Thursday, February 21, 2019

बेकरारी का आलम है






शाम उदास है
हवाएं गुमसुम हैं
हर सूँ धुँधलका सा छाया है
फलक में गिने चुने तारे हैं
चाँद भी आज कितना फीका
कितना मद्धम है
शायद इसलिए कि
न तुम आये हो
ना तुम्हारे आने का
कोई संकेत ही मिला है
दिल बेकरार है
साँसें घुट रही हैं
मन में दुश्चिंताओं के अम्बार हैं !
अपने आने का
कोई तो संदेशा भेजो
कि बेचैन दिल को
थोड़ा सा तो करार आ जाए
तुम्हारे आने के समाचार से
आँखों में चमक आ जाए
चहरे पर नूर छा जाए
और होंठों पर चाहे हल्की ही सही
एक तो मुस्कान आ जाए !
ज़माने बीत गए हैं
इस बेकरारी के आलम को जीते हुए
साँस रोक कर सम्पूर्ण एकाग्रता से
तुम्हारे क़दमों की आहट को
सुनना चाहती हूँ
फूलों के पराग सी
तुम्हारी आवाज़ की मधुरिमा को
बूँद-बूँद पीना चाहती हूँ !
तुम सामने न आना चाहो
तो भी कोई बात नहीं !
मैं तुम्हारे अक्स को
शीशे में देख कर ही
खुश हो जाऊँगी !
या फिर झील के जल में
तुम्हारा प्रतिबिम्ब देख कर ही
अपने मन को समझा लूँगी !  
बस तुम एक बार आ जाओ
मन की बेकली
किसी तरह तो शांत हो
बेकरार दिल को  
किसी तरह तो करार आये !



साधना वैद 


11 comments:

  1. सुन्दर रचना..
    सादर...

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  2. हार्दिक धन्यवाद दिग्विजय जी ! आभार आपका !

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  3. अहसासो को बहुत ही संजीदगी से पिरोया है

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  4. मन की बेकली
    किसी तरह तो शांत हो
    बेकरार दिल को
    किसी तरह तो करार आये !

    विकल हृदय एवं मनोभाव को मानो शब्दचित्र के माध्यम से जीवंत कर दिया गया है । प्रणाम

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-02-2019) को "करना सही इलाज" (चर्चा अंक-3256) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  7. हृदय से आभार आपका पथिक जी !

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  8. हार्दिक धन्यवाद संजय !

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  9. आशालता सक्सेनाFebruary 23, 2019 at 9:09 AM

    सुप्रभात
    शानदार अभिव्यक्ति |

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  10. बहुत सुन्दर रचना...

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  11. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी!आभार आपका!

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