Wednesday, March 23, 2022

पीढ़ी दर पीढ़ी

 



पीढ़ी दर पीढ़ी

हस्तांतरित होती रही हैं

परंपराएं, सोच, रीति रिवाज़

कभी कभी असंगत रूढ़ियाँ

और अतार्किक वर्जनाएं भी ।

यह दायित्व है हर पीढ़ी के

पहरुओं का

हर परंपरा का वजन तोलें

हर सोच को आवश्यक्तानुसार

परिमार्जित करें

रीति रिवाजों में समयानुकूल

तर्कसंगत परिवर्तन करें

असंगत रूढ़ियों को तोड़ें

व्यर्थ की वर्जनाओं को

उखाड़ फेंके ।

ज़रूरी नहीं पीढी दर पीढ़ी

मृतप्राय परंपराओं के

बोझ को ढोया जाये ।

अनावश्यक रूढ़ियों का

पालन करने के लिये

नई पीढ़ी को विवश किया जाये ।

एक स्वस्थ समाज

एक स्वस्थ वातावरण

एक विकासोन्मुख पीढ़ी का

मार्ग प्रशस्त करने के लिये

आवश्यक है

अपनी सोच अपने विचारों का

शुद्धिकरण और परिमार्जन ।

 

साधना वैद


5 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete