Thursday, March 13, 2014

एक पाती श्याम के नाम .....


मीरा के साँवरे,

राधा के श्याम ,

यह तो बता दो

कौन हो तुम मेरे 

पुकारूँ किस नाम से

ढूँढूँ किस धाम !

सदियों से सहेजे बैठी हूँ

थाल भर अबीर गुलाल 

कलसी भर रंग ,

कभी तो आयेंगे

मेरे कुँवर कन्हैया

खेलूँगी मैं भी होली

जी भर के

उनके संग !

युग-युग से मन में

पाल रखी है जो साध ,

उसे पूरी करने  

अब तो आ जाओ

मेरे मुरलीधर ,

खेलो ऐसा फाग कि

जन्म जन्मांतर के लिये

सराबोर हो जायें

तुम्हारे प्रेम के

पक्के रंग में

मेरी आत्मा

मेरा उर अंतर !

रंगरसिया

मेरी प्रीत और भक्ति

के रंग में तुम भी

कुछ इस तरह

तरबतर हो जाओ

कि छुड़ा न सके

किसी भी जमुना

किसी भी गंगा का जल

मेरा लगाया हुआ रंग

करके सारे जतन ,

और मेरी प्रीत के पक्के

रंग गुलाल से ही

युग युगान्तर तक

दमकता रहे तुम्हारा

साँवला सलोना

विहँसता वदन !

अविलम्ब आ जाओ

मेरे श्याम साँवरे

जो तुम न आओगे  

मेरी धवल चूनर ऐसे ही

कोरी रह जायेगी ,

मेरी अनन्य भक्ति

और अनुराग की

यह अनुपम कथा

ऐसे ही अनसुनी

रह जायेगी !

फिर तुम्हारी

भक्त वत्सल छवि पर भी

कुछ तो लांछन

अवश्य ही लगेगा

है ना ,

तो अब और देर ना करो

इस बार की होली को

पावन करने के लिये

शीघ्र ही आ जाओ

मेरे मनमोहना !

और सुनो  

मेरे घनश्याम

हाथ के गुलाल में

थोड़ी सी अपनी

चरण रज मिला कर

मेरे मस्तक पर मल देना

जिससे यह होली

मेरे लिये भवतारिणी

बन जाये

और जनम जनम के लिये

तुम्हारे सान्निध्य में

स्थान पाकर मुझे
  
इस जीवन में
 
मोक्ष मिल जाये ! 



साधना वैद 


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