जब मन की गहनतम
गहराई से फूटती व्याकुल,
सुरीली, भावभीनी आवाज़ को
हवा के पंखों पर सवार कर
मैंने तुम्हारा नाम लेकर
तुम्हें पुकारा था !
लेकिन मेरी वह पुकार
वादियों में दूर दूर तक
ध्वनित प्रतिध्वनित होकर
मुझ तक ही वापिस लौट आई
तुम तक नहीं पहुँच सकी !
जब तीव्र प्रवाह के साथ बहती
वेगवान जलधारा की
चंचल चपल लहरों पर
अपनी थरथराती तर्जनी से
मैंने तुम्हारा नाम लिखा था
और जो अगले पल ही पानी में
विलीन हो गया और
जिसे तुम कभी पढ़ नहीं पाये !
जब जीवन सागर के किनारे
वक्त की सुनहरी रेत पर
मैंने तुम्हारे साथ एक नन्हा सा
घरौंदा बनाना चाहा था
लेकिन उसे बेरहम चक्रवाती
आँधी के तेज झोंके
धरती के आँचल के साथ
अपने संग बहुत दूर उड़ा ले गये
और तुम उस घरौंदे को
कभी देख भी ना सके !
और अब जब ये सारी बातें
केवल स्मृति मंजूषा की धरोहर
बन कर ही रह गयी हैं तो
कैसा दुःख और कैसी हताशा !
जहाँ नींव ही सुदृढ़ नहीं होगी
तो भवन तो धराशायी होंगे ही
फिर चाहे वो सपनों के महल हों
या फिर यथार्थ के !
साधना वैद !
साधना जी..
ReplyDelete"ला-जवाब" जबर्दस्त!!
हम तो आपकी भावनाओं को शत-शत नमन करते हैं.
.शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
जहाँ नींव ही सुदृढ़ नहीं होगी
ReplyDeleteतो भवन तो धराशायी होंगे ही
नींव की जर्जरता नीड़ को खंडहर बना देगी ही. सार्थक रचना .. भावपूर्ण
इमारतें तो नींव पर ही बुलंद होती हैं |वाह ,क्या लिखती है आप|
ReplyDeleteशब्दों के सागर से चुन कर मोती लाती है ,माला बनाती है और सभी पाठकों के मन में अपना इक निशिचित कोना बना लेती हैं |
बहुत भाव पूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई |तुम्हारा शब्द चयन इतना अच्छा है कि बार बार पढ़ने का मन होता है |
ReplyDeleteआशा
और अब जब ये सारी बातें
ReplyDeleteकेवल स्मृति मंजूषा की धरोहर
बन कर ही रह गयी हैं तो
कैसा दुःख और कैसी हताशा !
जहाँ नींव ही सुदृढ़ नहीं होगी
तो भवन तो धराशायी होंगे ही
मन कि वेदना को मार्मिक शब्द दिए हैं ....अच्छी प्रस्तुति
जहां नींव ही सुदृढ़ नहीं होगी
ReplyDeleteतो भवन तो धराशायी होंगे ही
भावनाओं और शब्दों का सुंदर संयोजन।
अपनी थरथराती तर्जनी से
ReplyDeleteमैंने तुम्हारा नाम लिखा था
और जो अगले पल ही पानी में
विलीन हो गया और
जिसे तुम कभी पढ़ नहीं पाये !
अच्छी प्रस्तुति......
“दीपक बाबा की बक बक”
क्रांति.......... हर क्षेत्र में.....
.
कितना कुछ कह गयी आपकी ये रचना...एक चित्रण प्रस्तुत कर दिया...भावों को नम कर दिया हर तरफ से. सुंदर रचना.
ReplyDeletebahut badiya rachana Asha jee ke vicharo se sahmat mai bhee kai vaar pad chukee ye kavita........
ReplyDeleteAabhar
और अब जब ये सारी बातें
ReplyDeleteकेवल स्मृति मंजूषा की धरोहर
बन कर ही रह गयी हैं तो
कैसा दुःख और कैसी हताशा !
जहाँ नींव ही सुदृढ़ नहीं होगी
तो भवन तो धराशायी होंगे ही
फिर चाहे वो सपनों के महल हों
या फिर यथार्थ के !
साधना जी बिलकुल पते की बात कही। बहुत अच्छी भावमय रचना है बधाई।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 02-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
ReplyDeleteकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
क्या कहूँ ……………वेदना का मार्मिक चित्रण कर दिया।
ReplyDeleteखूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर भावप्रवण रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
गजब उकेरा है भावों को!!
ReplyDeletei love it
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