Sunday, December 18, 2022

काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता

 



काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता

प्यार से उसने मेरा हर लफ्ज़ लब से छुआया होता !

मिलते जो कभी फूलों की शक्लों में प्यार के तोहफे

मेरे पन्नों के बीच उसने गुलाबों को दबाया होता !

उसके हर दर्द की हर दुःख की दवा थी मेरी तहरीरों में  

बना के काढ़ा दुआओं का उसे मैंने पिलाया होता !

देने को बेकलों का सन्देश खतों के ज़रिये

बनके कासिद मैंने बिछड़ों को मिलाया होता !

मेरे हर चिपके हुए वर्क को जब वो खोलती

अपनी लम्बी पतली गीली ऊँगली से

मैंने अपने हर सफे को और भी कस के

एक दूजे से चिपकाया होता !  

मेरे पन्नों के बीच दबे साजन के

उस बेहद प्रतीक्षित ख़त को पढ़ कर

उसने बेसाख्ता मुझे चूम अपने

धड़कते हुए सीने से लगाया होता !

काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता

प्यार से उसने मेरा हर लफ्ज़ लब से छुआया होता !



चित्र - गूगल से साभार 

 

साधना वैद

 


12 comments:

  1. बहुत सुन्दर भाव लिए रचना

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  2. वाह ! हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. वाह बेहतरीन अभिव्यक्ति शानदार रचना के लिए बधाई

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    1. हार्दिक धन्यवाद अभिलाषा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  4. किताब बनने की अभिलाषा बड़ी अच्छी लगी ....

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    1. स्वागत है कविता जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !

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  5. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आदरणीय शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  6. वाह दीदी. अलग ही प्यारा सा भाव लोक समाया है सुन्दर गीत

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    1. अरे वाह गिरिजा जी ! हार्दिक स्वागत है आपका ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !

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  7. बहुत सुन्दर रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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