Sunday, August 4, 2019

कोशिश




एकदम शुष्क होते जा रहे
अपने वीरान से जीवन में
थोड़ी सी नमी,
थोड़ी सी स्निग्धता,
थोड़ी सी तरलता तलाशने की
पुरज़ोर कोशिश कर रही हूँ,
मैं तुम्हारी बेरुखी,
तुम्हारी बेमुरव्वती,
तुम्हारी बेदिली की
सूखी बेजान डालियों को थाम
तुम्हारी जड़ों तक पहुँचने की
एक निरर्थक कवायद कर रही हूँ !



साधना वैद



22 comments:

  1. अच्छा लिखा है आपने। जिंदगी कुछ ऐसी सी हो गई आजकल लोगो की। बेरूखी, बेरौनक सी

    ReplyDelete
  2. हार्दिक धन्यवाद रोहित जी ! स्वागत है आपका मेरे इस ब्लॉग पर ! दिल से आभार !

    ReplyDelete
  3. थोड़ी सी तरलता तलाशने की
    पुरज़ोर कोशिश कर रही हूँ,
    व्वाहहहह...
    सादर नमन..

    ReplyDelete
  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-08-2019) को "मेरा वजूद ही मेरी पहचान है" (चर्चा अंक- 3419) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नये भारत का उदय - अनुच्छेद 370 और 35A खत्म - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    ReplyDelete
  6. ये तो किसी की आत्मा बनना होगा. और इससे बेहतर कोई साथी नहीं.
    ये तो वो है जो टालने से भी नहीं टलती है. शानदार लेखन.

    आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में - कायाकल्प

    ReplyDelete
  7. काश कुछ नमी जड़ों के पास मिले ... न मिली तो ... शायद अवसाद के लम्बे पल जीने न दें ...
    अच्छी रचना है ...

    ReplyDelete
  8. पुरजोर कोशिश ! फिर निर्रथक कवायद क्यों ?

    ReplyDelete
  9. ये निर्थक कवायद नहीं जड़ों के जरिये हरियाली लौटा लाने का सार्थक प्रयास है आदरणीय साधना जी | भावपूर्ण लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनायें |

    ReplyDelete
  10. कृपया निर्थक नहीं निरर्थक पढ़ें |

    ReplyDelete
  11. सुप्रभात
    उम्दा रचना पढने को मिली |बहुत मजा आया |

    ReplyDelete
  12. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

    ReplyDelete
  13. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार हर्षवर्धन जी ! सादर वन्दे !

    ReplyDelete
  14. हार्दिक धन्यवाद विभा जी ! आभार आपका !

    ReplyDelete
  15. हार्दिक धन्यवाद रोहिताश जी ! आभार आपका !

    ReplyDelete
  16. हार्दिक धन्यवाद नासवा जी ! आभार आपका !

    ReplyDelete
  17. जिजीविषा के चलते इंसान प्रयत्न ज़रूर करता है लेकिन कुछ कोशिशें आशा का दामन थाम कर की जाती हैं तो कुछ बस आदतन जिनके असफल होने की संभावना प्रबल होती है ! इसीलिये यह कवायद निरर्थक प्रतीत हो रही है नायिका को ! आपकी संवेदनशील प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद गगन जी ! आभार आपका !

    ReplyDelete
  18. इतनी खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रेनू जी ! सप्रेम वन्दे !

    ReplyDelete
  19. सुन्दर पंक्तियाँ ... कई बार कुछ चीजें और कुछ रिश्ते सम्भव नहीं होती है.. हम उनको बचाने का भरपूर प्रयास करते हैं लेकिन इस प्रयास में हम एक साथ दो व्यक्तियों का नुकसान कर रहे होते हैं..एक उस व्यक्ति का जिसे पाने की कवायद है और एक खुद का...अक्सर ऐसे मामले में आगे बढ़ना ही श्रेयकर होता है.....दर्द होता है लेकिन आगे चलकर ये आगे बढ़ना कई नई खुशियों को पाने के दरवाजे भी खोल देता है....

    ReplyDelete
  20. सुन्दर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद विकास जी ! इस ब्लॉग पर स्वागत है आपका ! दिल से आभार !

    ReplyDelete
  21. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !

    ReplyDelete