Monday, January 5, 2015

ठण्ड की रात



ठण्ड की रात
भारी अलाव पर
छाया कोहरा !

सीली लकड़ी
बुझता सा अलाव
जला नसीब !

बर्फ सी रात
फुटपाथ की शैया
मुश्किल जीना !

बर्फीली हवा 
बदन चीर जाये
फटा कम्बल !

पक्के मकान
मुलायम रजाई
पूस की रात !

दीन झोंपड़ी
जीर्ण शीर्ण बिस्तर
कटे न रात !                                                        
 
छाया कोहरा
चाँद तारे समाये
नीली झील में !
 
चाँद ने पूछा
कौन उघडा पड़ा
सर्द रात में
बोल पड़े सितारे
एक धरतीपुत्र !

करे लड़ाई
सूरज धूप से
छाया कोहरा !
घर में घुसा रवि
छिपा कर चेहरा !

पूस की रात
‘हल्कू’ की याद आई
मन पसीजा !

आज भी ‘हल्कू’
बिताते सड़क पर
ठण्ड की रात
कुछ भी न बदला
स्वतन्त्रता के बाद !

साधना वैद

No comments:

Post a Comment