Saturday, October 30, 2010

टूटे घरौंदे

जब मन की गहनतम
गहराई से फूटती व्याकुल,
सुरीली, भावभीनी आवाज़ को
हवा के पंखों पर सवार कर
मैंने तुम्हारा नाम लेकर
तुम्हें पुकारा था !
लेकिन मेरी वह पुकार
वादियों में दूर दूर तक
ध्वनित प्रतिध्वनित होकर
मुझ तक ही वापिस लौट आई
तुम तक नहीं पहुँच सकी !

जब तीव्र प्रवाह के साथ बहती
वेगवान जलधारा की
चंचल चपल लहरों पर
अपनी थरथराती तर्जनी से
मैंने तुम्हारा नाम लिखा था
और जो अगले पल ही पानी में
विलीन हो गया और
जिसे तुम कभी पढ़ नहीं पाये !

जब जीवन सागर के किनारे
वक्त की सुनहरी रेत पर
मैंने तुम्हारे साथ एक नन्हा सा
घरौंदा बनाना चाहा था
लेकिन उसे बेरहम चक्रवाती
आँधी के तेज झोंके
धरती के आँचल के साथ
अपने संग बहुत दूर उड़ा ले गये
और तुम उस घरौंदे को
कभी देख भी ना सके !

और अब जब ये सारी बातें
केवल स्मृति मंजूषा की धरोहर
बन कर ही रह गयी हैं तो
कैसा दुःख और कैसी हताशा !
जहाँ नींव ही सुदृढ़ नहीं होगी
तो भवन तो धराशायी होंगे ही
फिर चाहे वो सपनों के महल हों
या फिर यथार्थ के !

साधना वैद !

15 comments:

  1. साधना जी..
    "ला-जवाब" जबर्दस्त!!
    हम तो आपकी भावनाओं को शत-शत नमन करते हैं.
    .शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।

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  2. जहाँ नींव ही सुदृढ़ नहीं होगी
    तो भवन तो धराशायी होंगे ही
    नींव की जर्जरता नीड़ को खंडहर बना देगी ही. सार्थक रचना .. भावपूर्ण

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  3. बीनाशर्माOctober 31, 2010 at 10:01 AM

    इमारतें तो नींव पर ही बुलंद होती हैं |वाह ,क्या लिखती है आप|
    शब्दों के सागर से चुन कर मोती लाती है ,माला बनाती है और सभी पाठकों के मन में अपना इक निशिचित कोना बना लेती हैं |

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  4. बहुत भाव पूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई |तुम्हारा शब्द चयन इतना अच्छा है कि बार बार पढ़ने का मन होता है |
    आशा

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  5. और अब जब ये सारी बातें
    केवल स्मृति मंजूषा की धरोहर
    बन कर ही रह गयी हैं तो
    कैसा दुःख और कैसी हताशा !
    जहाँ नींव ही सुदृढ़ नहीं होगी
    तो भवन तो धराशायी होंगे ही

    मन कि वेदना को मार्मिक शब्द दिए हैं ....अच्छी प्रस्तुति

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  6. जहां नींव ही सुदृढ़ नहीं होगी
    तो भवन तो धराशायी होंगे ही

    भावनाओं और शब्दों का सुंदर संयोजन।

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  7. अपनी थरथराती तर्जनी से
    मैंने तुम्हारा नाम लिखा था
    और जो अगले पल ही पानी में
    विलीन हो गया और
    जिसे तुम कभी पढ़ नहीं पाये !


    अच्छी प्रस्तुति......


    “दीपक बाबा की बक बक”
    क्रांति.......... हर क्षेत्र में.....
    .

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  8. कितना कुछ कह गयी आपकी ये रचना...एक चित्रण प्रस्तुत कर दिया...भावों को नम कर दिया हर तरफ से. सुंदर रचना.

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  9. bahut badiya rachana Asha jee ke vicharo se sahmat mai bhee kai vaar pad chukee ye kavita........
    Aabhar

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  10. और अब जब ये सारी बातें
    केवल स्मृति मंजूषा की धरोहर
    बन कर ही रह गयी हैं तो
    कैसा दुःख और कैसी हताशा !
    जहाँ नींव ही सुदृढ़ नहीं होगी
    तो भवन तो धराशायी होंगे ही
    फिर चाहे वो सपनों के महल हों
    या फिर यथार्थ के !
    साधना जी बिलकुल पते की बात कही। बहुत अच्छी भावमय रचना है बधाई।

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  11. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 02-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

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  12. क्या कहूँ ……………वेदना का मार्मिक चित्रण कर दिया।

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  13. खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर भावप्रवण रचना. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  14. गजब उकेरा है भावों को!!

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