Sunday, September 25, 2016

पलायन का दर्द



छुड़ाए गाँव
नौकरी की तलाश
चलो शहर

पेट की भूख
उड़ा कर ले चली
घर से दूर

छूटे माँ बाप
छूटा घर आँगन
रिक्त हृदय

बड़ा शहर
अजनबी चेहरे
डरा ग्रामीण

आये शहर
बना लिया है घर
फुटपाथ पे

ज़मीं का फर्श
छत है आसमां की
पर्दा हवा का

अमीर लोग
शोषण ग़रीब का
भोला गंवई

न पाया कुछ
न खोने को है कुछ
काहे का डर

खाली है जेब
खाली दिल दिमाग
खाली मकान

बोझ उठाते
मेहनत करते
दिन बीतते 

 रात दिन की
  जी तोड़ मेहनत
 थोड़ा सा दाम
  
जीना हराम 
 ज़िल्लत की ज़िंदगी

जैसे गुलाम

याद आता है
घर खेत पोखर
अपना गाँव

छोटा सा गाँव
गिनी चुनी गलियाँ
अपने लोग

पराया देश
अनजान सड़कें
बेगाने लोग

तेरा आसरा
लगा दे नैया पार
कृपानिधान 



साधना वैद

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