Thursday, April 8, 2010

एक खाऊँ कि दो खाऊँ ( बाल कहानी ) १०

किसी गाँव में एक महा आलसी लड़का अपनी माँ के साथ रहता था ! उसकी माँ घर और खेत के सारे काम खुद करती थी और बेटा सारे दिन या तो सोता रहता था या गाँव भर में छोटे बच्चों के साथ हुडदंग मचाता रहता था ! लाड़ प्यार के मारे माँ अपने बेटे से कुछ भी नहीं कहती थी !
एक दिन गाँव की औरतों ने उसे समझाया, “अगर ऐसे ही चलता रहा तो तुम्हारा बेटा कभी कोई काम नहीं सीख पायेगा और एकदम निखट्टू हो जाएगा ! तुम कब तक उसके लिये काम करती रहोगी ! तुम्हारा भी तो बुढ़ापा आएगा ! तुम उसे काम करने के लिये हर रोज शहर भेजा करो ! उसे भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए !“
माँ को बात समझ में आ गयी ! अगले दिन उसने अपने बेटे के लिये चार रोटियाँ बनाईं और एक कपड़े मे बाँध कर उसे दे कर कहा, “बेटा शहर जाओ, कुछ काम करो और जो पैसे मिलें उन्हें लेकर शाम को ही घर वापिस आना ! भूख लगे तो ये रोटियाँ खा लेना !“
बेटा गाँव से शहर की ओर काम की तलाश में निकल पड़ा ! चलते-चलते वह गाँव से बहुत दूर आ गया ! उसे जोर की भूख लग आई ! सामने एक अंधा कुआँ था जिसका पानी सूख चुका था और अब उसमें चार परियों ने अपना बसेरा बना लिया था ! लड़का कुए के चबूतरे पर बैठ गया और रूमाल खोल कर रोटियों को देख सोचने लगा ‘माँ ने चार रोटियाँ रखी हैं अगर कुछ देर बाद फिर से भूख लगी तो क्या करूँगा ! इसी उधेड़बुन में वह जोर-जोर से बोलने लगा,
”एक खाऊँ
कि दो खाऊँ
कि तीन खाऊँ
कि चारों ही खा जाऊँ !“
यह आवाज़ कुए के अंदर परियों के कान में पड़ी जो दिन में तो सोया करती थीं और रात को बाहर निकलती थीं ! वो डर गयीं ! समझीं कोई उन चारों परियों को खाने की बात कर रहा है ! वो हाथ जोड़ कर बाहर आयीं ! साथ में एक जादू का बटुआ भी लाईं और लड़के से बोलीं, ”भाई तुम तो किसीको मत खाओ बदले में यह बटुआ लेलो ! यह जादू का है ! यह कभी खाली नहीं होता ! इसमें जब भी हाथ डालोगे तुम्हें रुपये मिल जाया करेंगे !”
लड़का बहुत खुश हो गया और परियों को धन्यवाद देकर अपने घर की तरफ चल पड़ा ! सोचने लगा कि अब तो माँ बहुत खुश हो जायेगी ! गाँव से पहले रास्ते में एक सराय पड़ी ! लड़का वहाँ कुछ खाने के लिये रुक गया ! उसके पास पैसों की तो अब कोई कमी थी नहीं इसलिए उसने खूब सारी अच्छी-अच्छी चीजें लाने का हुक्म दिया ! सराय वाले ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा ! उसकी हुलिया देख उसे शक हो रहा था कि वह खाने की कीमत चुका भी पायेगा या नहीं ! इसलिए उसने पूछ ही लिया, ”तुम्हारे पास पैसे-वैसे भी हैं या ऐसे ही मुफ्त में खाने की सोच रहे हो !“
लड़का बोला, ”मेरे पास तो जादू का बटुआ है जिसमें रुपये कभी खत्म ही नहीं होते ! विश्वास नहीं होता तो ये देखो !“ और उसने सराय वाले को कई बार अपने बटुए में से रुपये निकाल कर दिखाए ! सराय वाला बहुत बेईमान और चालाक आदमी था ! उसने लड़के की खूब खातिर की और उसके साथ दोस्ती भी कर ली ! खाना खतम होने के बाद उसने लड़के से कहा,”खाने के बाद थोड़ा आराम ज़रूर करना चाहिए ! कमरे में थोड़ी देर सो लो फिर चले जाना !“
लड़का थका हुआ तो था ही फ़ौरन बात मान कर आराम करने के लिये कमरे में चला गया ! जब लड़का सो गया तो सराय वाले ने उसका जादू का बटुआ चुरा लिया और उसकी जगह वैसा ही दूसरा बटुआ रख दिया ! जागने पर लड़का नकली बटुआ लेकर ही अपने गाँव की ओर चल दिया ! उसका असली बटुआ तो सराय वाले ने चुरा लिया है यह उसे पता ही नहीं चल पाया ! खुशी-खुशी वह अपनी माँ के पास पहुँचा ! माँ ने कहा, “आ गए बेटा ? कुछ काम मिला ? कुछ पैसे कमाए ?“
बेटा बोला, ”माँ देखो तो मैं तुम्हारे लिये कितना बढ़िया बटुआ लाया हूँ !“
माँ बोली, “अरे बेटा बटुए का हम क्या करेंगे ? हमारे पास रखने के लिये इतने पैसे ही कहाँ हैं ?“
बेटा बोला, ”माँ इसे खोल कर तो देख इसमें पैसे ही पैसे हैं !“
बटुआ खोल माँ ने अंदर टटोल कर देखा तो वह खाली था !
वह बोली, “अरे यह तो खाली है !”
बेटे ने भी बटुए में बार-बार हाथ डाल कर देखा लेकिन वह तो खाली का खाली ही रहा ! माँ ने उसे खूब डाँटा ! बेटा मुँह लटका कर बैठ गया !
दूसरे दिन बेटे ने माँ से कहा, “माँ एक बार फिर मेरे लिये रोटी बना दे ! आज मैं ज़रूर कुछ कमा कर लाउंगा !“
माँ ने उसके लिये आज भी चार रोटियाँ बनाईं और एक कपड़े में बाँध कर उसे दे दीं ! लड़का सीधा उसी कूए के पास पहुँचा और रोटी का कपड़ा खोल कर बैठ गया और जोर जोर से बोलने लगा,
”एक खाऊँ
कि दो खाऊँ
कि तीन खाऊँ
कि चारों ही खा जाऊं !”
उसकी आवाज़ सुन कर परियाँ फिर जाग गयीं ! सोचने लगीं कि यह मुसीबत तो फिर आ गयी ! वो फिर कूए के बाहर आयीं और लड़के से बोलीं, “क्यों भाई कल हमने तुमको इतना अच्छा उपहार दिया तुम फिर चारों को खाने की बात करने लगे !“
लड़का बोला, ”वह बटुआ तो नकली था ! उसमें तो सिर्फ एक बार ही पैसे निकले फिर वो खाली हो गया !”
परियों ने कहा, ”ऐसा हो ही नहीं सकता !”
लड़का बोला, ”लेकिन ऐसा ही हुआ है !”
परियाँ सोच में पड़ गईं ! वो एक बार फिर कूए में गयीं और इस बार एक कटोरा लेकर आयीं और उसे लड़के के हाथ में देकर बोलीं, “यह जादू का कटोरा है ! इसमें हाथ डाल कर जिस खाने की चीज़ का नाम लोगे वही निकल आयेगी ! इसे ले जाओ और अब दोबारा हमें परेशान मत करना !”
लड़का बहुत खुश हो गया और कटोरा लेकर घर की तरफ चल दिया ! रास्ते में फिर उसी सराय में रुका ! सराय वाला उसे देख कर बोला, “आओ दोस्त आओ ! तुम्हारे लिये क्या खाना लगवाऊं ?”
लड़का बोला, “कुछ भी नहीं ! आज तो मेरे पास जादू का कटोरा है !”
सराय वाला बोला, “अच्छा हमें भी तो दिखाओ !” लड़के ने कटोरे में हाथ डाला और बोला, “जलेबी !” कटोरा जलेबियों से भर गया ! लड़के ने खुद भी छक कर खाईं और सराय वाले को भी खिलाईं ! सराय वाले के आग्रह पर लड़के ने कटोरे से पूरी, कचौड़ी, लड्डू, इमरती आदि कई पकवान निकाल कर उसे दिखाए और सबको खिलाए ! सराय वाला बोला, “ठीक है ठीक है ! लेकिन मैं तुमको आराम किये बिना यहाँ से नहीं जाने दूँगा ! आखिर तुम तो मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो !” लड़का फिर से मान गया और आराम करने के लिये कमरे में जाकर सो गया ! सराय वाले ने इस बार भी उसका जादू का कटोरा चुरा लिया और उसकी जगह बिलकुल वैसा ही दूसरा नकली कटोरा रख दिया ! सोकर उठने के बाद लड़का कटोरा लेकर अपने गाँव की ओर चल दिया ! इस बार उसकी माँ उसे जल्दी आया देख हैरान थी ! बोली, “बेटा आज तो तुम बड़ी जल्दी आ गए !”
लड़का बोला, “हाँ माँ १ देख आज मैं कितनी बढ़िया चीज़ लाया हूँ ! अब तो तुझे चूल्हा फूंकने की कोई ज़रूरत ही नहीं है माँ ! हम रोज अच्छे-अच्छे पकवान खाया करेंगे ! तू जल्दी से थाली ले आ !”
हैरान माँ रसोई से थाली ले आई और लड़का कटोरे में हाथ डाल कई पकवानों के नाम लेता रहा लेकिन कुछ भी नहीं निकला ! माँ को अपने बेटे की मूर्खता पर बहुत गुस्सा आया ! दुखी होकर उसने अपना माथा पीट लिया ! लड़का भी हैरान परेशान होकर खिन्न मन से सोने चला गया ! उसे समझ में नहीं आ रहा था कि घर आने पर उसकी चीज़ों का जादू कहाँ गुम हो जाता है ! तीसरे दिन फिर वह माँ से जिद कर रोटियाँ बनवा कर काम की तलाश में घर से निकला और उसी कूए के पास पहुँच कर खाने के लिये बैठ गया ! आज भी वह जोर-जोर से बोल रहा था,
“एक खाऊँ
कि दो खाऊँ’
कि तीन खाऊँ
कि चारों ही खा जाऊं !”
बेचारी परियाँ फिर घबरा कर बाहर आयीं और लड़के से पूछा, “क्यों भाई रोज-रोज क्यों हमें परेशान करने के लिये क्यों आ जाते हो ?”
लड़का बोला, “तुम्हारा तो कटोरा भी खराब निकला ! सिर्फ एक बार ही काम आया !”
यह सुन कर परियों का माथा ठनका ! उन्होंने लड़के से सारी बातें विस्तार से बताने के लिये कहा ! लड़के ने दोनों दिन सराय होते हुए घर जाने वाली बात परियों को बताई और यह भी बताया कि सराय वाले से उसकी कितनी पक्की दोस्ती हो गयी है ! परियों को सारा माजरा समझ में आ गया ! वो कूए के अंदर गयीं और एक थैला लेकर बाहर आईं ! थैला उन्होंने लड़के को दिया ! लड़के ने पूछा, “इसमें क्या है ?”
परियों ने कहा, “खुद खोल कर देखो !” लड़के ने जैसे ही थैला खोला उसमें से एक सोंटा बाहर निकला और लड़के को पीटने लगा ! लड़का मदद के लिये चिल्लाने लगा ! परियाँ बोलीं, “बस गुरू रुक जाओ !“ सोंटा अपने आप रुक गया और थैले के अंदर घुस गया ! परियों ने लड़के को समझाया, “इसका नाम गुरूजी सोंटा है ! जो भी इस थैले को खोलता है यह उसीको पीटने लगता है ! जब तुम कहोगे 'गुरु रुक जाओ' तो यह अपंने आप थैले में आ जायेगा ! जिसने भी तुम्हारा बटुआ और कटोरा चोरी किया है वह ज़रूर इस थैले को भी खोलेगा और पिटेगा ! बस तुम उसीसे अपना बटुआ और कटोरा वापिस मांग लेना !”
थैला लेकर लड़का सीधे सराय पर पहुंचा ! सराय वाला बोला, “आओ दोस्त बैठो ! इस बार क्या नयी चीज़ लेकर आये हो ?” लडके ने कहा, “इस बार लाया तो कुछ भी नहीं हूं लेकिन बहुत थका हुआ हूँ इसलिए आराम करना चाहता हूँ !” सराय वाले ने कहा, “हाँ हाँ क्यों नहीं ! कमरे में जाकर सो जाओ !” दरअसल सराय वाले ने लड़के की बगल में दबा हुआ थैला देख लिया था !
लड़का कमरे में जाकर सोने का नाटक करने लगा ! थोड़ी देर बाद सराय वाला दबे पाँव अंदर आया और थैले को खोल कर देखने लगा ! थैले से गुरूजी सोंटा बाहर निकल पड़ा और सराय वाले को दनादन पीटने लगा ! सराय वाला कमरे के बाहर भागा ! सोंटा भी उसके पीछे-पीछे बाहर आकर उसकी धुनाई करने लगा ! जब सराय वाला बहुत हाय-हाय करने लगा तो लडके ने सोंटे को आदेश दिया, “बस गुरू रुक जाओ !” डंडा वापिस थैले में घुस गया ! लड़के ने सराय वाले से कहा, “तुमने मेरा बटुआ और कटोरा जो चुराया है उसे वापिस करो !“ पहले तो सराय वाले ने चोरी से इन्कार किया पर लड़के के हाथ में थैला देख कर बोला, “ठहरो मैं अभी लाता हूं !” और उसने अंदर से लड़के का असली बटुआ और कटोरा लाकर उसे दे दिया !
लड़का इस बार अपना असली सामान लेकर अपनी माँ के पास पहुँचा और बोला, “जल्दी आ माँ देख इस बार मैं असली बटुआ और कटोरा ले आया हूँ !”
माँ बोली, “मुझे कुछ नहीं चाहिए तुम रोज-रोज नाटक मत किया करो !”
बेटे ने कहा, “तू देखो तो सही माँ!” और उसने कटोरे से तरह-तरह के मीठे नमकीन पकवान निकाल माँ के सामने सजा दिए ! दोनों ने भरपेट खाना खाया ! माँ ने बटुए से रुपये भी निकाल कर देखे ! माँ को प्रसन्न देख बेटा भी बहुत खुश हुआ ! दोनों खूब मज़े से रहने लगे ! जब माँ ने उस थैले के बारे में पूछा तो बेटा बोला, “इसमें कुछ नहीं है ! इसको बस टंगा ही रहने दिया करो !“
एक दिन उत्सुकतावश माँ ने थैले को खोला तो सोंटा दन से निकल कर माँ को ही पीटने लगा ! बेटा पास में ही था उसने सोंटे को रोक दिया और वापिस थैले मे डाल दिया और माँ को समझाया यह गुरूजी सोंटा है और यह चोरों की पिटाई के लिये बना है ! धीरे-धीरे माँ बेटा खूब संपन्न हो गए ! कई बार चोरों ने उनके यहाँ हाथ साफ़ करने की सोची पर हर बार गुरूजी सोंटे से पिट कर खाली हाथ ही लौटे !
परियों की कहानी सबसे अनजानी थी ! महा आलसी और निखट्टू लड़का अब गाँव वालों की नज़र में सबसे चतुर और धनी व्यक्ति बन गया था और सब उसकी बहुत इज्ज़त करते थे !

साधना वैद !

8 comments:

  1. लम्बी कथा है..सुबह पढ़ते हैं.

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  2. कहानी बहुत अच्छी लगी |बहुत अंतराल के बाद लिखी
    गई|ऐसा क्यों ?
    आशा

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  3. बहुत ही पुरानी कहानी आज पढ़ कर बहुत अच्छा लगा जी!मेरी दादी जी की याद तजा हो गयी एक दम!वो भी ऐसी-ऐसी ही कहानियां हमे सुनाती थी!ये वाली भी सुनाई थी उन्होंने!
    धन्यवाद है जी एक बार फिर.....

    कुंवर जी,

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  4. Rashmi Kakrania Vaid commented on your link:

    "Was fun reading this one too !!!"

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  5. Kavita Vaid commented on your link:

    "oh I remember this story....good to read it again after a long time :-)

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  6. aapne to bachapan kee yad dila dee.

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  7. बचपन मे यह कहानी सुनी थी आज फिर पढ़कर मज़ा आ गया । कटोरा और बटुआ तो हमने अपनी मेहनत से हासिल कर लिये हैं वह सोटा ज़रूर चाहिये , बहुत से बे ईमानो की पिटाई करना है ..
    साधना जी , आपको पता है वह परियों वाला कुआँ कहाँ है ?

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  8. बच्चों को कहानी बहुत अच्छी लगी.

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