Friday, August 20, 2021

आतंकी राज


 


चीखती रूहें 

खौफनाक मंज़र

भागते लोग 


शर्मिंदा खुदा

ग़मज़दा आयतें

धर्म का सोग


इंसानियत 

हो गई शर्मसार

बहरा खुदा 


अपने बंदे

भटकें इंसाफ को 

सबसे जुदा 


पर्दों के पीछे 

धकेली गई स्त्री

कैसा इंसाफ


आधी आबादी

कर जग रौशन

हुई बर्बाद 


आतंकी आका 

खौफजदा जनता 

ज़िंदगी जेल


बचा ले मौला

तेरे ही तो बंदे हैं 

रोक ये खेल 


साधना वैद

6 comments:

  1. समसामयिक हाइकू ।
    वक़्त न जाने कैसा मंज़र दिखा रहा है ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! वाकई दया के पात्र हैं ये बच्चे जो इन हालातों से जूझ रहे हैं !

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  2. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. Replies
    1. आज तो ब्लॉग के भाग्य खुल गए ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार जीजी !

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