Sunday, December 30, 2018

आशियाना




आओ देखो
ढूँढ लिया है मैंने
हम दोनों के लिये
एक छोटा सा आशियाना
चलो इस घर में आकर रहें
सारी दुनियावी ज़हमतों से दूर
सारी दुनियावी रहमतों से दूर !
प्रेम को ओढें
प्रेम को बिछाएं
प्रेम को पियें
प्रेम को ही जियें
ना कोई हमसे मिलने आ सके
ना हम किसीसे मिलने जायें
दिन में लहरों को गिनें
रात में तारों को
दिन में पंछियों का गान सुनें
रात में झींगुरों का !
चलो न !
बहुत सुन्दर है यह मकान
हम दोनों मिल कर इसे घर बना लें
अपने ख़्वाबों की हसीं दुनिया बसा लें !


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद   
    

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 02 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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