कौल पिता का,
भटके जंगलों में, सन्यासी राम
निभाते रहे,
दशरथ का वादा, करुणाधाम
हर ली सीता, क्रोधित रावण ने, हुआ अनर्थ
जलने लगी, प्रतिशोध
की आग, छिड़ा
संग्राम !
पन्नों के बीच, सूखी सी पाँखुरियाँ,
गीली सी यादें,
तुम्हारी छवि, जब
आती है याद, जगाती
रातें,
भीगी सड़क, रिमझिम
फुहार, हाथों में हाथ
लम्बी सी सैर, आकाश पाताल की, बातें ही
बातें !
दो अक्स विपरीत।
ReplyDeleteदोनों बहुत सुंदर !
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