Wednesday, September 22, 2010

कॉमन वेल्थ गेम्स और हमारी तैयारियाँ

समाज में अपनी प्रतिष्ठा और स्थान बनाए रखने की चाहत हर व्यक्ति में होती है और इसके लिए उसे बहुत सतर्कता और सावधानी से अपना हर कदम उठाना होता है ! वह कोई ऐसा काम नहीं करता जिससे उसके घर की विपन्नता, कमियाँ या तुलनात्मक रूप से क्षुद्र स्थितियाँ लोगों की नज़रों में आयें ! इसे ही समझदारी कहते हैं ! लेकिन हमारे देश के नेताओं को क्या हो गया है ? ये क्यों सारे विश्व के सामने हमारे देश को शर्मिन्दा करने पर तुले हुए हैं ? अभी तक तो देश में जो कुछ हो रहा था वह हमारा घरेलू मामला था ! नेताओं और प्रशासन की मिलीभगत से अस्तित्व में आये भ्रष्टाचार, विश्वासघात, बेईमानी, अनुभवहीनता और अकर्मण्यता का कड़वा स्वाद अभी तक तो देशवासी ही चख रहे थे कॉमन वेल्थ गेम्स की मेजबानी का दायित्व अपने ऊपर लेकर उन्होंने सारे विश्व में अपनी ‘शोहरत’ का परचम खूब ऊँचा लहरा दिया है !
हमारे यहाँ किसी भी सच्चाई को नकारने की और अनदेखा करने की आदत नेताओं ने डाल ली है इसीलिये उन्हें कोई कमी कहीं दिखाई नहीं देती ! किसीको भूले भटके कुछ दिखाई दे भी जाता है और वह मुँह खोलने की कोशिश करता भी है तो उसे बागी मान कर ना सिर्फ चुप करा दिया जाता है वरन महीनों तक इस ‘धृष्टता’ के लिये उससे स्पष्टीकरण माँगा जाता है ! कॉमन वेल्थ गेम्स की मेजबानी स्वीकार ना करने की उचित और समझदारी भरी सलाह श्री मणिशंकर अय्यर ने दी थी जिसे अमान्य कर दिया गया ! श्री जयराम नरेश ने इतना भर कह दिया था कि हमारे देश के शहर विश्व के सबसे गंदे शहर हैं तो बवाल मच गया था ! सायना नेहवाल ने यह कह दिया था कि दिल्ली की तैयारियां विश्व स्तर की नहीं हैं तो उन्हें माफी माँगनी पड़ गयी थी ! देखते रहो, कहो कुछ मत और सुधारने के लिये करो भी कुछ मत ! बस चुपचाप पैसे बटोरते रहो और कार्यकाल समाप्त हो जाने पर खामोशी से अच्छी-अच्छी प्रतिक्रियाएं और लच्छेदार कमेंट्स देकर एक सच्चे ‘देशप्रेमी’ होने का दम भरते रहो !
कॉमन वेल्थ गेम्स शुरू होने में मुश्किल से दस बारह दिन बचे हैं ! बाढ़ के प्रकोप की प्राकृतिक आपदा तो सर पर है ही, जामा मस्जिद के पास टूरिस्ट बस पर आतंकी हमले ने सुरक्षा व्यवस्था की पोल भी खोल दी है ! फुटब्रिज के ढह जाने से किस स्तर का और कितना शानदार काम हुआ है इसकी कलई भी खुल गयी है ! काम को देरी से निष्पादित करने के पीछे भी सोची समझी रणनीति होती है ! समयाभाव के कारण बहुत जाँच परख हो नहीं पाती और जो ठेकेदार निर्धारित समय में काम पूरा कर देने का जिम्मा ले लेता है उसकी चाँदी हो जाती है और ऐसे में भ्रष्टाचार की क्या भूमिका होती है यह तो सर्वविदित है ही ! काम किस स्तर का होता है यह खेल आरम्भ हो जाने से पहले ही ढह गए पुल से सिद्ध हो रहा है ! जो काम चार महीने पूर्व समाप्त हो जाना चाहिए थे वे अभी तक चल रहे हैं ! जबकि कई देशों के डेलीगेट्स आ चुके हैं और अपना असंतोष भी व्यक्त कर चुके हैं ! सफाई का यह आलम है कि जहाँ खिलाड़ियों को ठहराया गया है वहाँ के टॉयलेट्स तक साफ़ नहीं करवाए गये ! उनको वहाँ के कर्मचारी और मजदूर इस्तेमाल कर रहे थे ! कोमन वेल्थ गेम्स के प्रभारी माइक हूपर जब निरीक्षण के लिये खेल गाँव पहुँचे तो बिस्तर से कुत्ता कूद कर भागा ! बारिश और बाढ़ के कारण सारी दिल्ली जलमग्न हो रही है इसकी वजह से मच्छरों और बीमारियों के फ़ैलने का खतरा भी मंडरा रहा है ! इन सबका नतीजा यह हो रहा है कि कई देशों के अनेकों खिलाड़ियों ने स्वास्थ्य और सुरक्षा के मद्दे नज़र भारत आने से मना कर दिया है ! ऑस्ट्रेलिया के एक रिपोर्टर ने खेल गाँव में एक स्टिंग ऑपरेशन किया ! वह बैग में हैवी एक्सप्लोजिव लेकर सारे एरिया में घूम आया और उसे किसीने चेक नहीं किया ! प्रभारी अधिकारी ने जो कहा उसका तात्पर्य है, ‘२४ तारीख के बाद ऐसी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की जायेगी कि परिंदा भी पर न मार सके ! वह जल्दी चले गए स्टिंग ऑपरेशन करने !’ खिलाड़ी किसके भरोसे यहाँ आयें ! उनका कहना है कि उन्हें मेडल से अधिक अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा की चिंता है ! कई देशों ने अपने खिलाड़ियों को चेतावनी दी है कि वे अपने रिस्क पर भारत जाएँ और कई देशों ने तो अपने खिलाड़ियों को आने से रोक ही दिया है !
अब बताइये विश्व में हमारा नाम कितना ऊँचा हो रहा है ! सबको निमंत्रण देकर अपनी नैतिक, वैचारिक और भौतिक कंगाली का पुरजोर प्रदर्शन कर हमें क्या हासिल हो रहा है ? शर्मिन्दगी, उपहास, बदनामी, सबकी नाराज़गी या इसके अलावा और कुछ ?


साधना वैद

9 comments:

  1. सार्थक लेख |बहुत सही लिखा है |बधाई
    आशा

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  2. बिलकुल सही बात कही आपने ......सार्थक आलेख

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  3. बहुत सही बात कही है ...समसामयिक विषय को चुना है ..अभी तो बने हुए पुल टूट रहे हैं ..देखो इज्ज़त का क्या फालूदा बनता है ..

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  4. आपसे बिलकुल सहमत हूँ। धन्यवाद।

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  5. विस्तृत रपट। विचारोत्तेजक आलेख। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    देसिल बयना-गयी बात बहू के हाथ, करण समस्तीपुरी की लेखनी से, “मनोज” पर, पढिए!

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  6. aapakee baato se puri tarah sahamat .achcha aalekh

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  7. क्या कहा जाए,साधना जी...आपने सभी पहलू पर प्रकाश डाला है...ये राजनेता सिर्फ पैसे बनाने के लिए ऐसे खेलों का आयोजन करते हैं....शर्म से आँखें झुकी हैं...रोज ही अलग अलग ख़बरें आ रही हैं....इतनी विपदाएं हैं देश पर और पैसे फूंके जा रहें हैं...झूठी शान पर.

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  8. अब कहने सुनने को कुछ बचा ही नहीं है साधना जी ! सर झुक गया है एकदम नाक तो बची ही नहीं है .

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  9. सामयिक आलेख। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्‍ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

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