालों में

छिपा लिया है !



साधना वैद

13 comments:

  1. मोक्ष की कामना में जिसे विधाता ने ना जाने किसके लिये आरक्षित कर सात तालों में छिपा लिया है !

    मोक्ष की कामना ...?

    आपकी प्रस्तुति सोचने पर मजबूर करती है.

    आनेवाले नववर्ष के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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  2. मोक्ष तो कभी कभी मृत्यु के बाद भी नहीं मिलता ..
    जब तक मन में किसी प्रकार की भी लालसा है तो मोक्ष कहाँ ?
    मोक्ष तो फिर सात तालों में ही बंद रह जाता है ..गहन चिंतन कर रची गयी रचना ..

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  3. man ke antrdwand se nikli bechaini ke tane bane bunti aur ant me moksh ki prapti k liye tadapte ehsaso ko gunti samvedansheel rachna.

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  4. बहुत उम्दा रचना बधाई स्वीकारें ...आप के ब्लॉग पर पली बार आना हुआ ,ख़ुशी हुई यहाँ आकर .....

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  5. अच्छी रचना के लिए बधाई |
    आशा

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  6. मोक्ष की कामना में भटकती है आत्मा पर मोक्ष है कहाँ, अगर है तो मिलता क्यों नहीं... एक अनबुझ पहेली है...
    गहन अनुभूति से भरी रचना... आभार

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  7. ईश्वर ने हमें निष्पाप पैदा किया है।
    ईश्वर का प्रेम हमारी आत्मा में रचा बसा हुआ है। यही वजह है कि ईश्वर, आत्मा और प्रेम यह तीनों शब्द दुनिया की हरेक भाषा में मिलते हैं।
    हमारी आत्मा में जो प्रेम है वह ईश्वर के प्रेम का रिफ़्लेक्शन मात्र है।
    वास्तव में ईश्वर हमसे प्रेम करता है इसीलिए हम उससे प्रेम करने पर मजबूर होते हैं।
    वह ईश्वर हमसे प्रेम करता है। इसीलिए उसने हमें निष्पाप पैदा किया है।
    उसने हमें किन्हीं पिछले जन्मों का दंड भुगतने के लिए पैदा नहीं किया है और न ही वह हमें 84 लाख योनियों में गाय, बंदर और सुअर आदि बनाकर पैदा करता है।
    आवागमन की कल्पना सबसे पहले छांदोग्य उपनिषद में पेश की गई थी। उससे पहले यह कल्पना भारतीय साहित्य में मौजूद नहीं थी।
    वेदों में पुनर्जन्म का वर्णन तो है लेकिन आवागमन का नहीं है। वेदों में पुनर्जन्म का वर्णन तो है लेकिन आवागमन का नहीं है। आवागमन का शब्द तक वेदों में नहीं है। जो शब्द वेदों में मौजूद ही नहीं है, वह एक पूरी अवधारणा बनकर भारतीय जनमानस में समा चुकी है केवल प्रचार के कारण।

    पुनर्जन्म परलोक में प्रलय के बाद होता है, इसी दुनिया में नहीं।
    पुनर्जन्म दो शब्दों का योग है
    पुनः और जन्म
    जिसका अर्थ है दोबारा जन्म
    दोबारा जन्म की बात हरेक धर्म-मत में मौजूद है।
    स्वर्ग-नरक की बात भी हरेक धर्म-मत में मौजूद है।
    पुनर्जन्म एक हक़ीक़त है जिसकी पुष्टि सारी दुनिया करती है और आवागमन एक कल्पना है जिसके बारे में उसे मानने वाले तक एकमत नहीं हैं। कोई कहता है कि मनुष्य की आत्मा पशु और वनस्पति दोनों में जाती है और कोई कहता है कि नहीं केवल मुनष्य योनि में ही जाती है।
    84 लाख योनियों में जन्म-मरण के चक्र से छुटकारे को मोक्ष कहा जाता है।
    ईश्वर ने यह चक्र बनाया ही नहीं है, सो मोक्ष तो वह दे चुका है,
    बस आपको इसका बोध हो जाए।
    बोध करना आपका काम है।
    अपना काम आपको करना है।
    आप अपना काम करके तो देखिए आपको कितनी शांति मिलेगी ?

    वह सबको बुलाता है ताकि वह हक़ीक़त का ज्ञान दे लेकिन केवल उसे शीश नवाने वाले और उसकी वाणी सुनने वाले कम ही हैं।
    जीवन की सफलता और जीवन में शांति हक़ीक़त जान लेने पर ही निर्भर है।
    शांति हमारी आत्मा का स्वभाव और हमारा धर्म है।
    शांति ईश्वर-अल्लाह के आज्ञापालन से आती है।
    नमाज़ इंसान को ईश्वर-अल्लाह का आज्ञाकारी बनाती है।
    नमाज़ इंसान को शांति देती है, जिसे इंसान तुरंत महसूस कर सकता है।
    जो चाहे इसे आज़मा सकता है और जब चाहे तब आज़मा सकता है।
    उस रब का दर सबके लिए सदा खुला हुआ है। जिसे शांति की तलाश है, वह चला आए अपने मालिक की तरफ़ और झुका दे ख़ुद को नमाज़ में।
    जो मस्जिद तक नहीं आ सकता, वह अपने घर में ही नमाज़ क़ायम करके आज़मा ले।
    पहले आज़मा लो और फिर विश्वास कर लो।
    पहले आज़मा लो और फिर विश्वास कर लो।

    स्वर्गिक शांति का ख़ज़ाना है नमाज़ How to perfect your prayers (video)

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  8. अन्तर्द्वन्द की वेदना का चित्रण सोचने को मजबूर करता है।

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  9. सोचने पर मजबूर हम सभी....

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  10. तुम्हारी रचना मोक्ष ब्लॉग वार्ता ४ पर भी है |
    आशा

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  11. आदरणीय मौसीजी ,सादर वन्दे सर्वप्रथम आपको "टूटते सितारों की उड़ान "के प्रकाशन की बधाई | अभी सिर्फ आपकी कवितायेँ ही पढ़ सकी हूँ | सभी रचनाएँ मन के बेहद करीब हैं| मुख्यत "तुम्हें आना ही होगा, एहसास, चूक,मौन " की पंक्तियाँ प्रभावशाली हैं |
    आपकी नई पोस्ट "मोक्ष" जीवन के सभी रहस्यों को आत्मसात कर रही है| आभार,ऐसी सार्थक रचना से परिचित करने हेतु | वैसे मेरा विषय विज्ञानं रहा है, अतः समीक्षा पक्ष मेरा उतना समर्थ नहीं है |

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  12. आदरणीय मौसीजी ,सादर वन्दे सर्वप्रथम आपको "टूटते सितारों की उड़ान "के प्रकाशन की बधाई | अभी सिर्फ आपकी कवितायेँ ही पढ़ सकी हूँ | सभी रचनाएँ मन के बेहद करीब हैं| मुख्यत "तुम्हें आना ही होगा, एहसास, चूक,मौन " की पंक्तियाँ प्रभावशाली हैं |
    आपकी नई पोस्ट "मोक्ष" जीवन के सभी रहस्यों को आत्मसात कर रही है| आभार,ऐसी सार्थक रचना से परिचित करने हेतु | वैसे मेरा विषय विज्ञानं रहा है, अतः समीक्षा पक्ष मेरा उतना समर्थ नहीं है |

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  13. आदरणीय साधना जी
    नमस्कार
    जब तक मन से लालसा ख़त्म नहीं होगी तो मोक्ष कहाँ होगा
    आपको "टूटते सितारों की उड़ान "के प्रकाशन की बधाई |

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