Thursday, July 24, 2014

पिघलती पीर

टूट के बरसो मेघा
बहा ले चलो
मुझे अपने संग
जहाँ मेरे पिया !

कब तक बाट निहारूँ
मेघ भी बरस कर
चुक गये
तुम न आये !

पीर पिघलती है
बादलों से बारिश बन
भिगोती है तन मन
जलाती है जीवन !

घनघोर वर्षा में
दहकता है मन
बिजली की कड़क सुन
दहलता है मन !

आसमान में
फूटता है ज्वालामुखी
उड़ती हैं चिन्गारियाँ
उमड़ता है लावा
धरा पर
लहलहाती है फसल !





साधना वैद

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