किसी काम के
नहीं निकले तुम भी
भुवन भास्कर !
हैरान हूँ, कुंठित हूँ, कुपित हूँ तुम्हारा यह
लिजलिजा सा रूप देख कर !
जब आया समय परीक्षा का
हो गए तुम भी बुरी तरह फेल,
छूट गए पसीने तुम्हारे भी
जैसे डाल दी गयी हो
तुम्हारी नाक में भी नकेल !
जब परखा गया तुम्हारा पराक्रम
जाकर छिप गए क्षितिज के किसी कोने में
दिखा न पाए कोई भी कमाल
बिता दिया तुमने भी सारा दिन
पीली, सुनहरी, चमकीली
धूप की गुनगुनी सी चादर ओढ़
विस्तृत गगन में
पैर फैला कर सोने में !
क्या हो गया रवि महाराज ?
कितना तो व्यापक हुआ करता था
तुम्हारा प्रभा मंडल
और प्रखर प्रकाश से सदा
जगमगाता रहता था तुम्हारा
दीप्तिमान मुख मंडल !
कहाँ चला गया सारा शौर्य तुम्हारा ?
कहाँ चली गई विश्व कल्याण की चिंता ?
और वसुधैव कुटुम्बकम का
तुम्हारा हितकारी नारा ?
लगता है सांसारिक कर्मियों की
अकर्मण्यता से तुम भी प्रभावित हो गए हो
और निस्पृह भाव से पूरी तरह तटस्थ हो
सूर्योदय से सूर्यास्त तक की
जैसे-तैसे अपनी ड्यूटी निभा
सब कुछ आधा अधूरा छोड़ कर
घर भागने के अभ्यस्त हो गए हो !
वरना दिन दहाड़े क्या ऐसा अनर्थ होता,
भरी दोपहरी में गगन मंडल में तुम्हारे रहते
ठीक तुम्हारी आँखों के सामने
निर्दोष बहनों का सिन्दूर यों उजड़ता
छोटे-छोटे अबोध बच्चों का भविष्य
यों अंधकारमय होता !
अब तुम्हारे अस्तित्व पर, तुम्हारी सत्ता पर,
तुम्हारी नीयत पर, तुम्हारी निष्ठा पर
प्रश्न तो उठेंगे ही रविराज,
लोगों का भरोसा टूटा है,
उनकी भक्ति तिरस्कृत हुई है,
उनके सर से छत हट गई है
और पैरों के नीचे से
ज़मीन खिसक गई है,
तुम्हें जवाब तो देना ही होगा
भुवन भास्कर
कल दो या आज !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 26 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे ! कल २६ मई है !
Deleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !
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