Friday, May 31, 2019

परास्त रवि



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(१)
आततायी सूर्य का, यह अनचीन्हा रूप
लज्जित भिक्षुक सा खड़ा, क्षितिज किनारे भूप !
(२)
बाँध धूप की पोटली, काँधे पर धर मौन 
क्षुब्ध मना रक्ताभ मुख, चला जा रहा कौन !
(३)
बुन कर दिनकर थक गया, धूप छाँह का जाल
साँझ हुई करघा उठा, घर को चला निढाल !
(४)
करना पड़ता सूर्य को, सदा अहर्निश काम 
देश-देश जलता फिरे, बिना किये विश्राम !
(५)
ढूँढ रहा रवि प्रियतमा, गाँव, शहर, वन प्रांत
लौट चला थक हार कर, श्रांत, क्लांत, विभ्रांत !  
(६)
आँखमिचौली खेलता, दिनकर दिन भर साथ
परछाईं भी शाम को, चली छुड़ा कर हाथ !



साधना वैद 



15 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  3. सूरज, धूप और रौशनी से बुने सुंदर दोहे

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार जून 01, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! आभार आपका !

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  6. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

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  7. बहुत खूबसूरत दोहे..वाह 👌
    बिंब तो अति मोहक बन पड़े है..अति उत्तम।

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  8. हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! आभार आपका !

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  9. बहुत सुन्दर रचना साधना जी...बधाई आपको 🌹

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  10. हार्दिक धन्यवाद उषा जी ! मेरी पोस्ट आपको मेरे ब्लॉग तक खींच लाई मन मुदित हुआ ! स्वागत है ! बहुत-बहुत आभार आपका !

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  11. ढूँढ रहा रवि प्रियतमा, गाँव, शहर, वन प्रांत
    लौट चला थक हार कर, श्रांत, क्लांत, विभ्रांत
    बहुत सुंदर रचना ,सादर नमस्कार दी

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  12. बहुत सुंदर दोहें..

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  13. हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! आभार आपका !

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  14. हार्दिक धन्यवाद पम्मी जी ! आभार आपका !

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