Thursday, August 16, 2012

सम्वेदना की नम धरा पर

 

 












एक रात 
अपने जीवन की
चिर पुरातन
स्मृति मंजूषा में संग्रहित
खट्टे मीठे अनुभवों के
ढेर सारे बीज 
मुझेअनायास ही 
मिल गये !
लेकिन अल्पज्ञ हूँ ना
नहीं जानती थी
कौन सा बीज
किस फूल का है !
सोचा इन्हें
अपने बागीचे में
बो ही दूँ
शेष जीवन तो
सौरभयुक्त हो जाये !
और फिर एक दिन
सम्वेदना की नम धरा पर
भावनाओं का खूब सारा
खाद पानी डाल
अपने सारे कौशल के साथ
मैंने इन्हें बो दिया
लेकिन इनमें फूल कम
और काँटे ज्यादह निकलेंगे
यह कहाँ जानती थी !
अब तो बस
यही एक अफ़सोस है
जिन अपनों को
फूलों की खुशबू से
सराबोर करने की चाह थी
उन्हीं की उँगलियाँ  
इन काँटों की चुभन से
हर रोज़
घायल हो रही हैं
और मैं निरुपाय
इस चुभन की पीर को  
रोक भी तो नहीं
पा रही हूँ !
  


साधना वैद

11 comments:

  1. जिन अपनों को
    फूलों की खुशबू से
    सराबोर करने की चाह थी
    उन्हीं की उँगलियाँ
    इन काँटों की चुभन से
    हर रोज़
    घायल हो रही हैं
    भावमय करते शब्‍द मन को छूती हुई सी यह पोस्‍ट ... आभार

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  2. कांटे अधिक न हों तो गुलाब की क्या अहमियत ....
    गुलाब की नियति कमल की नियति हरसिंगार की नियति कौन नहीं जानता ! पर इसी में उनके अर्थ हैं , सौंदर्य है

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  3. हर रोज़
    घायल हो रही हैं
    और मैं निरुपाय
    इस चुभन की पीर को
    रोक भी तो नहीं
    पा रही हूँ !
    त्रासदी झेलना हम जैसो को ही क्यों होता है .... ?

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  4. "और मै निरुपाय ------हम जैसों को ही क्यूं होता है "
    बहुत सुन्दर भाव समेटे पंक्ति |अच्छी और ग्भाव्पूर्ण प्रस्तुति |

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  5. गहरे भाव लिए अभिव्यक्ति..

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  6. संवेदनाओं से भरपूर आपका प्रयास था .... फूल कितने ही हों कम लगते हैं ....और कांटे ज्यादा ...रचना पढ़ कर बस एक ही शब्द ...वाह

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  7. lekhak ki soch kahan kahan tak pahunch jati hai aur kaise kaise shbd jaal se sunder kavita ka nirmaan kar dalte hain lekhak apni lekhni se....ye hatprabh kar deti hai.

    sateek shabdon ke chayan se ehsason ko bayaan kiya hai.

    koshish karna insan ka karam hai so aapne bhi kiya...lekin vo kahte hai na jaisa bovoge waisa hi paoge...afsos ke samvedna ki dhara par kaanto k beej jyada the.

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