एक राजा था ! उसको कविता सुनने का बहुत शौक था ! उसके दरबार में यदि कोई कवि अपनी कविता सुनाने आता तो वह सारे काम छोड़ कर उसकी कविता ज़रूर सुनता और कविता लिखने वाले को खूब सारा इनाम भी देता ! बहुत से गरीब कवियों ने राजा को कवितायें सुना कर अपनी ग़रीबी दूर कर ली !
उसी देश में चार मूर्ख भी रहते थे ! उन्हें ना तो कुछ पढ़ना लिखना आता था ना ही कोई हुनर ! उन्होंने भी यह खबर सुनी कि राजा कवियों को बहुत सारा इनाम देता है तो वे उस कवि से मिलने गये जिसे कविता सुनाने पर इनाम मिला था और उससे पूछा कि कविता क्या होती है ? कवि ने उन्हें बताया कि जो भी बात गाकर कही जाये उसे कविता कहते हैं जैसे सामने मन्दिर में जो आरती हो रही है वह भी कविता है ! मूर्खों ने देखा कि लोग मन्दिर में भजन गा रहे हैं जिसके बीच में ‘जय रामा जी जय रामा’ बोलते जाते हैं ! उन्हें यह बात आसान लगी ! कवि ने उन्हें यह भी बताया कि वह आसपास जो भी कुछ देखता है उसी पर कविता लिख देता है !
चारों मूर्ख इतनी जानकारी लेकर अपने घर के सामने आकर बैठ गये ! और चारों तरफ देखते हुए कविता बनाने का प्रयास करने लगे ! जब तक कोई अच्छा विचार दिमाग में नहीं आया वे ताली बजा बजा कर ‘जय रामा जी जय रामा’ ही दोहराते रहे ! तभी पहले मूर्ख ने अपने पड़ोस के मकान में एक बूढ़ी दादी को चरखा चलाते हुए देखा ! दादी तेज़ी से चरखा घुमा रही थी और सूत बना रही थी ! चरखे से भन्न-भन्न की आवाज़ निकल रही थी ! पहला मूर्ख बोला,
”लो जी मेरी कविता तो हो गयी,
”चरखा भन्न-भन्न भन्नाये“
बाकी तीनों ने प्रसन्न होकर उसका उत्साह बढ़ाया
“जय रामा जी जय रामा“
अब दूसरे मूर्ख ने देखा कि सामने एक तेली ने अपने बैल को कोल्हू से खोल दिया है और उसे खाने के लिये भूसा और खली दी है ! वह उत्साह से बोला, “मेरी कविता की लाइन भी बन गयी,
”तेली का बैल खली भुस खाये“
बाकी सब ताली बजा कर बोले
”जय रामा जी जय रामा “
अब तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था ! उन्होंने यात्रा के लिये कुछ सामान बाँधा और राजा के महल की तरफ चल दिये सोचा आधी कविता तो बन गयी आधी रास्ते में बना लेंगे ! कहीं वो कविता भूल ना जायें इसलिये अपनी लाइनें दोहराते जा रहे थे !
“चरखा भन्न-भन्न भन्नाये
जय रामा जी जय रामा
तेली का बैल खली भुस खाये
जय रामा जी जय रामा“
बीच रास्ते में वे खाने पीने के लिये एक खेत के पास बैठ गये ! खेत में छिपा हुआ एक खरगोश खाने के लालच में धीरे-धीरे उनकी पोटली की तरफ बढ़ने लगा ! तीसरे मूर्ख ने देखा और गाकर बोला,
“चुपके चुपके आता कौन“
बाकी सब बोले
“जय रामा जी जय रामा “
फिर बोले, “अरे वाह यह भी कविता बन गयी 1”
उनका शोर सुन कर खरगोश वापिस खेत की तरफ भागने लगा तो चौथा मूर्ख बोला,
“देख लिया तो भागे क्यों“
बाकी बोले
“जय रामा जी जय रामा“
सबने खुश होकर एक दूसरे की पीठ ठोकी और कविता पूरी हो जाने पर सबको बधाई दी ! अब तो चारों बीच सड़क पर ज़ोर-ज़ोर से कविता पाठ करते हुए राजा के महल की तरफ जाने लगे !
“चरखा भन्न-भन्न भन्नाये
जय रामा जी जय रामा
तेली का बैल खली भुस खाये
जय रामा जी जय रामा
चुपके चुपके आता कौन
जय रामा जी जय रामा
देख लिया तो भागे क्यों
जय रामा जी जय रामा“
लेकिन राजा के महल तक पहुँचते-पहुँचते रात हो चली थी ! चारों ने महल के सिपाहियों को अपने आने की वजह बताई और कहा कि वे राजा को अपनी कविता सुनाना चाहते हैं ! सिपाहियों को पता था कि राजा कवियों का सम्मान करते हैं इसलिये उन्होंने उन चारों को अन्दर तो आने दिया लेकिन उन्हें यह भी बता दिया कि राजा जी से मुलाकात सुबह ही हो पायेगी ! रात को उन्हें महल की ऊँची दीवारों से लगे हुए बरामदे में ही सोना होगा ! चारों वहीं पर अपना सामान रख कर लेट गये और कहीं सुबह तक अपनी कविता भूल ना जायें इसलिये अपनी-अपनी लाइनें बोल-बोल कर दोहराने लगे !
अब हुआ यह कि दो चोर महल में चोरी करने के इरादे से आधी रात को महल की दीवार फलाँग कर अन्दर घुसे और राजा के खज़ाने की तरफ बढ़ने लगे ! पर रास्ते में तो मूर्खो का कवि सम्मेलन चल रहा था ! चोरों के कान में आवाज़ आई,
”चुपके-चुपके आता कौन
जय रामा जी जय रामा“
चोर समझे कि उन्हें देख लिया गया है तो वे डर कर भागने लगे ! तभी उनको दूसरी आवाज़ सुनाई दी ,
”देख लिया तो भागे क्यों
जय रामा जी जय रामा“
चोर समझे कि उन्हें पहचान भी लिया गया है ! अब तो उनके हौसले बिल्कुल पस्त हो गये ! उन्होंने दौड़ कर मूर्खों के पैर पकड़ लिये और माफी माँगने लगे ! मूर्खों ने चोरों को रस्सी से बाँध कर अपने पास बैठा लिया और फिर अपनी कविता रटने में लग गये ! सारी रात चोरों से भी ताली बजवा-बजवा कर “जय रामा जी जय रामा“ गवाते रहे !
सुबह जब राजा के सिपाही उनसे मिलने आये तो उन्होंने देखा कि चार की जगह छ: लोग बैठे हैं ! मूर्खों ने उन्हें बताया कि रात को उन्होंने दो चोर भी पकड़े हैं ! सिपाहियों ने चोरों के हाथों में हथकड़ियाँ लगा दीं और राजा को तुरंत इसकी सूचना दी ! राजा ने चारों मूर्खों को अपने पास बुलाया और चोर पकड़ने के लिये उनकी तारीफ की और धन्यवाद भी दिया ! अब मूर्ख बोले,
“महाराज हमारी कविता भी तो सुन लीजिये उसे सुनाने के लिये ही तो हम यहाँ आये हैं !”
राजा बोला, “हाँ हाँ ज़रूर सुनाओ !“
चारों ने कविता पाठ शुरू किया,
”चरखा भन्न-भन्न भन्नाये
जय रामा जी जय रामा
तेली का बैल खली भुस खाये
जय रामा जी जय रामा
चुपके-चुपके आता कौन
जय रामा जी जय रामा
देख लिया तो भागे क्यों
जय रामा जी जय रामा”
राजा इस ऊटपटाँग कविता को सुन हँसते-हँसते लोटपोट हो गया लेकिन क्योंकि इसी कविता से चोर पकड़े गये थे इसलिये उसने चारों मूर्खों को दोगुना इनाम देकर विदा किया ! एक चोरों को पकडवाने के लिये और दूसरा कविता सुनाने के लिये ! मूर्ख खुशी-खुशी अपने गाँव वापिस आ गये ! बस एक ही गड-बड़ हो गयी कि अब वे खुद को बहुत बडा कवि समझने लग गये थे और इसी तरह की ऊटपटाँग कवितायें बना-बना कर गाँव वालों को सुनाते रहते थे !
साधना
उपसंहार : मूर्खता और कविता दोनों बहुत उपयोगी हैं।
ReplyDeleteयह पोस्ट पढ़ कर बचपन की याद आ गयी....
ReplyDeleteअब तो नानी-दादी की कहानियों के दिन गायब होते जा रहे हैं....
..................
विलुप्त होती... नानी-दादी की बुझौअल, बुझौलिया, पहेलियाँ....बूझो तो जाने....
.........
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
आजकल वहीं चारों मंच लूट रहे हैं.. :)
ReplyDeleteजय हो!!
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
Hilarious !!! It was fun reading it :-)
ReplyDeleteमज़ा आया...,रामनवमी की शुभकामनाएँ...."
ReplyDeletegood story as always...enjoyed reading it.
ReplyDeleteबाल साहित्य में एक कड़ी और जुडी |बहुत अच्छा
ReplyDeleteलगा |कहानी में बहुत मजा आया |बधाई
आशा
सारांश ...
ReplyDeleteमूर्ख अगर कवि बन जाए तो भूखा तो नही मरेगा ...
आपकी कहानी बहुत मजेदार लगी ...
waah....bahut mazaa aayaa.....aur seekh mili so bonas..........!!
ReplyDeletemajedaar rahi ji ye kahaani...
ReplyDeletekunwar ji,
श्रद्धेय साधना जी,
ReplyDeleteशुक्रिया।
शुक्रिया कि आपने मेरा हौसला बढ़ाया।
शुक्रिया कि आपने पढऩे के लिए इतना अच्छा मौका (आपका ब्लॉग) दिया। अभी तो आपके ब्लॉग पर एक कहानी और कुछ कविताएं ही पढ़ी है। इसे पूरा पढऩा है।
kahani rochak rahi aur aage padhne k liye utsahit karti rahi.
ReplyDeletelekin ant me chor aur kavi..ki tulna dekh ab ham sharmane lage hai ki hame b kahi un murkh kaviyo ki pankti me to na gina jayega??? (ha.ha.ha.)
acchhi rachna.badhayi.
aur dhanyewad mere blog par aane k liye.
:) muskurahat to aani hi thi....
ReplyDeletebahut achi kahani thi..
आपका Blog देखकर बहुत आनंद आया. आप बहुत मजेदार लिखती है. बच्चे तो बच्चे कुछ पल के लिए मैं भी बच्चा बन गई. हमारी यशस्वी लेखिका को बधाई.
ReplyDeleteमज़ा आया..
ReplyDeletemuskurahat to aani hi thi....
ReplyDeletebahut achi kahani thi..
बाल मनविज्ञान पर आपकी पकड़ सराहनीय है।अच्छी रचना । बधाई!
ReplyDeleteयह कहानी तो बच्चों के लिये नहीं ही है हाँ मंच के उन कवियों के लिये ज़रूर है जो जय रामाजी जय रामाजी कर रहे हैं ।
ReplyDeleteएक बात पूछँ.. इन लोगों को अभी ब्लॉग के बारे में तो पता नहीं चला ना ?
खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
ReplyDeleteस्वरों में कोमल निशाद
और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री
भी झलकता है...
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा
जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
..
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