Thursday, March 12, 2020





कब तक तुझसे सवाल करेंगे
और कब तक तुझे
कटघरे में खड़ा करेंगे !
नहीं जानते तुझसे
क्या सुनने की
लालसा मन में
करवटें लेती रहती है !
ज़िंदगी ने जिस दहलीज तक
पहुँचा दिया है
वहाँ हर सवाल
गैर ज़रूरी हो जाता है
और हर जवाब बेमानी !
अब तो बस एक
कभी ना खत्म होने वाला
इंतज़ार है
यह भी नहीं पता
किसका और क्यों
और हैं मन के सन्नाटे में
यहाँ वहाँ
हर जगह फ़ैली
सैकड़ों अभिलाषाओं की
चिर निंद्रा में लीन
अनगिनत निष्प्राण लाशें
जिनके बीच मेरी
प्रेतात्मा अहर्निश
भटकती रहती है
उस मोक्ष की कामना में
जिसे विधाता ने
ना जाने किसके लिये
आरक्षित कर
सात तालों में
छिपा लिया है !
साधना वैद

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 15 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत ही सुन्दर लाजवाब...
    वाह!!!!

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  3. बहुत सुन्दर....

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