कितनी शिद्दत के साथ था मुझे तुम्हारा इंतज़ार ! जेठ अषाढ़ की विकल करती मरणान्तक गर्मी से एक तुम ही राहत दिला सकोगी यह विश्वास था मुझे ! खिड़की के पास खड़े होकर बाहर आसमान से उतरती रिमझिम बारिश को देखना कितना भला लगता है ! दरवाजे से हाथ बढ़ा कर हथेलियों पर बारिश की मोटी-मोटी मोती सी बूँदों को समेटना कितना सुहाना लगता है ! मन प्राण को आल्हादित कर देने वाली मिट्टी की सोंधी सुगंध को गहरी साँस के साथ मन प्राण में भर लेना कितना अच्छा लगता है ! लेकिन तुम अकेली क्यों न आईं बारिश ! अपने साथ मुसीबतों के इतने सारे ये पहाड़ क्यों बहा कर ले आईं ?
मुझे बारिश घर के बाहर ही अच्छी लगती है लेकिन तुम तो मुझे घर के हर कमरे में उपकृत करने लगीं ! मैंने ऐसा तो नहीं चाहा था ! हर कमरे की छत टपक रही है ! घर के सारे बाल्टी, मग, जग, लोटे, पतीले, भगौने कमरों में जगह-जगह टपकती छत के नीचे रखने पड़े हैं ! सुरक्षित कोने ढूँढ कर कमरों के सामान को तराऊपर गड्डी बना कर समेट दिया गया है ! खिड़की दरवाजों के पास से सामान हटा कर कमरे के बीच में सरका कर रखना पड़ा है क्योंकि बारिश की बौछार से सारा सामान भीग जाता है ! लेकिन अब सब सोयें तो कैसे ! ज़मीन पर तो सोना भी मुहाल है क्योंकि बाहर का पानी कब कमरों में घुस आयेगा कहना मुश्किल है ! सड़कों के गड्ढे पानी भरा होने के कारण ठीक से नज़र नहीं आते तो रोज़ ही कोई न कोई गिर कर और कीचड़ में सन पुत कर घर में आता है ! धूप ना निकलने की वजह से रूमाल भी तीन दिन तक नहीं सूखते ! घर की हर कुर्सी मेज़ स्टूल और अस्थाई बँधी रस्सियों पर पंखों के नीचे कपड़े सुखाने पड़ते हैं खास तौर पर मोटी-मोटी पेंट्स और जींस और बच्चों के यूनीफॉर्म के कपड़े ! बारिश के दिनों में घर घर जैसा नहीं लगता युद्ध का मैदान लगता है ! ऐसे में कोई मेहमान आ जाये तब तो फिर कहना ही क्या ! बच्चों के पी टी शूज़ और सफ़ेद मोज़े रोज़ कीचड़ में सन जाते हैं जिन्हें रोज़ धोना और समय से सुखाना बहुत मुश्किल हो जाता है ! यूनीफॉर्म तो लगभग हर दिन बच्चे सीली-सीली सी ही पहन कर स्कूल जाते हैं ! इतनी सारी मुसीबतों के साथ बारिश की रिमझिम फुहार देख मन में कविता नहीं उमड़ती ! उमड़ती है तो बस अदम्य चिढ़, खीझ, झुँझलाहट और वितृष्णा !
घर के बाहर कॉलोनी में भी जगह-जगह गन्दगी के अम्बार लग जाते हैं क्योंकि वैसे ही सारे साल कोई सफाई कर्मचारी नियमित रूप से काम करने नहीं आता फिर बरसात के दिनों में काम पर ना आना तो जैसे उनका बुनियादी अधिकार ही बन जाता है ! नालियाँ सफाई के अभाव में उफनने लगती हैं जो बदबू और बीमारी दोनों ही फैलाने के लिये ज़िम्मेदार बन जाती हैं ! गन्दगी के अलावा बरसात के साथ तमाम सारे कीड़े मकोड़े आक्रमण सा कर देते हैं ! शाम को बिजली जलते ही तमाम पतंगों की फ़ौज आ जाती है ! उनसे बचा कर खाना बनाना और खिलाना दोनों ही काम चुनौती से बन जाते हैं ! उन कीड़ों की दावत उड़ाने के लिए घर की दीवारों पर छिपकलियों में घमासान छिड़ जाता है ! हालत यह हो जाती है कि ना तो घर में अच्छा लगता है ना ही बाहर ! घर से बाहर निकलना तो और भी दूभर हो जाता है ! सड़कों की दुर्दशा के चलते फल सब्ज़ी वालों तक ने कॉलोनी में आना बंद कर दिया है ! अब एक मुसीबत यह और कि हर रोज़ बाहर बाज़ार जाकर सब्ज़ी भी लानी पड़ती है ! कभी बारिश में शॉपिंग का मज़ा उठाया है आपने ? समझ ही नहीं आता कि छाता सम्हालें या सामान के पैकिट्स या पानी में भीगती साड़ी !
प्यारी सुहानी बारिश, मैंने तो तुम्हें अकेले आने का न्योता दिया था ! तुम इन सब मुसीबतों को अपने साथ क्यों ले आईं ! बारिश का मज़ा तो सिर्फ वे ही ले पाते हैं जो किलों की तरह मजबूत वाटरप्रूफ घरों में रहते हैं और जब घर से बाहर निकलते हैं तो कार से नीचे पैर रखने की उन्हें ज़रूरत ही नहीं होती ! या फिर बारिश का आनंद वे उठाते हैं जिन्हें ना तो कपड़े भीगने की चिंता होती है ना ही सामान की हिफाज़त और खरीदारी की ! घर के नाम पर उनके पास सिर्फ ज़मीन का फर्श होता है और आसमान की छत ! वे ही इस मौसम का भरपूर मज़ा उठाते हैं और बारिश की हर बौछार के साथ उन्हीं के गले से निकले सुरीले तराने फिज़ाओं में गूँजते सुनाई देते हैं !
साधना वैद
हा हा हा
ReplyDeleteबारिश पूर्व मेंटेनेंस करवा लेते गाँव-खेड़े में
कहते हैं..
आग पर पानी ने काबू पा लिया है
पर पानी पर कोई नहीं पा सका अभी तक
सादर नमन
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-06-2019) को "बाँट रहे ताबीज" (चर्चा अंक- 3380) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बारिश के मज़े हैं ये ! सारा शायराना मूड चौपट कर देती है अपने एक ही वार में !
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteवाह ! रोचक पोस्ट
ReplyDeleteरोचक लेखन!!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteस्वागत है समीर जी ! हृदय से आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति साधना जी
ReplyDeleteघर के बाहर बारिश का आनंद उठाने के लिए ज़रूरी है कि अपने साथ, एक ही छाते में, कोई अपना प्यारा हो, एक भुट्टे वाला और एक चाय वाला पास में हो और बैकग्राउंड में - 'प्यार हुआ इक़रार हुआ' गीत बज रहा हो.
ReplyDeleteवाह!,लाजवाब!!साधना जी ।
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब आदरणीय साधना जी | सोचा ना था की बारिश जो दुर्गति करती है उस पर इतना सुसुचिपूर्ण लेख पढने को मिलेगा | बहुत बहुत आभार |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteशानदार प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से धन्यवाद गोपेश जी ! बाहर की बारिश का बड़ा ही मनोहर दृश्य प्रस्तुत कर दिया आपने ! यह त्रासदी घर के अन्दर की बारिश की है ! हा हा हा !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शुभा जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी ! सच में यदि समय रहते उचित व्यवस्था न की जाए तो यह बड़े इंतज़ार के बाद आई हुई पहली बारिश कुछ इस तरह से नाकों चने चबवा देती है कि लोग त्राहि माम कर उठें !
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