Thursday, October 5, 2017

थकन



बहुत थक गयी हूँ
मेरे जीवन साथी !
जीवन के इस जूए में
जिस दिन से मुझे जोता गया है
एक पल के लिए भी
गर्दन बाहर निकाल लेने का
मौक़ा ही कहाँ मिला है मुझे !
चलती जा रही हूँ  
चलती जा रही हूँ
बस चलती ही जा रही हूँ
निरंतर, अहर्निश, अनवरत !
कन्धों पर गृहस्थी का जो बोझ
तुमने डाल दिया है उसे तो
जीवन की अंतिम साँस तक
ढोना ही होगा मुझे !
आरम्भ में चाल में जोश था,
उत्साह था, चुनौती थी,
गति थी, संकल्प था, दृढ़ता थी !
लेकिन अब चाल थमने लगी है
पैर थक कर चूर हो गए हैं
जोश, उत्साह, गति सब
तिरोहित हो चुके हैं !
बस अब चल रही हूँ
क्योंकि चलते रहना
एक आदत सी बन गयी है
सो चले जा रही हूँ
चलती ही जा रही हूँ
लेकिन उम्र के इस मुकाम पर
कुछ विश्राम चाहती हूँ
कुछ देर आँखों को मूँद
ग़हरी नींद में सोना चाहती हूँ
क्योंकि पूरी तरह से चूर होकर
तन और मन दोनों ही
इतने निढाल हो चुके हैं कि
अब जीना भी बेमानी सा
लगने लगा है और चलना भी
नितांत असंभव हो गया है !


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद 

No comments:

Post a Comment