Tuesday, August 20, 2024

हाइकु दोहे

 



धरा पुकारे, चीख कर सुन ले, पागल गाँव

बंद करो ना, छीनना मनहर, शीतल छाँव !

 

तप्त ज़मीं थी, रो पड़े खग जन, कर धिक्कार

अब तो रोको, मूर्खजन अपना, दुर्व्यवहार !

 

बरस रही, है झूम के शीतल, मंद फुहार

चलती देखो, घूम के सुरभित, मस्त बयार !

 

चितवन से, घायल करे अरु, स्मित से घात

अँखियन से, सब दुःख हरे दे, बातों से मात !

 

परम पिता, करुणा तेरी की है, हमको आस,

बुझ जायेगी, शरण में व्याकुल, मन की प्यास !

 

साधना वैद

 

 


2 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !

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