Saturday, November 4, 2017

व्यामोह




यह कैसी नीरसता है
जैसे अब किसी भी बात में
ज़रा सी भी रूचि नहीं रही
पहले छोटी-छोटी चीज़ें भी
कितना खुश कर जाती थीं
मोगरे या सेवंती के फूलों का
छोटा सा गजरा,
काँच के मोतियों की सादी सी माला,
एक मीठा सा गीत,
एक छोटी सी कहानी,
कल कल झर झर बहता झरना,
गगन में उन्मुक्त उमड़ते घुमड़ते
बेफिक्र काले ऊदे बादल,
खूब ऊँचाई पर आसमान में लहराते
दिल के आकार के लाल नीले गुब्बारे,
पेंच लड़ाती रंग बिरंगी पतंगें,
झुण्ड बना कर दूर क्षितिज तक
उड़ान भरते चहचहाते पंछी !
नज़रें इन्हें देखते थकती न थीं
और मन कभी भूले से भी
मुरझाता न था !
अब जैसे सब कुछ
बेमानी सा हो गया है
न कोई भाव जागता है
न कोई खुशी ही मिलती है
ना ही कुछ याद आता है
न ही मन इनमें रमता है !
यह विरक्ति है या व्यामोह
कौन बताये !

साधना वैद



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