Friday, March 20, 2020

टूटती साँसें



कितनी बातें थीं कहने को
जो हम कहते तुम सुन लेते
कितनी बातें थी सुनने को
जो तुम कहते हम सुन लेते !

लेकिन कुछ कहने से पहले
घड़ी वक्त की ठहर गयी  
सुनने को आतुर प्राणों की
साँस  टूट कर बिखर गयी !

टूट गयीं जो साँस तो देखो
किस्सा ही सब खतम हुआ
खतम हुआ किस्सा तो घुट कर
दो रूहों की मौत हुई ! 

फिरते हैं अब दोनों ही बुत
अपनी-अपनी धुरियों पर  
जैसे कहीं दूर जाने को
सारी वजहें खतम हुईं  ! 

क्यों जीते हैं सपनों में जब
स्वप्न टूट ही जाते हैं
खामखयाली में जीने की
सज़ा यही तजवीज हुई ! 

सपनों में जीने वालों का
एक यही तो हासिल है   
दिन भी बीता रीता-रीता
रात बिलखते बीत गयी !

साँसों ने साँसों को बाँधा
बंधन फिर भी टूट गए  
छूट गए जो साथी पीछे
मंज़िल उनसे दूर हुई !  



साधना वैद

11 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२१-०३-२०२०) को "विश्व गौरैया दिवस"( चर्चाअंक -३६४७ ) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. "साँसों ने साँसों को बाँधा
    बंधन फिर भी टूट गए
    छूट गए जो साथी पीछे
    मंज़िल उनसे दूर हुई !"
    --
    बहुत सुन्दर और मार्मिक।

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    1. हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  3. लेकिन कुछ कहने से पहले
    घड़ी वक्त की ठहर गयी
    सुनने को आतुर प्राणों की
    साँस टूट कर बिखर गयी !
    बहुत ही मार्मिक हृदयस्पर्शी सृजन।

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    1. हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद आपका सुधा जी ! सप्रेम वन्दे !

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  4. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !

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  5. हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! स्वागत है आपका !

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  6. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! आभार आपका !

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  7. बेहद भावपूर्ण लाज़बाब सृजन दी ,सादर नमन

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    1. आपका हृदय से धन्यवाद कामिनी जी ! बहुत बहुत आभार !

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