Wednesday, May 18, 2022

वजह - लघुकथा

 



कल रात मानव तस्करों का एक गिरोह बच्चों को अगवा कर ले जाते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया ! शहर के समाचार पत्र इस सनसनीखेज खबर से अटे पड़े थे ! कई टी. वी. चैनल्स के संवाददाता अपने चैनल पर पहली ब्रेकिंग न्यूज़ देने की होड़ में उस थाने के सामने अपने अपने कैमरे और माइक सम्हाले हुए खड़े थे ! थाने के सामने ही चावल का एक बोरा और तरा ऊपर के अपने पाँच बच्चों के साथ सुमरिया भी हैरान परेशान बैठी थी जिसकी तीन साल की बेटी को तस्करों के पास से छुडा कर उसे लौटा दिया गया था !
इंस्पेक्टर के संकेत पर लोकल चैनल की संवाददाता नीरजा अपने कैमरामैन के साथ सुमरिया के पास लपकती हुई पहुँची !

“यह आपकी बेटी है जिसे इन दरिंदों से पुलिस ने छुड़ाया है ? आप बतायेंगी इसे कौन कब कैसे अगवा कर के ले गया था ? आपको कब पता चला कि आपकी बेटी गायब है ?” मन ही मन चटपटी कहानी का ताना बाना बुनते हुए नीरजा ने माइक सुमरिया के मुँह से लगा दिया ! सारे बच्चे कौतुहल से नीरजा और कैमरामैन की ओर देखने लगे जो हर एंगिल से उनकी तस्वीरें लेने में लगा हुआ था !

“अगवा ? कौनों अगवा नहीं किये हमारी लड़की को ! हम तो खुदई बेचे रहे उसे जे एक बोरी चामल के बदले में ! अब लड़की को लौटा दिए हैं तो का चामल भी वापिस देन के पड़ी हैं ? अब का हुई है ?” सुमरिया का भय और दुश्चिंता आँखों की राह बह निकले ! चौंकने की बारी अब नीरजा की थी !

“क्या ? आपने खुद अपनी लड़की को बेचा था एक बोरी चावल के बदले ? लेकिन क्यों ?”

“तो का करती ? दारू पी पीकर और पाँच पाँच बच्चा को छोड़ कर इनका बाप तो ख़तम हो गया ! मैं कहाँ से खबाती इन्हें ! सो एक जे बीच वाली लड़की बेच दई ! बड़ी बाली के दो बोरी दे रए हते लेकिन फिर उसे नईं दई !”

“क्यों ? उसे क्यों नहीं दिया ? और ये दो लडके भी तो हैं और यह सबसे छोटी वाली भी है ! आपने इसे ही क्यों दिया ?” नीरजा की जिज्ञासा बढ़ गयी थी !

“लड़का से तो बंस चलत है ! छोटी बाली अभी मेरो ही दूध पियत है ! इसे दे देती तो जे तो बैसई मर जाती !” सुमरिया ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे आँचल से लगा लिया ! “बड़ी वाली को दुई चार महीना में चौका बासन को काम मिल जई हैं तो कछु दाना पानी आ जई है घर में ! जेई थी जिसको कछु काम न था घर में !”

 

साधना वैद    


18 comments:

  1. आँखें भींग गई
    सादर नमन

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपके मन को छू सकी मेरी लघुकथा मेरी श्रम सार्थक हुआ दिग्विजय जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  2. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार संगीता जी ! सप्रेम वन्दे !

      Delete
  3. मर्म को कँपाने वाली कहानी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्वागत है विश्वमोहन जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  4. मन छूनेवाली कहानी

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  5. हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

    ReplyDelete
  6. ओह! हृदय को विदीर्ण कर गई आपकी रचना साधना जी। कथित संपन्न लोग इन साधन विहीन लोगों का दर्द कहाँ जान या समझ पाते हैं,जहाँ एक जान की कीमत एक बोरी चावल-भर है।एक माँ की विवशता कहूं या स्वार्थ क्या तर्क दिया बच्ची के जीवन का 🙏🙏🙁

    ReplyDelete
    Replies
    1. एक ग़रीब माँ के मन की व्यथा को आपने समझा आभारी हूँ आपकी रेणु जी ! ग़रीबी एक माँ को भी कितना हिसाबी बना देती है यह उसकी करुण गाथा है ! आपकी संवेदनशील प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !

      Delete
  7. हृदय स्पर्शी सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद अमृता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  8. मार्मिक कहानी

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद ज्योति भाई जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete
  9. बेहद सुन्दर हृदय स्पर्शी सृजन:)

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद संजय ! बहुत बहुत आभार आपका !

      Delete