कान तरसते रह गये, बादरवा  का शोर 
ना बरखा ना बीजुरी, कैसे नाचे मोर ! 
शीतल जल के परस बिन, मुरझाए सब फूल 
कोयल बैठी अनमनी, गयी कुहुकना भूल ! 
बेटा बेटी में फरक, जाहिल की पहचान 
मन की आँखें खोलिये, बेटी गुण का खान ! 
पढ़ी लिखी लड़की बने,  पीहर का अभिमान
उसके संयम से बढ़े, दोनों कुल का मान ! 
जितना साधें टूटते, रिश्ते बड़े अजीब 
बिन कोशिश बँध जाँय ये, जिनके बड़े नसीब ! 
जिसने जीवन भर किया, रिश्तों का सम्मान
पूँजी पाई प्यार की, बना वही धनवान ! 
ब्लॉग सभी सूने पड़े, कविगण हुए हताश
जकड़ रहा हर एक को, 'फेस भूख' का पाश ! 
दीपक ले कवि हैं खड़े, स्वागत को तैयार 
शायद कोई ब्लॉग पर, आ जाये इस बार ! 
साधना वैद 

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