Monday, April 29, 2024

मुस्काते पल - सेदोका

 



तुम्हारा आना

नयनों का लजाना

बातों का बिसराना

पुराने दिन

कॉलेज का ज़माना

तेरा खिलखिलाना


याद आ गयीं

वो बिसरी सी बातें

मीठी सी मुलाकातें

मुस्काते पल 

हँसते हुए दिन 

खिलखिलाती रातें  


कैसे भूलेंगे

टेनिस का रैकेट 

कैरम की गोटियाँ

वो शरारतें 

वो खिलन्दड़ापन

छोटी लम्बी चोटियाँ 

 

आओ फिर से

महफ़िल सजाएं

हँस लें मुस्कुराएँ

न जाने फिर

ऐसे सुन्दर दिन

कभी आयें न आयें  

 

आ जाओ साथी

खुशियाँ फिर जी लें

सुख मदिरा पी लें

चूक न जाएँ

दो दिन का जीवन 

हँस हँस के जी लें !

 

चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद


Wednesday, April 24, 2024

एक दिलकश कहानी

 



दुनिया है फानी

सदा आनी जानी


सुनाती हूँ तुमको

सुनो ये कहानी


गज़ब था बुढापा

अजब थी जवानी


वो थी शाहजादी

बला की दीवानी


भाया था उसको

एक बूढा अमानी


था झुर्रीदार चेहरा 

नज़र थी रूहानी


हसीना को भाई

कमर की कमानी


सुनती थी उससे

हर दिन कहानी


धड़कता था दिल

छलकता था पानी


सुनाता था उसको

जब वो कहानी


उसे देख रोता

पिलाता था पानी


मनाता था उसको

सिखाता था मानी


सभी जानते थे

था रिश्ता रूहानी


करते थे इज्ज़त

बड़ी थी रवानी


है कितनी मनोरम

और कितनी सुहानी


दोनों अजूबों की

दिल कश कहानी


 

साधना वैद


Tuesday, April 2, 2024

भूमंडलीकरण का प्रभाव

 



इसमें संदेह नहीं है कि भूमंडलीकरण एवं बाजारवाद ने आज के युग में हर परिवार की जीवन शैली पर बड़ी तेज़ी से असर डाला है| पहले अपने घर आँगन, अपने मोहल्ले, अपने शहर तक जन जीवन सीमित था अब भूमंडलीकरण ने सबको एक जगह पर ला खड़ा किया है| पहले हर प्रांत की, हर देश की एक विशिष्ट वेशभूषा होती थी, एक संस्कृति होती थी, एक ख़ास तरह का खान पान होता था, अपने स्थान के विशेष त्योहार होते थे जो उस स्थान की पहचान होते थे लेकिन अब सबकी वेशभूषा, खान-पान, तीज त्योहार सब एक जैसे होते जा रहे हैं| टी वी और समाचार पत्रों की बातों पर विश्वास किया जाए तो अब मुस्लिम महिलाएं भी करवा चौथ का व्रत रखना चाहती हैं और कई महिलाओं ने इस वर्ष रखा भी था| इसका श्रेय भूमंडलीकरण को ही जाता है| देश विदेश की फ़िल्में, टी वी धारावाहिक और तेज़ी से पैर पसारती सोशल मीडिया ने भूमंडलीकरण को विस्तार देने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है| 

पश्चिमी देशों के पिट्जा, बर्गर, हॉट डॉग, चीन के चाऊमीन, मंचूरियन, मैगी इत्यादि भारत में भी हर शहर के हर क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय हैं और अब हर जगह मिल जाते हैं| यहाँ तक कि भारत के गाँव भी इससे अछूते नहीं रह गए हैं| वैसे ही भारत के छोले भटूरे, समोसे जलेबी, इडली डोसा, ढोकला थेपले, आलू टिक्की, दही बड़ा भी विदेशों में बहुत लोकप्रिय हो चुके हैं और हर जगह मिलते हैं| यह भूमंडलीकरण का ही प्रमाण है| इसी तरह अब युवा लड़के लड़कियों ने विदेशों की देखा देखी जीन्स और टॉप की वेशभूषा को अपना लिया है तो अब यह पहचानना मुश्किल होता है कि वे मूल रूप से वे किस जगह के रहने वाले हैं| आप किसी भी पर्यटन स्थल पर जाइए अधिकतर युवा लड़के लड़कियाँ एक ही तरह की कटी फटी जींस, एक ही तरह के ढीले ढाले टॉप और आँखों पर बड़े साइज़ के विभिन्न रंगों के गॉगल्स चढ़ाए दिख जायेंगे| अब अगर आप उनकी कुण्डली खोलने के लिए बहुत आतुर हैं तो अनुमान लगाते रहिये कि ये किस देश से यहाँ आये होंगे|

साहित्य भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं है| भाषा पर भी इसका प्रभाव पड़ा है| अध्ययन या नौकरी के सिलसिले में युवा पीढ़ी का बाहरी देशों में जाने का सिलसिला बढ़ा है| इस कारण अंग्रेज़ी भाषा का आधिपत्य भी बढ़ा है| आज की पीढ़ी हिन्दी साहित्य के स्थान पर अंग्रेज़ी की पुस्तकें पढ़ना अधिक पसंद करती है| हिन्दी का कोई उपन्यास अगर पढ़ना चाहें भी तो वे उसका अंग्रेज़ी में अनूदित वर्जन ही पढ़ना चाहेंगे हिन्दी में नहीं| यहाँ तक कि बच्चों के लिए भी अगर कॉमिक्स खरीदना हों तो वे अमर चित्र कथा, पंचतंत्र या जातक कथाओं के कॉमिक्स भी अंग्रेज़ी भाषा में अनूदित ही खरीदते हैं क्योंकि बच्चे ढाई तीन साल की उम्र से ही अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में पढ़ते हैं इसलिए उन्हें हिन्दी न तो पढ़ना आती है, न लिखना आती है, न ही बोलना या समझना आती है| मुझे भय है कि कुछ वर्षों के अंतराल के बाद आज के छोटे बच्चों के लिए हिन्दी सिर्फ घर में काम करने वाले सहायकों से बोलने की भाषा बन कर ही रह जायेगी| और अब जबकि अंग्रेज़ी का वर्चस्व इतना अधिक बढ़ चुका है तो बेस्ट सेलर्स भी अंग्रेज़ी के उपन्यास ही अधिक होते हैं| यह सोच कर बहुत दुःख होता है कि अत्यंत उत्कृष्ट एवं स्तरीय हिन्दी साहित्य होने के उपरान्त भी उसे भूमंडलीकरण के इस दौर में दोयम दर्जे का स्थान ही प्राप्त है|

साधना वैद