Monday, January 3, 2022

पर्वत धारा

 



उन्मुक्त किया

पर्वत ने धारा को

बही सरिता

 

पर्वत राज

न हुआ विचलित

कटूक्तियों से

 

सम्मान किया

सम्पूर्ण हृदय से

नारी मन का

 

भरोसा किया

स्त्री नहीं सुकोमल

जीतेगी विश्व

 

सुलझा लेगी

हर उलझन को

बुद्धि बल से

 

पार करेगी

हर अवरोध को 

पराक्रम से

 

समाधान है 

वो हर समस्या का

बुद्धिमान है

 

द्रुत गति से 

कल कल बहती

गतिमान है !

 

साधना वैद


9 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-01-2022) को चर्चा मंच      "नसीहत कचोटती है"   (चर्चा अंक-4300)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  2. प्रतीकात्मक, प्रेरणास्पद रचना!

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    1. हार्दिक धन्यवाद हृदयेश जी ! आपका बहुत बहुत आभार !

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  3. बहुत ही उम्दा सृजन

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    1. हृदय से आपका बहुत बहुत आभार मनीषा जी ! हार्दिक धन्यवाद !

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  4. बेहतरीन रचना

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  5. हार्दिक धन्यवाद सरिता जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! आपका स्वागत है इस ब्लॉग पर !

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