देखो रावण
प्रतिबिम्बित होता
अंतर्मन में
काम वासना
मद मोह लालच
स्वार्थ औ’ ईर्ष्या
क्रोध, अहम्
घमंड और घृणा
के दर्पण में
जो चाहते हो
मारना रावण को
त्यागो विकार
धारो शुचिता
करुणा, प्रेम, दया
भुला दो बैर
त्याग दो घृणा
ध्वंस करो अहम्
बनो विनम्र
तभी मरेगा
मन का दशानन
छाएगा सुख
और मनेगा
असली दशहरा
पूर्ण श्रद्धा से
साधना वैद
बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteसुविचारित वक्तव्य.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रतिभा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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