प्राय: सरकारी विभागों की और व्यवस्था की कमियाँ ही हम सबको दिखाई देती हैं और हम सब अक्सर उनसे जूझते ही नज़र आते हैं और शायद इसीलिये बहुत असंतुष्ट और नाराज़ भी रहते हैं लेकिन आज मुझे कुछ विपरीत सुखद अनुभव हुए हैं जिन्हें मैं आपके साथ बाँटना चाहती हूँ इसीलिए आज कई दिनों के बाद मैंने अपनी प्रिय कुर्सी पर आसन जमा लिया है ! फिर ऐसी घटनाएँ रोज़-रोज़ होती भी तो नहीं हैं !
हर रोज़ की तरह आज भी सामान्य सी ही सुबह थी ! वही दैनंदिन की सामान्य गतिविधियाँ और क्रिया कलाप ! राजन, मेरे पतिदेव, सुबह बगीचे में पेड़ पौधों की काट छाँट में व्यस्त थे ! मैं किचिन में नाश्ता बनाने की तैयारियों में व्यस्त थी ! अचानक पंछियों का एक बड़ा समूह बगीचे के हर छोटे बड़े पेड़ की डालियों पर आकर बैठ गया और ज़ोर-ज़ोर से शोर मचाने लगा ! घना पक्षी अभयारण्य पास में होने के कारण इन दिनों प्रवासी पक्षियों का आवागमन भी बड़े पैमाने पर होता है और कदाचित उनका यही रूट होता है इसलिए अक्सर हमारे बगीचे में भी कभी-कभी विदेशी पक्षी दिखाई दे जाते हैं ! पक्षियों के इस कलरव को मैंने इसी प्रक्रिया का हिस्सा मान कोई विशेष ध्यान नहीं दिया ! राजन को बर्ड वाचिंग का विशेष शौक है ! मुझे उत्साहित होकर उन्होंने बगीचे में बुलाया ! बताने लगे ये चिड़िया सेवेन सिस्टर्स के नाम से जानी जाती है ! तभी कुछ कौए भी आ गये और बंदरों का झुण्ड भी घर की छत और मुंडेर पर डेरा जमाने लगा ! अचानक से इतनी हलचल आसामान्य तो लग रही थी लेकिन कारण कुछ समझ में नहीं आ रहा था ! इतने कौए भी बड़े दिनों के बाद नज़र आये थे ! मुझे संदेह हुआ आसपास कोई जानवर शायद घायल हुआ पड़ा हो ! इसी सोच विचार में उलझी मैं फिर किचिन के कामों में व्यस्त हो गयी ! तभी अचानक इन्होंने जोर से आवाज़ देकर कहा, “ जल्दी से कैमरा लेकर आओ ! बडा रेयर सीन है ! “ कैमरा लेकर मैं बाहर गयी तो देखा खिड़की के छज्जे पर एक बहुत ही खूबसूरत और बड़े साइज़ का उल्लू बैठा हुआ है ! अक्सर उल्लू ब्राउन कलर के होते हैं लेकिन यह सफ़ेद रंग का था और चेहरे पर ब्राउन रंग का गोल घेरा बना हुआ था ! इससे पूर्व मैंने इतना बड़ा उल्लू कभी नहीं देखा था ! और वह इतना निश्चल बैठा हुआ था कि एक पल को तो मुझे आभास हुआ जैसे किसीने कोई शो पीस वहाँ पर सजा कर रख दिया है ! वह बिलकुल भी हिल डुल नहीं रहा था ! चिड़ियाँ और कौए उसे देख कर ही शोर मचा रहे थे और बन्दर उस पर घात लगाने की फ़िक्र में थे ! लेकिन इन सबसे बेखबर वह एक मूर्ति की तरह वहाँ बैठा हुआ था !
राजन, मेरे देवर राजेश, घर के अन्य सभी सदस्य और बच्चे सब उस उल्लू को बचाने के लिये सक्रिय हो गये ! बड़े-बड़े बाँस और डंडे लेकर सब बंदरों को भगाने में जुटे हुए थे ! लेकिन नज़र बचते ही वे हमला करने के लिये उल्लू के पास पहुँच जाते थे ! दिन की रोशनी में शायद वह ठीक से खतरे को भाँप नहीं पा रहा था और तटस्थ भाव से उसी जगह पर बैठा हुआ था ! उसे बचाने के लिये मैं भी कृत संकल्प थी लेकिन कोई उपाय समझ में नहीं आ रहा था किससे मदद माँगी जा सकती है ! जब कुछ समझ में नहीं आया तो मैंने १०० नम्बर डायल कर पुलिस से हेल्प माँगी ! उन्हें बताया कि यह लुप्तप्राय प्रजाति का संरक्षित पक्षी है और इस समय उसकी जान खतरे में है ! अगर तुरंत उसे बचाया नहीं गया तो बन्दर उसे मार देंगे ! मेरे स्वर की चिंता से फोन के दूसरे सिरे पर बात करने वाला व्यक्ति शायद कुछ प्रभावित हुआ ! सुखद आश्चर्य हुआ जब उसने न केवल मेरी समस्या को सुना बल्कि मुझे यह भी बताया कि इस सिलसिले में वन विभाग ही मेरी सहायता कर सकता है ! मेरे पास वन विभाग का कोई नंबर नहीं था ! यह भी आशंका थी कि मेरे कहने भर से ही कोई भला क्यों आ जायेगा मदद करने ! अत: मैंने उन्हीं सज्जन से वन विभाग को मेरी समस्या के बारे में सूचित करने के लिये कहा ! प्रत्युत्तर में ना केवल उन्होंने वन विभाग को फोन किया बल्कि मुझे भी बाद में कॉल बैक कर यह बता दिया कि उन्होंने मेरी प्रार्थना को सम्बंधित अधिकारी तक पहुँचा दिया है और वन विभाग का नंबर भी मुझे दे दिया ताकि आवश्यकता पड़ने पर मैं स्वयं भी उनसे संपर्क कर सकूँ ! इसके लिये वे वास्तव में धन्यवाद के पात्र हैं !
सुबह से २-३ घण्टे बीत चुके थे ! घर का हर सदस्य मुस्तैदी से बंदरों को भगाने में और उल्लू के प्राणों की रक्षा में जुटा हुआ था ! वन विभाग का ऑफिस शहर के दूसरे छोर कीठम पर स्थित है ! कई बार संपर्क करने की कोशिश की लेकिन वीक सिगनल की वजह से बात नहीं हो पाई ! अंतत: एक बार संपर्क सफल हुआ और ज्ञात हुआ कि वे लोग पहुँचने ही वाले हैं ! मन में बड़ी जिज्ञासा थी कि एक पक्षी को वे लोग कैसे पकड़ेंगे ! देखा बाइक पर केवल दो लोग आये हैं और वह भी बिलकुल खाली हाथ ! घर पर रखी लकड़ी की ऊँची सीढ़ी (घोड़ी) को उन्होंने खिडकी के सामने लगाया और उस पर चढ़ कर उल्लू को पकड़ने का इरादा बनाया ! सीढ़ी की ऊँचाई, खिड़की के सहारे लगी हुई बेलें और पेड़ और बिजली के तार उनके काम में बाधा डाल रहे थे ! अब तक निंद्रामग्न उल्लू भी पूरी तरह से सचेत हो गया था और जैसे ही बहेलिये ने उसे पकड़ने के लिये हाथ आगे बढ़ाया वह पंख फड़फड़ा कर बगीचे में ही कदम्ब के पेड़ पर जाकर बैठ गया ! हम सब का दिल बैठ गया ! लगा सारी मेहनत पर पानी फिर गया और सारा अभियान असफल हो गया ! इतने घंटे उस उल्लू के साथ उसकी हिफाज़त के लिये बिताने की वजह से अब तक उससे एक अबूझा प्यार का रिश्ता सा कायम हो गया था ! इस दुष्चिन्ता से कि अब तो पेड़ पर यह बन्दर. चील या किसी गिद्ध का शिकार हो जायेगा मन बहुत उद्विग्न हो रहा था ! वन विभाग के कर्मचारियों के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार पर बहुत गुस्सा भी आ रहा था ! क्या ये सचमुच उसे एक शो पीस समझ बैठे थे कि हाथ बढ़ा कर उठा लेंगे ! लेकिन मेरे गुस्से के विपरीत वे बड़े निश्चिन्त भाव से नीचे उतर आये और पूर्ण विश्वास के साथ बोले, “अब पेड़ पर से तो हम उसे पकड़ लेंगे !”
उनकी इस उद्घोषणा का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था लेकिन फिर भी मैं चुपचाप उनकी सहायता कर रही थी ! उन्होंने मुझ से एक बोरी माँगी ! और दोनों लोग पेड़ के नीचे लकड़ी की घोड़ी लगा कर उस पर चढ़ने लगे ! उल्लू अब पूरी तरह से जाग गया था ! बहेलिया उल्लू की ऊँचाई तक पहुँच उसकी आखों में आँखें डाल उसे घूर रहा था ! उल्लू भी बहेलिये की चाल को समझने की जैसे कोशिश कर रहा था ! तभी पीछे से हाथ घुमा कर तेज़ी से झपट्टा मार बहेलिये ने उल्लू को पंखों से दबोच लिया ! उस समय उल्लू के पंख पूरी तरह से फैले हुए थे और उनकी खूबसूरती से हम सब सम्मोहित थे ! जैसे किसी कुशल चित्रकार ने संगमरमर के सफ़ेद पन्नों पर काले, पीले और ब्राउन कलर्स से सुन्दर चित्रकारी कर दी हो ! जैसे ही उल्लू को सुरक्षित बोरे में डाल कर बोरे का मुँह रस्सी से बाँध दिया गया सारा बगीचा तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा ! इतनी देर में कॉलोनी के सारे पड़ोसी और बच्चे बारी-बारी से आकर उस पक्षी के दर्शन कर गये थे ! और अपने घरों की खिड़कियों से इस अभियान के मूक दर्शक बने हुए थे !
वनविभाग के कर्मचारियों के आत्मविश्वास और दक्षता से हम सब अभिभूत थे ! उन लोगों के अलावा आज के इस अभियान की सफलता का कुछ श्रेय मैं पुलिस विभाग के उस अधिकारी को भी ज़रूर देना चाहूँगी जिसने सदय होकर मेरी समस्या को सुना, उस पर ध्यान दिया और उसके निराकरण के लिये मेरी सहायता भी की ! ऐसा नहीं है कि विदेशों में ही हेल्प लाइन्स काम करती हैं ! हमारे देश में भी कभी-कभी जब समस्या सही कानों में पड़ जाती है तो उसका निदान भी संभव हो जाता है ! मैं हृदय से उन लोगों की आभारी हूँ और अपना धन्यवाद ज्ञापित करना चाहती हूँ ! जय भारत ! जय हिन्दुस्तान !
साधना वैद
सुन्दर वृतांत.
ReplyDeleteपढकर सुखद अनुभूति हुई.
शुक्र है १०० नम्बर समय पर काम आया.
achha laga padhker
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 06-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
आदरणीय मौसीजी सादर वन्दे , आज की घटना का वर्णन पढ़ कर तो ऐसा लग रहा था कि जैसे हम आगरा में ही है | मजा आ गया सारा वृत्तांत पढ़ कर, कल्पना में घर के हर सदस्य कि प्रतिक्रिया का अंदाज लगा रही थी | बधाई, आपको कि एक प्रवासी पक्षी कि रक्षा आपके द्वारा हुई|घर पर सभी को यथायोग्य अभिवादन |
ReplyDeleteयह प्रसंग तो काफी मनोरंजक भी निकला. चलिए अंत भला तो सब भला.
ReplyDelete100 नं. काम करे और सुनवाई हो जाए तो बहुत अच्छा लगता है!
ReplyDeletejay bharat jay hindustan......& jay mrs. vaid ji.:-)
ReplyDeleteयह लेख पढ़ कर बहुत आनंद आ रहा है |वाह छोटी सी धटना ने इतने सुन्दर लेख को जन्म दे दिया |
ReplyDeleteआशा
@ हाँ संगीता उस प्रवासी पक्षी के संकटग्रस्त प्राणों को बचाने के लिये यहाँ घर में कैसी हलचल मची हुई थी उसका अनुमान आप भली भाँती लगा सकती हैं क्योंकि आप यहाँ के हर सदस्य के स्वभाव और आदतों से अच्छी तरह परिचित हैं ! आपको बहुत मिस करते हैं ! जल्दी आगरा आने का प्रोग्राम बनाइये !
ReplyDeleteNice .
ReplyDeletehttp://hbfint.blogspot.in/2012/02/29-cure-for-cancer.html
बहुत बढ़िया प्रस्तुति .
ReplyDeleteसुन्दर लेख...पढकर सुखद अनुभूति हुई
ReplyDeleteइससे पूर्व मैंने इतना बड़ा उल्लू कभी नहीं देखा था ! और वह इतना निश्चल बैठा हुआ था कि एक पल को तो मुझे आभास हुआ जैसे किसीने कोई शो पीस वहाँ पर सजा कर रख दिया है !
ReplyDeleteलेकिन आश्चर्य आपने सफ़ेद लिबास में राजनीति अर्थनीति में सक्रीय उल्लू नहीं देखे .बहुत पहले किसी ने कहा था -
बर्बाद चमन के करने को बस एक ही उल्लू काफी था ,
हर शाख पे उल्लू बैठा है ,अंजामे गुलिस्तान क्या होगा .हमारे आसपास सफ़ेद उल्लू काफी तादाद में मौजूद हैं जो किसी बहेलिये की पकड़ में नहीं आते ,जेलों को फाइव स्टार्स में बदल देतें हैं .तिहाड़ ने बदलाव शुरू किये है .
बेहद सकारात्मक लेख वर्तमान परिदृश्य में सार्थक अवम सटीक .....आभार वैद जी |
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर...बेहतर प्रस्तुति!
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति ... कम से कम कहीं तो लगा कि देश में अभी कर्तव्यनिष्ठ लोग हैं ... आप के परिवार कि संवेदनशीलता भी पता चलती है ॥
ReplyDeleteवीरुभाई की बात पर हंसी आ रही है ॥
बहुत ही जीवंत विवरण..
ReplyDeleteआपकी चिंता और आपका प्रयास प्रशंसनीय है..लोगो को प्रेरणा मिलेगी .
अक्सर लोग बस चिंता कर के रह जाते हैं...कोई प्रयास नहीं करते.
१०० नंबर मुंबई में तो बहुत काम करते हैं...अगर अधिकारी सजग हों तो देश के हर कोने में यह नंबर काम करेगा..
आपने बहुत ही सराहनीय कार्य किया...बधाई!!
@आपने बिलकुल सच कहा है वीरूभाई ! लेकिन आजकल सफ़ेद लिबास में राजनीति की हर डाल पे जो उल्लू बैठे हुए हैं उनकी तादाद तो वैसे ही बहुत अधिक है और बड़ी तीव्र गति से बढ़ रही है ! मुझे चिंता उस पक्षी की इसलिए हुई थी कि वह सचमुच विलुप्तप्राय प्रजाति का पक्षी था और उसके प्राण संकट में थे ! आपकी प्रतिक्रिया ने मन प्रसन्न कर दिया ! इसी तरह प्रोत्साहन करते रहिये ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteअद्भुत घटना है.
ReplyDeletesara sama mere aankho ke samane ghatit ho raha tha is post ke dwara and accha hua 100 number chalta hain ye pata pad gaya
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