Saturday, May 28, 2022

जड़ें


 

रोज़ नए सुन्दर सुगन्धित फूलों से

उपवन सुरभित हो जाता है !

अनगिन लोगों की नज़र में फूलों का यह

अप्रतिम सौन्दर्य समाहित हो जाता है !

इतना आकर्षक जो होता है !

लेकिन धरा में गहरी जमी हुई

गुमनामी के अँधेरे में खोई

उस पेड़ की जड़ को कोई नहीं देखता

जिसकी वजह से ये आकर्षक फूल

रोज़ दर्शकों का मन मोहते हैं !

स्त्री पुरुष, बच्चे, बूढ़े, नौजवान

सभीके मनोभावों को गहनता से सोहते हैं !

गुमनामी में खोई उस जड़ को ज़रा

एक बार प्रकाश में तो लेकर आओ !

उसके बाहर आते ही पेड़ मुरझा जाएगा

सारे फूल धरा पर झर जायेंगे

और फूलों के रूप का जादू

पल भर में तिरोहित हो जाएगा !

खैर मनाओ कि इनका

यह लोकरंजक मनमोहक स्वरुप

तभी तक वन्दनीय है जब तक

इनकी जड़ें गुमनामी के अँधेरे में

धरा के नीचे अदृश्य हैं  

और इन्हें सींच कर जिलाए हुए हैं

वरना जो इन जड़ों को भी

शोहरत और प्रकाश का चस्का लग गया  

ये फल फूल स्वाद सौरभ

और इनका सौन्दर्य

सभी कुछ पल भर में

छिन्न भिन्न हो जायेंगे

नाम भले ही रह जाए लोगों की ज़ुबान पर

नयन सुख से सब वंचित हो जायेंगे !

 

साधना वैद  

 

Wednesday, May 18, 2022

वजह - लघुकथा

 



कल रात मानव तस्करों का एक गिरोह बच्चों को अगवा कर ले जाते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया ! शहर के समाचार पत्र इस सनसनीखेज खबर से अटे पड़े थे ! कई टी. वी. चैनल्स के संवाददाता अपने चैनल पर पहली ब्रेकिंग न्यूज़ देने की होड़ में उस थाने के सामने अपने अपने कैमरे और माइक सम्हाले हुए खड़े थे ! थाने के सामने ही चावल का एक बोरा और तरा ऊपर के अपने पाँच बच्चों के साथ सुमरिया भी हैरान परेशान बैठी थी जिसकी तीन साल की बेटी को तस्करों के पास से छुडा कर उसे लौटा दिया गया था !
इंस्पेक्टर के संकेत पर लोकल चैनल की संवाददाता नीरजा अपने कैमरामैन के साथ सुमरिया के पास लपकती हुई पहुँची !

“यह आपकी बेटी है जिसे इन दरिंदों से पुलिस ने छुड़ाया है ? आप बतायेंगी इसे कौन कब कैसे अगवा कर के ले गया था ? आपको कब पता चला कि आपकी बेटी गायब है ?” मन ही मन चटपटी कहानी का ताना बाना बुनते हुए नीरजा ने माइक सुमरिया के मुँह से लगा दिया ! सारे बच्चे कौतुहल से नीरजा और कैमरामैन की ओर देखने लगे जो हर एंगिल से उनकी तस्वीरें लेने में लगा हुआ था !

“अगवा ? कौनों अगवा नहीं किये हमारी लड़की को ! हम तो खुदई बेचे रहे उसे जे एक बोरी चामल के बदले में ! अब लड़की को लौटा दिए हैं तो का चामल भी वापिस देन के पड़ी हैं ? अब का हुई है ?” सुमरिया का भय और दुश्चिंता आँखों की राह बह निकले ! चौंकने की बारी अब नीरजा की थी !

“क्या ? आपने खुद अपनी लड़की को बेचा था एक बोरी चावल के बदले ? लेकिन क्यों ?”

“तो का करती ? दारू पी पीकर और पाँच पाँच बच्चा को छोड़ कर इनका बाप तो ख़तम हो गया ! मैं कहाँ से खबाती इन्हें ! सो एक जे बीच वाली लड़की बेच दई ! बड़ी बाली के दो बोरी दे रए हते लेकिन फिर उसे नईं दई !”

“क्यों ? उसे क्यों नहीं दिया ? और ये दो लडके भी तो हैं और यह सबसे छोटी वाली भी है ! आपने इसे ही क्यों दिया ?” नीरजा की जिज्ञासा बढ़ गयी थी !

“लड़का से तो बंस चलत है ! छोटी बाली अभी मेरो ही दूध पियत है ! इसे दे देती तो जे तो बैसई मर जाती !” सुमरिया ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे आँचल से लगा लिया ! “बड़ी वाली को दुई चार महीना में चौका बासन को काम मिल जई हैं तो कछु दाना पानी आ जई है घर में ! जेई थी जिसको कछु काम न था घर में !”

 

साधना वैद    


Monday, May 16, 2022

परिवार

 



मनाने लगे 

परिवार दिवस 

अजब युग 


यह तो जुड़ा

अभिन्न रूप से ही

हमारे साथ 


कैसी कल्पना

अपने अस्तित्व की 

बिन माँ बाप 


कैसा शैशव

बिन परिवार के 

बच्चा अनाथ 


जीवन  वृक्ष

जड़ है परिवार 

रिश्ते शाखाएं 


बच्चे सलोने 

फल फूल पत्तियाँ

रिश्ते निभाएं 


मदिर गंध 

जीवन सुगंधित 

परिवार से 


मधुर गीत 

जीवन है संगीत

परिवार से ।


साधना वैद 

Saturday, May 14, 2022

मान लो मेरी बात

 



नशे में डूबी है सारी दुनिया

छाया हुआ है सुरूर चहुँ ओर

मदहोश है हर शै इस जहाँ की

मस्ती का है कोई ओर न छोर

ऐसे में दो घूँट मैंने भी पी ली

तो इतना बवाल क्यों ?

थोड़ा सा ग़म ग़लत कर लिया

तो इतने सवाल क्यों ?

कुछ देर को ही सही

मैंने जन्नत की सैर तो कर ली

कुछ देर को ही सही

मैंने नेमतों से अपनी झोली तो भर ली !

वरना तो रोज़ ही भटकता फिरता हूँ

दर ब दर एक खाली बोतल सा ! 

घर से ऑफिस की गलियों में  

दुखों का बोझ कन्धों पर लादे

ज़माने भर की फिक्रों और

दुनिया जहान की जिम्मेदारियों की

एक बड़ी सी पोटली बाँधे !

बीमार अम्माँ बाबूजी की दवा,

बच्चों की फीस, घर का किराया,

बिजली, पानी के बिल

कर्जदारों की किश्त और

घर के ज़रूरी सामान की

लम्बी सी फेहरिस्त !

जब इन्हें पूरा करने के लिए

धन का कोई इंतजाम नहीं हो पाता,

जब किचिन में लुढ़कते

आटे दाल चावल के खाली डिब्बों का

शोर और नहीं सुना जाता

और जब नफ़रत भरी तुम्हारी हुंकार

और तुम्हारे तानों को

और सहा नहीं जाता  

तो यही सुरा सुन्दरी

अपने आगोश में ले मुझे

रात भर के लिए ही सही

मगर बादशाह तो बना देती है

मेरे बालों को सहला मीठी सी थपकी दे

मुझे दुलरा के सुला तो देती है !

तब मैं अपना सारा दुःख, अपनी हर चिंता

भूल जाता हूँ और सारी दुनिया को

मुट्ठी में बाँध आसमान में उड़ने लगता हूँ !

क्यों तुम मुझसे मेरा यह क्षणिक सुख भी

छीन लेना चाहती हो ?

क्यों तुम मुझे निमिष मात्र में

राजा से रंक बना देना चाहती हो ?

क्यों तुम मेरे पंखों को क़तर कर

मुझे ज़मीन पर गिरा देना चाहती हो ?

मैं होश में आकर शर्मिन्दगी से मर जाऊँ

इससे तो अच्छा है कि  

मदहोशी के आलम में ही सही

मैं कुछ देर तो जी लूँ !

जीवन भर दुःख, अपमान, ज़िल्लत के

कड़वे घूँट ही पीता रहा

आज कुछ देर इस मादक शीतल पेय के

दो मीठे घूँट तो पी लूँ !

सुनो ना प्रिये

आज मान लो मेरी बात

बस थोड़ी सी मुझे पी लेने दो

और जी भर के मुझे जी लेने दो !

 

साधना वैद


Sunday, May 8, 2022

ओ मेरी माँ

 


मातृ दिवस की आप सभीको अनंत शुभकामनाएं

ओ माँ मेरी

देखती रही
तुम्हारा चेहरा माँ
हर आँसू में

इन होंठों पे
सहेजती रही माँ
तुम्हारी स्मित

ओढ़ती रही
संस्कार की चादर
जो दी तुमने

जीती ही रही
हर अहसास जो
पाया तुमसे

न जाने कैसे
हू ब हू हो गयी हूँ
तुम्हारे जैसी

यह मैं नहीं
सभी तो कहते हैं
पता है तुम्हें

जो देखोगी ना
अपनी बेटी पर
गर्व करोगी !


साधना वैद

Thursday, May 5, 2022

रिक्तता


 

यह कैसी रिक्तता

आकर ठहर गयी है

मेरे मन मस्तिष्क में !

कोई ख़याल नहीं,

कोई कल्पना नहीं,

कोई विचार नहीं,

कोई अनुभूति भी नहीं

फिर कहूँ भी तो क्या !

न अभिव्यक्ति के लिए

कुछ उमड़ता है मन में

न ही पहले की तरह

शब्द बेताब दिखाई पड़ते हैं

कुछ कहने को,

कुछ सुनाने को,

कुछ बताने को !

बस एक खाली कलश सी

बहती जाती हूँ

समय की धारा के साथ !

जिस दिन तूफ़ान की ज़द में

आने के बाद

थोड़ा सा भी पानी

इस कलश में भर जायेगा

मेरा वजूद

धारा की अतल गहराइयों में

समा जाएगा बिलकुल खामोशी से

और किसीको पता भी नहीं चलेगा

किस भँवर में कौन कहाँ डूबा

और किसकी कौन सी कहानी

अनसुनी ही रह गयी !

 

साधना वैद