Thursday, November 30, 2023

आक्रोश - एक लघुकथा

 

 


“आशू, चलो अन्दर ! मुझे किटी में जाना है ज़रा मुझे सुधा आंटी के यहाँ छोड़ आओ !”

“आया मम्मी पाँच मिनिट में ! बस थोड़ा सा ही और बचा है !”

“सुना नहीं तुमने ? दादाजी के काम तो कभी ख़तम होते ही नहीं ! मुझे देर हो रही है ना !”

मम्मी की आवाज़ में खीझ और क्रोध दोनों साफ़ समझ में आ रहे थे ! दादाजी का लाड़ला किशोर आशू इस समय उन्हें बाहर के कमरे में अखबार पढ़ कर सुना रहा था !

बहू अर्पिता का कर्कश स्वर दादा जी को सशंकित कर गया ! कहीं भोले भाले आशू को उन्हें अखबार पढ़ कर सुनाने की सज़ा न भुगतनी पड़ जाए ! कल रात अँधेरे में पानी का जग टेबिल पर रखते समय उनका चश्मा नीचे गिर कर टूट गया ! बहू को पता चलेगा तो और बवाल होगा !

“जाओ बेटा ! मम्मी बुला रही हैं ना ! मम्मी को मत बताना मेरा चश्मा टूट गया है ! मैं बाद में अखबार सुन लूँगा !” दादाजी की आवाज़ में बेचारगी झलक रही थी !

आशू को मम्मी पर बहुत गुस्सा आ रहा था ! अगली गली में ही चार घर छोड़ कर सुधा आंटी का घर है ! अखबार कोने में फेंक अन्दर कमरे में जाते हुए उसने गुस्से में जोर से मेज़ को ठोकर मारी ! काँच का जग नीचे गिर कर चूर-चूर हो गया था और आशू का पैर लहू लुहान !



चित्र - गूगल से साभार  

साधना वैद


5 comments:

  1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय यशोदा जी ! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सप्रेम वन्दे !

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत-बहुत आभार आपका !

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  4. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद हरीश जी ! बहुत-बहुत आभार आपका !

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