Saturday, June 15, 2013

बरगद से बाबूजी






आज भी 

तपती धूप में जब

सिर पर बादल की छाँह

आ जाती है तो

उन बादलों के बीच मुझे

आपका ही आश्वस्त करता सा

मुस्कुराता चेहरा

क्यों दिखाई देता है बाबूजी ?

आज भी 

दहकती रेत पर जब

मीलों चलने के बाद

घने बरगद का शीतल साया

मिल जाता है तो

उस बरगद की स्निग्ध शाखों

के स्पर्श में मुझे आपकी

उँगलियों का स्नेहिल स्पर्श

क्यों महसूस होता है बाबूजी ?

आज भी


संघर्षपूर्ण जीवन की

मुश्किल घड़ियों में हर कठिन

चुनौती का सामना करने के लिये

मुझे आपके हौसले और हिम्मत

देने वाले शब्दों की ज़रूरत

क्यों होती है बाबूजी ?

भले ही मैं जीवन के किसी भी

मुकाम पर पहुँच जाऊँ,

भले ही मैं अपने बच्चों का 

संबल और सहारा बन जाऊँ 

भले ही घर में सब हर बात पर

मार्गदर्शन के लिये  

मुझ पर निर्भर हो जायें

लेकिन यह भी एक

ध्रुव सत्य है कि

आज भी

मेरे मन की यह

नन्हीं सी बच्ची

अपनी हर समस्या के

समाधान के लिये

आप पर ही आश्रित है बाबूजी

और हर मुश्किल घड़ी में

आज भी उसे

दीवार पर फ्रेम में जड़ी

आपकी तस्वीर से ही

सारी हिम्मत और प्रेरणा

मिलती है !

बाबूजी



साधना वैद





फादर्स डे पर एक श्रद्धांजलि अपने बाबूजी को

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