Tuesday, December 28, 2021

चिकित्सालय, एलोपैथी, आयुर्वेद और योग

 



हमारे शरीर को अपने पूरे जीवन काल में अनेक कारणों से इलाज की सहायता की आवश्यकता पड़ती है ! वो कारण हैं मामूली बुखार खाँसी जैसी बीमारियाँ अथवा मलेरिया, टायफाइड या कोरोना जैसी गंभीर बीमारियाँ ! रोज़ के जीवन में अनेक प्रकार की दुर्घटनाओं के कारण घायल हो जाने पर भी इलाज की ज़रुरत होती है ! यह चोट छोटी मोटी भी हो सकती है और किसी बड़ी दुर्घटना के कारण हड्डी टूटने जैसी या अंग भंग जैसी गंभीर भी हो सकती है !

मनुष्य ने प्राचीन समय से ही जो भी वस्तुएं व साधन उपलब्ध होते थे उन्हीं से अपना इलाज शुरू किया ! तरह तरह की पत्तियों, फूलों और उनके बीजों को खाकर उसने यह समझना शुरू कर दिया कि कौन सी वनस्पति किस रोग में लाभकारी होती है ! चोट लग जाने पर इन्हीं पत्तियों आदि को पीस कर जख्म पर लगाने से और उसके ऊपर पट्टी बाँधने से मनुष्य ने आरंभिक ( फर्स्ट एड ) चिकित्सा करना सीखा ! हड्डी टूट जाने पर बाँस के टुकड़े के साथ पट्टी बाँध देना इसी तरह का इलाज होता था !

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ! जल्दी ही समूह में रहना उसे अच्छा लगने लगा ! अपने समूह में रहने वाले उस व्यक्ति, जिसको इस प्रकार इलाज करना अधिक अच्छा आता था, वह धीरे धीरे उस समय का डॉक्टर बन गया !

आधुनिक समय में तो यह इलाज की कला पूरी तरह से विज्ञान बन चुकी है और उसको विश्व विद्यालयों में अनेक कोर्स बना कर पढ़ाया भी जाने लगा है ! सबसे छोटा चिकित्सालय वह होता है जिसमें एक डॉक्टर  और एक सहायक अथवा नर्स होती है ! वहाँ पर साधारण बीमारियों की दवाएं भी उपलब्ध होती हैं ! इन्हें बोलचाल की भाषा में डॉक्टर साहेब की दूकान कहा जाता है ! यह एक तरह के वाक इन अस्पताल होते हैं जिनमें कोई भी मरीज़ जा सकता है और डॉक्टर की सलाह से अपना इलाज करवा सकता है !

ख़ास तरह के रोगों के लिए यहाँ से मरीजों को विशेषज्ञों द्वारा चलाये जाने वाले चिकित्सालयों में भेज दिया जाता है जहाँ पर अनेक प्रकार के उपकरण व टेस्टिंग की सुविधाएं भी होती हैं ! इन्हें क्लीनिक कहा जाता है ! ये भी बहुत उपयोगी होते हैं !

चौबीस घंटे इलाज की सुविधा देने वाले बड़े क्लीनिकों को अस्पताल कहा जाता है ! यहाँ पर मरीज़ के रहने की भी सुविधा होती है ! एक्स रे की मशीन आदि अन्य उपकरण भी लगे होते हैं ! डॉक्टर्स भी अनेक होते हैं जो बारी बारी आकर चौबीस घंटे इलाज की सुविधा देते हैं ! ज़रुरत पड़ने पर बाहर से दूसरे विशेषज्ञ आकर भी चिकित्सा कर सकते हैं ! ऑपरेशन की सुविधा भी यहाँ उपलब्ध होती हैं ! इसी प्रकार के और भी बड़े अस्पताल भी होते हैं जिनमें एक साथ अनेकों रोगियों का इलाज किया जा सकता है !

ऐसे बड़े अस्पताल भी होते हैं जिनमें मरीजों के इलाज के साथ साथ डॉक्टर्स और नर्सों की शिक्षा और प्रशिक्षण का प्रबंध भी होता है ! इन्हें मेडिकल कॉलेज वाले अस्पताल कहा जाता है ! यहाँ के डॉक्टर्स बहुत अनुभवी होते हैं व लाइब्रेरी, प्रयोगशाला व शोध आदि करने की सुविधाएं भी होती हैं !   

भारत में उपचार के लिए एलोपैथी और आयुर्वेद दोनों पद्धतियों का प्रयोग होता है ! एलोपैथिक एक आधुनिक चिकित्सा पद्धति है जिसमें दवाओं और सर्जरी द्वारा छोटी बड़ी बीमारियों का इलाज किया जाता है ! इसकी दवाएं अनेक तरह के रसायनों को मिला कर आधुनिक प्रयोगशालाओं में बनाई जाती हैं और गोली, इंजेक्शन व सीरप के रूप में इन दवाओं का उत्पादन किया जाता है ! एलोपैथी से इलाज की शिक्षा मेडीकल कॉलेज में दी जाती है ! सबसे पहली डिग्री को एम बी बी एस कहते हैं ! इसके ऊपर एम एस और एम डी डिग्रियाँ विशेषज्ञों के लिए होती हैं ! सर्जरी के लिए तरह तरह के यंत्र और मशीनों की सहायता ली जाती है ! एलोपैथी तत्काल आराम और लम्बे इलाज दोनों के लिए लाभकारी है ! इसकी दवाओं को डॉक्टर्स की सलाह से ही प्रयोग में लाना चाहिए ! पूरी दुनिया में इस पद्धति का प्रयोग बीमारी का इलाज और उसकी रोक थाम दोनों के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है !

आयुर्वेदिक पद्धति भी इलाज की एक बहुत प्राचीन पद्धति है ! जिसका अविष्कार भारत में प्राचीन काल में हुआ था ! आयुर्वेद में दवाएं प्राकृतिक पदार्थों जैसे जड़ी बूटियाँ, पत्तियाँ व बीज और लवण आदि का प्रयोग कर निर्मित की जाती हैं और इनसे बीमारियों का इलाज किया जाता है ! इस पद्धति में डॉक्टर को वैद्य जी कहा जाता है जो आयुर्वेदिक विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करते हैं और इस पद्धति में इलाज करने की डिग्री प्राप्त करते हैं ! आयुर्वेद की दवाओं का मानव शरीर पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है इसलिए इस पद्धति से किये जाने इलाज को सुरक्षित माना जाता है ! इसका इलाज एलोपैथी की तुलना में कुछ समय तो अधिक लेता है किन्तु रोग को जड़ से दूर कर देता है ऐसा माना जाता है ! सर्जरी इस पद्धति में भी होती है और आजकल आधुनिक यंत्रों का प्रयोग भी किया जाने लगा है ! भारत में इन दोनों पद्धतियों का प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा रहा है ! कभी कभी तो एक ही मरीज़ अपनी दो बीमारियों में किसी एक बीमारी का इलाज आयुर्वेदिक पद्धति से करते हैं और दूसरी का इलाज एलोपैथी पद्धति से करना पसंद करते हैं ! इसकी दवाएं अधिकतर चूर्ण के रूप में एवं काढा या आसव इत्यादि के रूप में बनती हैं जिन्हें आजकल गोलियों व कैप्सूल के रूप में भी बनाया जा रहा है !

उपचार की इन दोनों पद्धतियों से अलग लेकिन बहुत असरकारी एक और पद्धति है जिसे योग कहते हैं ! योग वास्तव में व्यायाम करने का एक वैज्ञानिक तरीका है जिसे प्रारम्भ में तो हमारे साधू संतों ने स्वयं को स्वस्थ एवं निरोग रखने के लिए विकसित किया जिससे वे दूरस्थ प्रदेशों में बिना किसी चिकित्सकीय सहायता के अपना जीवन सुगमता से बिता सकें ! योग में शरीर के सभी अंगों व मांसपेशियों को व्यायाम के द्वारा इस तरह से संचालित किया जाता है कि बीमार अंग शक्तिशाली होकर बीमारी को बिना दवा के ही दूर भगा देता है ! योग में हर बीमारी व हर अंग के लिए अलग अलग तरह के व्यायाम निर्धारित किये गए हैं जिन्हें आसन कहा जाता है ! योग बच्चे बूढ़े, स्त्री पुरुष और स्वस्थ व बीमार सभी के लिए लाभकारी होता है ! एलोपैथिक व आयुर्वेदिक दोनों पद्धतियों के डॉक्टर्स योग को अपनाने की सलाह देते हैं ! इलाज का यह तरीका पूरी तरह से नि:शुल्क होता है ! प्रसन्नता की बात यह भी है कि भारत में विकसित यह प्रणाली सारे विश्व में प्रसिद्द हो गयी है और २१ जून का दिन विश्व योग दिवस के रूप में सारी दुनिया में मनाया जाने लगा है !

स्वस्थ रहना हमारा अधिकार भी है और उसके लिए तीनों पद्धतियों का उचित उपयोग करना हमारा कर्तव्य भी है ! रोग की गंभीरता को आँकते हुए हमें तीनों पद्धतियों का संतुलन बनाते हुए उपचार करना चाहिए ! योग स्वस्थ जीवन का सबसे सुदृढ़ सूत्र है ! योग को अपना कर हम अपने शरीर को इतना शक्तिशाली बना सकते हैं कि हमें दवाओं की आवश्यकता ही नहीं होगी ! इसलिए प्रतिदिन नियम से व्यायाम करिये और स्वस्थ रहिये ! 

 

साधना वैद    

 

Sunday, December 26, 2021

दिल्ली की एक शाम

                                                     



ज़िंदगी यूँ तो संघर्षमयी रही सदा से लेकिन फिर भी कभी कभी प्रभु अनायास ही झोली में सुखद पलों की ऐसी अनमोल सौगातें डाल देते हैं कि लगता है अब जीवन में इससे अनमोल और कुछ घटित हो ही नहीं सकता ! ऐसा ही एक वाकया मेरी ज़िंदगी में भी घटित हुआ जिसे मैं जीवन भर कभी भूल नहीं पाउँगी और वह प्रसंग मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत प्रसंग बन कर जीवन भर मेरे साथ साथ चलता रहेगा !
यह घटना सन् १९६८ की है ! दिन महीना समय अब याद नहीं रहा ! शायद सितम्बर या अक्टूबर का रहा होगा ! मेरे विवाह को साल भर भी नहीं हुआ था ! हम पति पत्नी दिल्ली के करोलबाग में एक बरसाती में रहते थे और अपनी कच्ची गृहस्थी को सजाते सँवारते फाकामस्ती में दिन गुज़ार रहे थे ! उन दिनों डी टी य़ू की लोकल बस में रविवार के दिन एक रुपये का टिकिट मिलता था सारे दिन के लिए ! आप कहीं भी आयें जाएँ कोई बंदिश नहीं थी ! लिहाजा वह दिन होता था मौज मस्ती का ! हम पूरे सप्ताह अखबारों में देख देख कर रविवार को होने वाले उन कार्यक्रमों की सूची बना लेते जो या तो फ्री होते थे या जिनका टिकिट बहुत ही कम हुआ करता था ! रविवार का बेसब्री के साथ इंतज़ार रहता था ! उस दिन हम सुबह से ही दो टिकिट लेकर बस में सवार हो जाते और अपनी लिस्ट के हर कार्यक्रम का आनंद भरपूर उठाते ! लंच के लिए कभी केले, कभी सेव संतरे या कभी सैंडविच से काम चल जाता ! देर रात को घर लौटते ! पूरे दिन का खर्च मुश्किल से दस बारह रुपये और मनोरंजन भरपूर !
उस दिन भी हम घूमने निकले थे तो दिल्ली के मावलंकर हॉल के पास ही एक कंसर्ट हॉल में किसी बड़े नामी कलाकार का प्यानो वादन का कार्यक्रम देखने के इरादे से निकले थे ! संगीत का हम दोनों को ही भारी शौक और उस कार्यक्रम में प्रवेश नि:शुल्क था ! जैसे ही वहाँ पहुँचे मावलंकर हॉल के गेट पर कई लोग किसी विशिष्ट अतिथि के स्वागत के उद्देश्य से फूलों के गुलदस्ते और मालाएं लेकर खड़े हुए थे ! हम भी कुछ ठिठक गए ! तभी बड़ी ही गर्मजोशी से उन्होंने हमें मुस्कुरा कर अभिवादन किया और अन्दर हॉल में जाने का संकेत किया ! हमें तो पता भी नहीं था कि यहाँ क्या हो रहा है लेकिन कुछ इतने विनम्र आग्रह के कारण और कुछ जिज्ञासावश हम भी अन्दर हॉल में पहुँच गए ! वहाँ जो दृश्य देखा वह हमारी कल्पना से परे था ! अन्दर उस वर्ष के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वरिष्ठ साहित्यकार कविवर सुमित्रानंदन पन्त का अभिनन्दन समारोह चल रहा था और साहित्याकाश के सभी चमकते सितारे उस समय मंच पर आसीन थे ! श्री सुमित्रानंदन पन्त, श्री हरिवंश राय बच्चन, श्रीमती तेजी बच्चन, श्री रामधारी सिंह दिनकर, डॉ. प्रभाकर माचवे, श्री विष्णू प्रभाकर, बाबा नागार्जुन ! इनके अलावा और भी कई बड़े बड़े साहित्यकार ! कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री जगजीवन राम जी की अगवानी के लिए आयोजकों का बड़ा समूह गेट पर तैनात था और कदाचित उनके आगमन पर कोई व्यवधान उत्पन्न न हो इसीलिये हमें जल्दी से अन्दर भेज दिया गया था ! जो भी हुआ हमारे लिए तो गर्व के अनमोल पलों की थाती लेकर आया था वह पल ! वैसे इनमें से कई साहित्यकारों को कवि सम्मेलनों में हमने पहले देखा भी था और सुना भी था लेकिन सबको एक साथ एक ही मंच पर देखना यह निश्चित रूप से आशातीत था और इसे मैं अपना परम सौभाग्य मानती हूँ ! सब बहुत ही प्रसन्न थे ! अवसर ही ऐसा था ! मुझे स्मरण है बच्चन जी परिहास के मूड में थे ! उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर जी की चिबुक उठाते हुए हँस कर माइक पर जैसे ही उनसे कहा, “सुमुखी तुम कितनी सुन्दर हो”, हॉल ठहाकों से गूँज उठा और एकदम गोरे चिट्टे दिनकर जी का चेहरा हँसते हँसते बिलकुल लाल हो गया था !
यह प्रसंग मेरे जीवन की अविस्मरणीय स्मृतियों में मूल्यवान हीरे की तरह दमकता रहता है ! दिल्ली के रविवार के सैर सपाटों की लम्बी सूची है लेकिन यह प्रसंग सबसे अनूठा और सबसे अनमोल है जिसे मैं कभी नहीं भूल सकती !


नोट - यह चित्र उस अवसर का नहीं है ! वह युग मोबाइल का नहीं था ! वरना कम से कम हर साहित्यकार को फोकस करते हुए २० - २५ तस्वीरें तो हमने खींच ही ली होतीं जो हमारे पास अनमोल धरोहर के रूप में जीवन भर साथ रहतीं ! यह तो इंटरनेट पर एक फोटो मिली है जिसमें कविवर सुमित्रानंदन पन्त, श्री हरिवंश राय बच्चन और श्रीमती तेजी बच्चन जी एक साथ एक मंच पर उपस्थित हैं जो उस दिन के कार्यक्रम में भी मौजूद थे इसलिए साभार गूगल के इस फोटो को हम अपने संस्मरण के साथ उद्धृत करने की स्वतन्त्रता ले रहे हैं ! काश उस दिन हमारे साथ कैमरा भी होता !

चित्र - साभार गूगल

साधना वैद


Monday, December 13, 2021

मन्नत

 



तू ही तू

बस तू ही तू हो

इस दिल में !

बंद आँखों का ख्वाब,

खुली आँखों का मंज़र

जो भी हो

होता रहे बस उसमें

तेरा ही दीदार !

धड़के जो दिल

तो बस सुन कर

तेरा ही नाम

और डूबे जो दिल

तो बस लेकर तेरा

और सिर्फ तेरा ही नाम !

सुनूँ जो कोई आवाज़

तो उसमें तेरा ही ज़िक्र हो

दूँ कोई आवाज़

तो होठों पर बस

तेरा ही नाम हो !

छू ले कभी जो हवा

वो तुझे छूकर लौटी हो

और मुझे छूकर

जाए जो कभी हवा

तो तुझे छूकर ही ठहरे !

और कुछ भी न हो

तेरे मेरे दरमियाँ

और कोई न हो

तेरे मेरे दरमियाँ !

बस एक यही मन्नत है

बस इतनी सी ही मन्नत है ! 

 

साधना वैद


Wednesday, December 8, 2021

संवेदन व्यथाओं का

 



चुभता है दंश कभी निर्मम यथार्थ का ?

देखा प्रतिबिम्ब कभी दर्पण में स्वार्थ का ?

भीगी कभी पलकें लख लोगों के कष्टों को ?

पढ़ कर तो देखो निज कर्मों के पृष्ठों को

जानते हो क्या है दुखांत इन कथाओं का ?

पिघला क्या मन सुन संवेदन व्यथाओं का ?


माना हो सर्वश्रेष्ठ प्राणी इस सृष्टि में 

भीगते हो मगन निज प्रशंसा की वृष्टि में

लेकिन कब पोंछे हैं आँसू दुखियारों के  

चूल्हे कब जलते हैं निर्धन परिवारों के

फेंको ये इंद्रजाल स्वार्थ की प्रथाओं का

मत बैठो मौन सुन संवेदन व्यथाओं का !


जन जन के दुख से है कैसी यह निस्पृहता 

क्यों नहीं दिखती अब आँखों में विह्वलता

क्यों नहीं मिलता अब बातों में अपनापन

क्यों नहीं छिलता अब पीड़ा से पत्थर मन

चाहती हूँ बरस जाए विष सब घटाओं का

मन में हो केवल संवेदन व्यथाओं का !

 

साधना वैद

 

 

 


Monday, December 6, 2021

मैं मूर्तिकार तो नहीं

 



मैं मूर्तिकार तो नहीं

लेकिन वर्षों पहले बनाई थी मैंने

तुम्हारी एक मूरत

अपने मनमंदिर में स्थापित करने के लिए !

जानते हो तुम यह मूरत

वैसी बिलकुल भी नहीं थी जैसे तुम थे

इसे मैंने बड़ी मेहनत से तराशा था !

अपनी कल्पना की छैनी से मैंने

इसके मुख पर भावों को उभारा था,

अपने मन की कोमलता से मैंने

इस मूरत के हर अंग को आकार दिया था,  

अपने अंतर में प्रवाहित करुणा की

अजस्त्र प्रवाहित अश्रुधारा से मैंने

इस मूरत की आँखों से झरते अलौकिक प्रेम के

दिव्य प्रकाश को सँवारा था ! 

मैं इस मूर्ति के शिल्प में

अपना ही प्रतिरूप देखना चाहती थी !

इसीलिये तो मेरे उर अंतर में बसी

इस मूर्ति का शिल्प शायद

उन सभी मूर्तियों से भिन्न है

जो संग्रहालयों की वीथियों में,

वहाँ के भव्य सभागारों में

युग युगांतर से सजी हुई खड़ी हैं !

क्योंकि इस मूर्ति में मेरे

मन के देवता का वास है

इसीलिये इसका शिल्प भी

मेरे मनोनुकूल है !


चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद  

 


Tuesday, November 30, 2021

बच्चों में गुम होता बचपन

 



समस्या गंभीर है और जल्दी ही यदि इसका निराकरण नहीं किया गया तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं ! ऐसा क्यों है कि बच्चों में मासूमियत और बचपना गुम होता जा रहा है ! इस समस्या पर चिंतन करें तो कई बातें ऐसी उभर कर सामने आती हैं जो हमें स्पष्ट संकेत देती हैं कि समस्या की जड़ कहाँ है और कितनी गहरी है !

सबसे पहला कारण है संयुक्त परिवारों का टूटना !

पहले जब समाज की बुनियाद संयुक्त परिवार पर टिकी हुई थी बच्चों के सामने कभी अकेले रहने की समस्या ही नहीं आती थी ! घर परिवार में चचेरे, तयेरे, फुफेरे कई बच्चों का साथ होता था जिनके साथ दिन रात खेल कूद, शरारतों और ऊधमबाजी में बच्चों का खूब वक्त बीतता था ! दादी बाबा की कहानियाँ सुनते उनके साथ बोलते बतियाते बच्चे सदैव प्रसन्न रहते और उनके अन्दर सामाजिकता और सद्गुणों का खूब विकास होता ! दादी नानी कहानियों के साथ साथ खूब पहेलियाँ भी पूछतीं जिनसे बच्चों का खूब बौद्धिक विकास भी होता साथ ही मनोरंजन भी खूब होता ! लेकन संयुक्त परिवारों के टूटने से अब बच्चों को स्कूल से घर आने पर कोई हमवयस्क नहीं मिलता ! या तो घर में अपने आप में उलझी थकी हुई माँ मिलती है या माता पिता दोनों ही कामकाजी हों तो या तो घर में सन्नाटा पसरा होता है या किसी आया का साथ मिलता है ! दोनों ही स्थितियाँ बच्चों के लिए हानिकारक होती हैं ! बच्चों को घर में खुल कर हँसते हुए चहकते हुए देखना अब बहुत ही विरल वस्तु हो गयी है ! माता पिता भी गाम्भीर्य का मुखौटा पहने बच्चों से खिंचे खिंचे से रहते हैं और बच्चे उम्र से पहले ही अपना बचपन और चंचलता खोकर खामोश हो जाते हैं !

माता पिता बच्चों की सुरक्षा के प्रति इतने सचेत हो गए हैं कि अब पार्क में खेलने वाले बच्चों के समूह कम ही देखने को मिलते हैं ! अधिकतर वे घरों में अकेले ही रहने लगे हैं ! इसकी भरपाई के रूप में माता पिता उन्हें वीडियो गेम्स दिला देते हैं या मँहगे वाले मोबाइल फोन दिला देते हैं ! बच्चे उन्हींके साथ खेलते हुए एकान्तप्रिय होते जाते हैं ! वे घंटों उसीमें उलझे रहते हैं और समूह में खेलने की भावना क्या होती है सामाजिकता के मायने क्या होते हैं इन मूल्यों को भूलते जा रहे हैं ! ज़ाहिर है ऐसे बच्चे कुंठित हो जाते हैं और समय से पहले ही बुढ़ा जाते हैं !    

एक तो करेला कड़वा ऊपर से नीम चढ़ा ! एक तो वैसे ही आजकल के बच्चे अकेले ही रहना पसंद करने लगे हैं उस पर कोरोना की इस आपदा ने बच्चों को बिलकुल अकेला कर दिया ! घर से बाहर निकलने पर बिलकुल पाबंदी हो गयी ! पार्क, बाग़ बगीचे, खेलों के मैदान और गलियाँ सब सूने हो गए और ऑनलाइन क्लासेस के बहाने सभी बच्चों के हाथों में मोबाइल फोन आ गए और खुल गया उनके सामने ऐसी तिलस्मी दुनिया का दरवाज़ा जिसमें घुसने से किसी समय में बड़ों को भी डर लगता था ! जब इतनी छोटी सी उम्र में बच्चे बाल सुलभ कहानियों और खेल कूद की जगह ऐसी वर्जित बातों की तरफ आकृष्ट होने लगेंगे तो उनमें बचपना, मासूमियत और भोलापन कहाँ रह जाएगा ! जैसे कार्यक्रम बच्चे देखने लगे हैं उनसे बच्चों के मन में नकारात्मकता को अधिक प्रश्रय मिलता है और उनकी सोच इससे प्रभावित होने लगती है !

बच्चों में सुसाहित्य के प्रति कम होती रूचि भी इसका एक बड़ा कारण है ! बच्चों की पत्रिकाएँ अब कहाँ इतनी लोकप्रिय रह गयी हैं ! हम लोग जब छोटे थे तो घर में चन्दा मामा, पराग, नंदन, चम्पक, बाल भारती ढेरों पत्रिकाएँ आती थीं जिनमें बहुत ही सुन्दर कहानियाँ आती थीं जो बच्चों के चारित्रिक विकास के लिए बहुत सहायक होती थीं और बच्चे उनसे बहुत कुछ सीखते थे ! अब ज़रा टी वी पर देखिये ! बच्चों के कार्यक्रम में छोटे छोटे बच्चे बड़ों की भूमिका में अभिनय करते हैं तो कितनी निम्न स्तरीय भाषा का प्रयोग करते हैं ! क्योंकि घर में अब सिर्फ उन्हें बड़ों की ही कंपनी मिलती है बच्चों की नहीं ! संवाद लिखने वाले लेखकों की कल्पना यहीं तक दौड़ पाती है कि पत्नी बनी छोटी सी बच्ची पति बने छोटे से बच्चे को खूब खरी खोटी सुनाये और खूब लड़ाई झगड़ा करे ! जब हमने इसे ही मनोरंजन का पर्याय समझ लिया है तो फिर बच्चों के मन से मासूमियत को खँरोंच कर फेंकने का इलज़ाम हम किस पर थोपें ! हमें खुद अपनी सोच, अपने व्यवहार और अपनी महत्वाकांक्षाओं का आकलन नए सिरे से करना होगा कि अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम अपने बच्चों के जीवन से जिस तरह से खिलवाड़ कर रहे हैं ! क्या यह वास्तव में उचित है ?

 

साधना वैद    


Saturday, November 27, 2021

यह चिर चंचल यायावर मन


 


चंचल, बेकाबू, मतवाला

भागा करता सपनों के संग,

रुकता ही नहीं पल भर को भी

उड़ता फिरता विहगों के संग !

कैसे रोकूँ दीवाने को

सुनता ही कहाँ ये पागल मन,

हाथों से छूटा जाता है

यह चिर चंचल यायावर मन !

नापा करता आकाश क्षितिज

सारी धरती सारे सागर,

विचरा करता परियों के संग

किस्सों से भरता है गागर !

पल भर में सागर के तल की

वह नाप जोख कर आता है,

अगले पल ग्रह नक्षत्रों की

वह छान बीन कर आता है !

फिर जूल्स वारने के संग वह

खुद धरती में घुस जाता है,

सागर की गहराई में जा

    जल परियों से मिल आता है !   

है भरा हुआ जिज्ञासा से

नित अन्वेषी उत्साही मन,

कैसे इसको मैं बहलाऊँ

है पागल यह यायावर मन !

हर पर्वत, झरने, गाँव, नदी

वन पंछी इसे लुभाते हैं,

किस्सों के सारे पात्र इसे

पुस्तक से निकल बुलाते हैं !

हर दूर देश की वादी में

इसका मन यूँ रम जाता है,

जैसे कितने ही जन्मों से

इसका उस थल से नाता है !

फिर भूला भूला रहता है

यह नादाँ खाम खयाली मन,

मुझको तो प्यारा लगता है

यह भोला सा यायावर मन !

किस्से हर राजा रानी के

परियों के इसको भाते हैं,

महलों, दुर्गों, दालानों के

इसके मन को ललचाते हैं !

इतिहास, सभ्यता, संस्कृति की

बातों में मन इसका रमता,

हो ज़िक्र किसी अन्वेषण का

इसका उत्साह नहीं थमता !

हर शै में डूबा रहता है

मेरा यह अति उत्साही मन,

है मेरे अंतर का दर्पण

मेरा निश्च्छल यायावर मन !

हाथों से छूटा जाता है

यह चिर चंचल यायावर मन !

 

साधना वैद

 

 

 

 

 

 

 


Sunday, November 21, 2021

अनाड़ी

 



दुनिया गाती है गुण चतुर सयानों के

लेकिन हमको प्यार ‘अनाड़ी’ लोगों से,

दुनिया को छल बल की लीला है प्यारी

हमको प्यारे वो जो बरी इन रोगों से !

 

दुनिया घिरती हानि लाभ का सौदों में

मगर ‘अनाड़ी’ प्यार का सौदा करते हैं,

दुनिया छल से अपनी झोली है भरती

ये खुद लुट कर जान का सौदा करते हैं !

 

कहते लोग ‘अनाड़ी’ ऐसे बन्दों को

जिनको बस देना ही देना आता है,

करते जो दूजों का सारा माल हड़प

उन्हें ‘सयाना’ कहना जग को भाता है !

 

जग की ऐसी रीत नहीं हमको प्यारी

हमको निश्छल प्रेम सुहाना लगता है

नहीं चाहिये हमें ‘सयानों’ की दौलत  

हमें ‘अनाड़ी’ दोस्त खज़ाना लगता है !

 


चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद

Saturday, November 20, 2021

पंडित जवाहर लाल नेहरू एक लेखक के रूप में

 


हमारे देश भारत के प्रथम प्रधान मंत्री, हमारे प्रिय नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू, राजनीति के क्षेत्र में जितने सफल, प्रभावशाली, लोकप्रिय एवं नेता थे वे उतने ही महान दार्शनिक, एक अति संवेदनशील विचारक एवं अनुसंधनात्मक पैनी दृष्टि रखने वाले एक सिद्धहस्त लेखक भी थे !

प्रख्यात लेखक विजय शंकर सिंह लिखते हैं कि, “जवाहर लाल नेहरू अगर प्रधान मंत्री न होते तो भी यह विश्व उन्हें एक महान लेखक के रूप में याद रखता ! एक ऐसा लेखक जिसकी इतिहास दृष्टि ने इस देश की संस्कृति की अलग तरह से व्याख्या की और देश की सांस्कृतिक विरासत को व्याख्यायित किया ! नेहरू कोई अकादमिक इतिहासकार नहीं थे लेकिन उनकी समृद्ध इतिहास दृष्टि ने उन्हें एक अलग और विशिष्ट तरह के इतिहास लेखक के रूप में स्थापित किया !”

नेहरू जी द्वारा रचित कुल चार पुस्तकें प्रकाशित हुई !

लेटर्स फ्रॉम ए फादर टू ए डॉटर

द ग्लिम्पेज़ ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री

एन ऑटोबायोग्राफी

द डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया

नेहरू जी का बचपन और शिक्षा का काल अवश्य ऐशो आराम में बीता लेकिन इंग्लैण्ड से अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद जब वे स्वदेश लौट कर आये यहाँ चल रहे स्वतन्त्रता आन्दोलन में उन्होंने भी दिलचस्पी लेना शुरू कर दी ! वे गाँधी जी के साथ सविनय अवज्ञा आन्दोलन में उनके सहयात्री बन गए और सन् १९१९ में हुए जलियाँवाला काण्ड के बाद वे पूरी तरह से इस आन्दोलन में कूद पड़े ! लिहाजा उनकी गतिविधियाँ अंग्रेज़ शासकों की आँखों में चुभने लगीं और उन्हें कई बार जेल की हवा खानी पड़ी ! स्वाधीनता संग्राम की इस लड़ाई में नेहरू जी को नौ बार कारावास की सज़ा सुनाई गयी ! कभी कुछ दिनों के लिए’ कभी कुछ महीनों के लिए, तो कभी कुछ साल के लिए ! कुल मिला कर नेहरू जी ने नौ साल देश के विविध कारागारों में बिताये ! वे अलग अलग समय में लाहौर, अहमदनगर, अल्मोड़ा, देहरादून, बरेली, लखनऊ व इलाहाबाद की नैनी सेन्ट्रल जेल में बंद रहे ! लेकिन उनके अन्दर के लेखक ने  कारावास के इस त्रासद काल को सबसे अधिक सकारात्मक एवं रचनात्मक काल के रूप में परिवर्तित कर लिया ! उनका अधिकतर लेखन जेल में ही हुआ क्योंकि अन्य कोई सामाजिक, पारिवारिक अथवा राजनीतिक गतिविधि न होने की वजह से उनके पास अध्ययन और लेखन के लिए पर्याप्त समय होता था जिसका उन्होंने भरपूर सदुपयोग किया !

नेहरू जी स्वभाव से ही स्वाध्यायी थे। उन्होंने महान् ग्रंथों का अध्ययन किया था। सभी राजनैतिक उत्तेजनाओं के बावजूद वे स्वाध्याय के लिए रोज ही समय निकाल लिया करते थे। परिणामस्वरूप उनके द्वारा रचित पुस्तकें भी एक अध्ययन-पुष्ट व्यक्ति की रचना होने की सहज प्रतीति कराती हैं ! नेहरू जी द्वारा रचित चार पुस्तकें सर्वाधिक चर्चित हैं !

उनकी पहली पुस्तक, ‘लेटर्स फ्रॉम ए फादर टू ए डॉटर’,अपने आप में अनूठी पुस्तक है ! ये पत्र उन्होंने अपने इलाहाबाद प्रवास के दौरान लिखे थे जब इंदिरा जी मसूरी के स्कूल में पढ़ रही थीं ! इन पत्रों के माध्यम से अपनी पुत्री इंदिरा को उन्होंने इतिहास के साथ साथ वन्य जीव जंतुओं, विकास के सिद्धांत एवं अन्य अनेकों विषयों के बारे में बताया है और उनकी बाल सुलभ जिज्ञासाओं का समाधान भी किया है ! इस पुस्तक का प्रकाशन सन् १९२९ में हुआ ! मूल रूप से ये पत्र अंग्रेज़ी में लिखे गए थे जिनका हिन्दी अनुवाद हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने किया था ! अपनी बेटी इंदिरा को लिखे गए इन पत्रों के माध्यम से राजनेता नेहरू के विराट व्यक्तित्व में समाये एक आदर्श पिता के संवेदनशील हृदय के दर्शन भी हो जाते हैं जो परिस्थितिवश पुत्री से दूर रहने पर भी उसके सम्पूर्ण बौद्धिक विकास के लिए चिंतित भी है और प्रयत्नशील भी ! यह पुस्तक बच्चों के सामान्य ज्ञानवर्धन के लिए बहुत ही उपयोगी है ! इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद, ’पिता के पत्र पुत्री के नाम’ सन् १९३१ में प्रकाशित हुआ !

नेहरू जी की दूसरी चर्चित पुस्तक है, ‘द ग्लिम्प्सेज़ ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ !   

नेहरू जी जब पाँचवी बार इलाहाबाद की नैनी सेन्ट्रल जेल में दो साल सश्रम कारावास की सज़ा भुगत रहे थे उस दौरान उन्होंने विश्व के इतिहास से जुड़े विशिष्ट सन्दर्भों और तथ्यों को समेटे अनेक पत्र अपनी पुत्री इंदिरा नेहरू को लिखे जो कालान्तर में ‘द ग्लिम्प्सेज़ ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ के नाम से संकलित और प्रकाशित हुए ! मोटे तौर पर यह पुस्तक विश्व इतिहास की घटनाओं का एक सिलसिलेवार विवरण देती है ! इसे इतिहास की टेक्स्ट बुक या एकेडेमिक पुस्तक का दर्ज़ा तो नहीं दिया जा सकता लेकिन यह विश्व भर में घटने वाली घटनाओं का रोचक विवरण अवश्य प्रस्तुत करती है ! इस पुस्तक में उन्होंने एशिया के साम्राज्यों के उत्थान और पतन की तर्ज़ पर सभ्यताओं के उत्थान और पतन को रेखांकित करने का प्रयास किया है ! यह पुस्तक पत्र शैली में लिखी गयी है ! इतिहास को लिखने का यह भी एक अभिनव प्रयोग ही माना जाएगा ! यह पस्तक सन् १९३४ – ३५ में प्रकाशित हुई !

इन्ही दिनों नेहरू जी की आत्मकथा ‘माय ऑटोबायोग्राफी’ भी प्रकाशित हुई ! इस पुस्तक के लेखन के समय नेहरू जी युवा थे ! इसमें जो लिखा है वह नेहरू जी का अपने क्रिया कलापों का स्वयं अपने ही द्वारा किया गया ईमानदार विवेचन है ! इस आत्मकथा को सम्पूर्ण नहीं माना जा सकता क्योंकि इसके बाद भी नेहरू जी ने सार्वजनिक रूप से दीर्घ जीवन जिया, अनेक महत्वपूर्ण फैसले लिए जिनके सही गलत होने के विवाद अभी तक राजनीति के गलियारों में जब तब उठते रहते हैं ! स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधान मंत्री बने ! देश का विभाजन हुआ और इस विभाजन का ठीकरा नेहरू जी के सर पर फोड़ा गया ! लेकिन ये सारी घटनाएँ उनकी आत्मकथा के लिखने के बाद घटित हुई इसलिए इन सारी बातों का ज़िक्र उनकी आत्मकथा में नहीं मिलता क्योंकि पुस्तक में लिखी उनकी आत्मकथा का काल सन् १९३२ - ३३ तक का ही है ! लन्दन टाइम्स ने इस आत्मकथा को  पठनीय पुस्तकों की श्रेणी में रखा था ! इस पुस्तक का प्रकाशन सन् १९३४ में हुआ !

‘द डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ नेहरू जी की सबसे अधिक सफल, लोकप्रिय और परिपक्व पुस्तक के रूप में जानी जाती है ! यह पुस्तक उन्होंने अपनी नौवीं व अंतिम जेल यात्रा के समय में लिखी थी जब उन्हें चार साल के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गयी थी ! इस बार उन्हें सबसे पहले अहमदनगर किले की जेल में रखा गया, फिर बरेली सेन्ट्रल जेल भेजा गया और फिर वहाँ से उन्हें अल्मोड़ा स्थानांतरित कर दिया गया ! नेहरू जी की इस पुस्तक को देश विदेश के इतिहासकारों, विद्वानों, आलोचकों एवं पाठकों का बहुत ही अच्छा प्रतिसाद मिला ! ‘भारत एक खोज’ के नाम से दूरदर्शन पर निर्माता निर्देशक श्याम बेनेगल ने इस पुस्तक को आधार बना कर एक बहुत ही शानदार धारावाहिक भी बनाया जिसे दर्शकों की भूरी भूरी प्रशंसा मिली ! इस पुस्तक में सम्पूर्ण भारत की एक यात्रा है, वेदों और पुराणों के समय से लेकर आधुनिक काल तक का इतिहास है, संस्कृति, सभ्यता, रीति रिवाज़ और परम्पराओं का वर्णन है और इस पुस्तक में नेहरू जी का अपने देश भारत के प्रति गर्व का अनन्य भाव भी परिलक्षित होता है ! नेहरू जी के जीवनीकार एम जे अकबर के अनुसार उनकी दोनों ही पुस्तकें, ‘विश्व इतिहास की एक झलक’ और ‘भारत एक खोज’ उनकी लेखकीय प्रतिभा को ही नहीं उनके पांडित्य को भी प्रदर्शित करती हैं ! ‘भारत एक खोज’ पुस्तक का प्रकाशन सन् १९४४ में हुआ !

नेहरू जी इतिहास के विद्यार्थी नहीं थे न ही वे कोई इतिहासकार थे लेकिन उन्होंने अतीत को अपनी विलक्षण दृष्टि से देखा और जैसा देखा उसे वैसा ही प्रस्तुत कर दिया ! अपने लेखन के सन्दर्भ में नेहरू जी ने स्वयं लिखा है,

“अतीत मुझे अपनी गर्माहट से स्पर्श करता है और जब वह अपनी धरणा से वर्तमान को प्रभावित करता है तो मुझे हैरान भी कर देता है !”

समस्त राजनीतिक विवादों से दूर नेहरू जी निःसंदेह एक उत्तम लेखक थे ! उनके लेखन में एक साहित्यकार के भावप्रवण तथा एक इतिहासकार के खोजी हृदय का मिला-जुला रूप सामने आया है ! इन पुस्तकों के अतिरिक्त नेहरू जी ने अगणित व्याख्यान दिये, लेख लिखे तथा पत्र लिखे ! इनके प्रकाशन हेतु 'जवाहरलाल नेहरू स्मारक निधि' ने एक ग्रंथ-माला के प्रकाशन का निश्चय किया। इसमें सरकारी चिट्ठियों, विज्ञप्तियों आदि को छोड़कर स्थायी महत्त्व की सामग्रियों को चुनकर प्रकाशित किया गया ! जवाहरलाल नेहरू वांग्मय नामक इस ग्रंथ माला का प्रकाशन अंग्रेजी में 15 खंडों में हुआ तथा हिंदी में सस्ता साहित्य मंडल ने इसे 11 खंडों में प्रकाशित किया है !

 

साधना वैद