Monday, May 20, 2024

माँ की याद - कतौता

 



जब तुम थीं 

सुबह मुस्काती थी 

साँझ भी हर्षाती थी 


जब तुम थीं 

हर दिन गीत था 

जीवन संगीत था 


जब तुम थीं 

कितना दुलार था 

जी भर के प्यार था 


जब तुम थीं 

मन में उमंग थी 

दिल में तरंग थी 


तुम थीं न माँ

तब मैं बच्ची सी थी 

अक्ल से कच्ची सी थी 


तुम क्या गईं 

मैं तो बड़ी हो गई

खुद खड़ी हो गई


आता है याद 

बचपन सुहाना 

वो गुज़रा ज़माना 


जो गुज़ारा था 

तुम्हारे रेशमी से

आँचल की छाँव में 


हिल मिल के 

स्वर्ग से भी सुन्दर 

सुहाने से गाँव में 


चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद 

7 comments:

  1. सुंदर पंक्तियाँ।

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  2. सच है, माँ के आँचल में जो सुकून है वह दुनिया में कहीं भी नहीं

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  3. बहुत बहुत सुन्दर

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  4. माँ का रिक्त स्थान कोई नहीं भर सकता. अलबत्ता , स्मृतियाँ खाने भर देती हैं. प्यारी सी माँ की स्मृति . अच्छा लगा. नमस्ते.

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  5. वाह! बहुत सुन्दर रचना।
    मां है तो दुनिया जन्नत है।

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  6. सच में माँ, माँ होती है। माता का कोमल क्रोड़ ही शांतिनिकेतन होता है।

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