Saturday, April 7, 2012

दहशत और चुनौती से भरी वह एक रात


कल ही १५-१६ दिन के दीर्घ प्रवास के बाद उज्जैन से लौटी हूँ ! जब भी इस रूट पर यात्रा करती हूँ उस रात की स्मृतियाँ इतने वर्षों के अंतराल के बाद भी मुझे रोमांचित कर जाती हैं और आज भी मेरे बदन में सिहरन सी होने लगती है ! इस बार भी मैं बेरछा और मक्सी के बीच उस स्थान विशेष को ढूँढने का प्रयास करती रही जहाँ घुप अँधेरे में रेल की पटरियों पर बैठ कर मैंने एक बेहद खूबसूरत शाम को देखते ही देखते एक भयावह बेरहम रात में तब्दील होते हुए देखा था और उस दिन अपने जीवन की अंतिम घड़ियों को बहुत करीब जान अपने स्वजनों को याद करते हुए ना जाने कितने घण्टे गुज़ारे थे !

यह घटना २५ अप्रेल १९९३ की है ! मुझे अपने मायके उज्जैन से आगरा लौट कर आना था ! मालवा एक्सप्रेस में मेरा रिज़र्वेशन था ! रात की बर्थ थ्री टायर में आरक्षित थी ! यात्रा मुझे अकेले ही करनी थी इसलिए किसी भी तरह की कोई हड़बड़ाहट या टेंशन का कोई कारण नहीं था ! उन दिनों मालवा उज्जैन से शाम को चार सवा चार बजे के करीब चलती थी और रात को लगभग नौ बजे भोपाल पहुँचती थी ! रात को साढ़े नौ बजे के आसपास बिलासपुर एक्सप्रेस भोपाल से चलती थी ! मालवा में अधिकतर बिलासपुर और दिल्ली जाने वाले यात्री सवारी करते थे ! मालवा एक्सप्रेस उन दिनों बड़ी शानदार और सुपरफास्ट ट्रेन मानी जाती थी जो बिलकुल समय पर चलती थी और उसमें बहुत बढ़िया और ताज़ा गरमागरम खाना सर्व किया जाता था ! आगरा पहुँचने का समय सुबह लगभग साढ़े पाँच बजे के आसपास का था ! मालवा का समय मुझे बहुत सूट करता था उज्जैन में दिन भर सबके साथ सुखद समय बिता कर शाम को ट्रेन में बैठ गये और सुबह-सुबह आगरा पहुँच अपने घर में सबके साथ सुबह की चाय का मज़ा ले लिया !

२५ अप्रेल १९९३ की उस शाम को भी मैंने ऐसी ही मधुर कल्पनाओं के साथ मालवा एक्सप्रेस में अपनी सीट पर आसन जमाया था ! थ्री टायर के डिब्बे में पैसेज के पास वाली दो सीटों में मेरी लोअर सीट थी ! मुझे यह सीट बहुत पसंद है क्योंकि रात में नींद ना आये तो आप आराम से बैठ तो सकते हैं ! वरना कूपे के अंदर वाली सीट में तो जब तक बीच वाली सीट का यात्री ना उठ जाये पीठ दोहरी किये बैठना पड़ता है ! मेरे जीजाजी मुझे स्टेशन पर सी ऑफ करने आये थे ! मुझसे बार बार स्नैक्स फ्रूट्स, लस्सी श्रीखंड इत्यादि के लिये पूछते रहे लेकिन भाभी ने घर से इतना खिला पिला कर भेजा था कि कुछ भी खाने की गुंजाइश ही नहीं थी ! यहाँ तक कि भाभी ने रास्ते के लिये भी जो खाना बनाया था मैं उसे भी घर पर ही छोड़ कर आई थी कि सफर में रात को कुछ ना खाऊँ वही ठीक रहेगा ! यदि ज़रूरत हुई तो ट्रेन में ही कुछ हल्का फुल्का ले लूँगी ! नियत समय पर ट्रेन चल पड़ी और मैं भरे मन और भरी आँखों से जीजाजी को स्टेशन की भीड़ में गुम होता हुआ देखती रही !

किसी भी यात्रा का आरम्भ तो अक्सर खुशनुमा ही होता है ! खिड़की के बाहर सूर्यास्त के मनोरम दृश्य, ट्रेन की रफ़्तार के साथ उड़ते रंग बिरंगे पंछियों के दल, पोखर तालाब में खिले कमल के लाल गुलाबी फूलों की मनमोहक छटा और खेत खलिहानों के बीच दौड़ता नहरों का पानी मेरा मन लुभाते रहते हैं ! मैं इन्हीं सब के साथ तादात्म्य बैठाने की कोशिश में लगी थी कि एक महिला ने पूछा मैं अपने बच्चों को यहाँ खाना खिला दूँ ! दोनों बच्चे छोटे-छोटे थे ! एक शायद चार पाँच साल का होगा तो दूसरा दो तीन साल का ! मैंने सहर्ष इजाज़त दे दी और दोनों सीटों को खोल पुरी बर्थ बना दी ताकि महिला अच्छी तरह से बच्चों को खाना खिला सके ! उज्जैन से चले हुए करीब डेढ़ घंटा बीत गया था ! गाड़ी मक्सी स्टेशन को क्रॉस कर चुकी थी ! महिला ने थाली कटोरियों में पूरी सब्जी परोस बच्चों को बड़े प्यार से अपने हाथों से खाना खिलाना शुरू किया ही था कि अचानक धूल का बड़ा सा गुबार डिब्बे के आसपास वातावरण में पसर गया ! अच्छा खासा मौसम था ! बादल भी नहीं थे ! ना आँधी तूफ़ान के आसार थे ! अचानक से धूल का इतना बवंडर देख कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या वजह हो सकती है ! अचानक गाड़ी भी विचित्र शोर सा करने लगी और ऐसा महसूस हुआ कि वह तेज़ी से एक तरफ झुकी जा रही है ! मैंने आशंकित हो दोनों बच्चों को अपनी बाहों में घेर कर कस के खिड़की की सलाखें पकड़ लीं ! बच्चे तो गिरने से बच गये पर बर्थ के दूसरे सिरे पर बैठी उनकी माँ और खाने की थाली और कटोरियाँ सब फिसल कर नीचे जा गिरे ! कम्पार्टमेंट में हाहाकार मच गया था ! ऊपर की बर्थ्स पर रखा सभी यात्रियों का सामान लोगों को घायल करता नीचे आ आ कर गिर रहा था जिसमें मेरा सामान भी शामिल था ! रुकते-रुकते ट्रेन इसी दशा में लगभग एक डेढ़ किलो मीटर आगे तक घिसट गयी थी ! ईश्वर की इतनी मेहरबानी हुई कि मेरे डिब्बे में किसीको गंभीर चोट नहीं आई थी लेकिन किसीके सिर पर सामान गिर जाने से चोट लग गयी थी तो कुछ महिलाओं के हाथों में चूड़ियाँ टूट जाने से खून निकल आया था ! ट्रेन पटरी से उतर गयी थी ! और ऐसी हालत में उसका आगे जाना नामुमकिन था ! मैंने डिब्बे में गिरे सबके सामान के ढेर में से ढूँढ कर अपना सामान निकाला ! एक मीडियम साइज़ का भारी भरकम सूटकेस, एक एयरबैग, एक बड़ा सा शोल्डर बैग, एक पर्स और एक वाटर बॉटल इतना सामान तो था ही ! डिब्बे की हालत बच्चों की स्लाइडिंग शूट की तरह हो गयी थी ! बिलकुल सम्हल-सम्हल कर चलना पड़ रहा था कि खुद भी कहीं फिसल कर ना गिर जायें ! डिब्बा इतना झुक गया था कि प्रवेश द्वार की सबसे ऊपर वाली सीढ़ी नीचे कच्ची ज़मीन में धँस गयी थी ! यही गनीमत हुई कि ट्रेन पलटी नहीं वरना हादसा और भी गम्भीर हो सकता था ! ट्रेन के सात डिब्बे पटरी से उतर गये थे और सबसे अधिक डैमेज हमारे डिब्बे में हुआ था ! जैसे तैसे अपना सारा सामान लेकर गिरते पड़ते डिब्बे से बाहर निकले ! फ़िसलपट्टी का पूरा मज़ा आ रहा था ! सूटकेस एयरबैग सब एक साथ जब उठाना पड़ा तो याद आया कि ‘ट्रेवल लाईट’ की नसीहत में सचमुच कितना दम होता है ! स्टेशन पर तो कुली भी मिल जाता है यहाँ जंगल बियाबान में, जहाँ सभी मेरी ही तरह विपदाग्रस्त यात्री थे, मेरा सामान कौन उठाता ! तभी किसीने कहा सब लोग सबसे पीछे वाले डिब्बे में जाकर बैठ जायें ! वही डिब्बा दूसरी ट्रेन में जोड़ा जायेगा ! स्पौंडिलाइटिस की पीड़ा से चोटिल मेरी पीठ और कमर इतने भारी सामान का वज़न उठाने में बिलकुल असमर्थ थे लेकिन मरता क्या न करता ! अपना सारा सामान कभी उठा कर तो कभी घसीट कर जैसे तैसे ट्रेन के दूसरे सिरे पर पहुँच मैं सबसे पीछे वाले डिब्बे में बैठ गई और कुछ चैन की साँस ली ! सोचा अब थोड़ी देर बाद दूसरी ट्रेन आ ही जायेगी और हमारे इम्तहान की इस घड़ी का अंत हो जायेगा ! सूर्यास्त का मनोरम दृश्य देखने का चार्म तो कभी का खत्म हो चुका था क्योंकि सूर्यास्त हुए बहुत देर हो चुकी थी ! और साँझ का अँधेरा तेज़ी से अपने पैर पसार रहा था ! दुर्घटनाग्रस्त डिब्बे से आख़िरी डब्बे तक आने के श्रम से ऊपर नीचे हुई साँसे सामान्य हो भी नहीं पाईं थीं कि गार्ड ने आकर कहा सब नीचे उतर जायें ! कुछ देर में दूसरी रिलीफ ट्रेन आयेगी जो यात्रियों को मक्सी तक पहुँचा देगी ! वहाँ से जिसे जहाँ जाना हो जा सकेगा !

गार्ड की बात सुन सभी यात्री अपना-अपना सामान ले नीचे उतर आये ! गहराती शाम में रेल की पटरियों पर अपना सारा सामान अपने आस पास समेट कर बैठे हुए मैं कितनी हैरान परेशान थी यह शब्दों में बयान करना मुश्किल है ! चलती ट्रेन के डिब्बे से सूरज की रोशनी में नहाये हुए चमकते पेड़ जितने लुभावने लगते हैं उस वक्त अँधेरे में डूबे वही पेड़ बड़े डरावने लग रहे थे ! धीरे-धीरे रात पूरी तरह से घिर आई थी ! घनघोर जंगल में रोशनी का एक भी कतरा कहीं दिखाई नहीं दे रहा था !

पीछे से कोई ज़ोर-ज़ोर से चेतावनी दे रहा था, ‘चोर लुटेरों से सावधान रहें ! अपने सामान की अपने आप हिफाज़त करें !’ रेल की पटरियों पर कस कर अपने सामान को अपने से चिपकाए बैठी मैं अपनी बेवकूफियों पर और आने वाली संभावित मुसीबतों पर चिंतन कर रही थी ! मेरे पर्स में इस समय सिर्फ २५ रुपये पड़े हुए थे ! उज्जैन में बड़ी दरियादिली से बिना कुछ सोचे समझे मैंने सारे रुपये बच्चों पर खर्च कर डाले थे ! सोचा रास्ते में तो मुझे कुछ खरीदना नहीं है ! टिकट रिज़र्व है ही ! सुबह तो आगरा पहुँच ही जाउँगी ! स्टेशन पर पतिदेव रिसीव करने आ जायेंगे तो फिर तो कोई दिक्कत होगी ही नहीं ! यही सोच कर मात्र २५ रुपये बचा कर मैंने सारे रुपये समाप्त कर दिये ! अब चिंता हो रही थी अगर टिकिट लेना पड़ गया तो क्या करूँगी ! आगरा पता नहीं कब पहुँचना हो ! रास्ते में भूख प्यास लगी तो कैसे कुछ खरीदूँगी ! जंगल के ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर अपनी दर्द से जर्जर पीठ के साथ इतना सामान लेकर चलना तो नामुमकिन है लेकिन कुली कहाँ मिलेगा और मिल भी गया तो उसे पैसे कहाँ से दूँगी ! तब बाबूजी की बताई नसीहत बड़ी याद आ रही थी कि यात्रा में अपने पास कम से कम गंतव्य तक के टिकिट के पैसे ज़रूर होने चाहिये कि अगर कभी टिकिट खो जाये तो कम से कम दूसरा टिकिट तो खरीदा जा सके ! यहाँ पर्स में इतने कम पैसे थे कि आगरा पहुँचना तो दूर अगले दो घण्टे गुजारना भी मुश्किल दिखाई दे रहा था ! उन दिनों मोबाइल भी नहीं चले थे कि किसीको इस दुर्घटना की सूचना देकर मदद के लिये बुला लेती ! अब तो जो करना था मुझे अकेले ही करना था लेकिन इस समय मुझे अपना अकेले सफर करना बहुत अखर रहा था ! कम से कम कोई तो होता जो इस घड़ी में मेरा मददगार होता या जिससे मैं अपनी दुश्चिंताएं ही बाँट लेती !

अँधेरे के साथ-साथ घने जंगल से आती जंगली जानवरों की डरावनी आवाजें मन में दहशत पैदा कर रही थीं ! रिलीफ ट्रेन के आने के दूर-दूर तक कोई आसार दिखाई नहीं दे रहे थे ! पास से कोई गुज़र भी जाता तो रूह अनजाने भय से काँप जाती ! दिन की रोशनी में जो सहयात्री बड़े भले और मित्रवत लगते थे रात के अँधेरे में वे सब के सब चोर लुटेरे और दुश्मन से मालूम हो रहे थे ! पैरों के पास ज़रा सी सरसराहट होती तो साँप, बिच्छू, छिपकली, काँतर का भय सताने लगता ! घड़ी भी नहीं देख पा रही थी कि समय ही पता चल जाता ! घबराहट होने लगी थी कि इस रात की सुबह होगी भी या नहीं या यहीं किसी जंगली जानवर का निवाला बन कर यहीं मेरा जीवन समाप्त हो जायेगा ! प्यास से गला सूखा जा रहा था ! घूँट-घूँट पानी पीकर छोटी सी पानी की बॉटल में थोड़ा सा पानी बचा था जिसे मैं बहुत कंजूसी से इस्तेमाल कर रही थी कि रात बिताने के लिये एक यही सहारा था मेरे पास !

नहीं पता कितना वक्त बीत चुका था तभी कुछ हलचल सी हुई कि रिलीफ ट्रेन आ गयी है और पटरियाँ उखड़ जाने की वजह से काफी पीछे खड़ी हुई है और वहीं जाना होगा उसमें बैठने के लिये ! मेरी तो टेंशन के मारे हालत खराब हो रही थी ! इतना भारी सामान लेकर कैसे इतनी दूर जाऊँगी ! रास्ता भी कोई साफ़ सुथरा पक्की सड़क वाला नहीं था ! रेल की पटरियों के साथ-साथ सारा सामान लाद कर काँटों भरी झाड़ियों और गड्ढों को पार करते हुए घटाटोप अन्धकार में पता नहीं कितना चलना होगा तब कहीं जाकर वह रिलीफ ट्रेन मिलेगी जो हमें मक्सी तक पहुँचायेगी और वहाँ से फिर हमें अन्य दूसरी ट्रेन मिलेगी जो हमें हमारे गंतव्य तक पहुँचा सकेगी !

ईश्वर को शायद मेरी दशा पर दया आ गयी ! मैं सारा सामान उठा कर चलने का उपक्रम कर ही रही थी कि एक नौजवान मेरे पास आ गया और बड़ी शालीनता से मुझसे बोला, लाइए आंटीजी आपका कुछ सामान मैं उठा लेता हूँ ! बहुत सा धन्यवाद देकर मैंने उसे अपना सूटकेस थमा तो दिया लेकिन डर भी लग रहा था कि ना जाने कौन है ? अँधेरे में तो उसे ठीक से देख भी नहीं पा रही हूँ ! अगर जल्दी-जल्दी सूटकेस लेकर भीड़ में गुम हो गया तो मैं तो उसे पहचान भी नहीं पाऊँगी ! लेकिन तब इतने सोच विचार के लिये समय नहीं था ! मैंने उससे अनुरोध किया कि वह मेरी स्पीड से मेरे साथ-साथ ही चले जिससे मैं भटक ना जाऊँ ! अब उस रात की सबसे कष्टप्रद घड़ी सामने आ रही थी ! गिट्टियों के ऊपर गिरते पड़ते, काँटों से उलझते, गड्ढों को कूदते फलाँगते टॉर्च की मद्धिम रोशनी में हम अँधेरे में आगे बढ़ते जा रहे थे ! नहीं जानती कितना चले होंगे ! लगता था यह रास्ता खत्म ही नहीं होगा ! पैरों में कई जगह काँटों से खंरोंचें आ गयी थीं ! और जोर्जेट की मेरी नाज़ुक साड़ी कई जगह से फट गयी थी ! प्यास के मारे बुरा हाल था ! लेकिन मैं मन पर काबू किये चुपचाप चले जा रही थी ! अंतत: ना जाने कितनी दूर चलने के बाद रिलीफ ट्रेन दिखाई दी ! जान में जान आ गयी ! थकान के मारे बुरा हाल हो रहा था ! उस नौजवान ने मेरा सारा सामान ट्रेन में चढ़ा दिया और मेरा हाथ पकड़ कर सहारा देकर मुझे भी ट्रेन में चढ़ा दिया ! भगवान उसका भला करे ! उस समय तो वह मुझे एक देवदूत ही लग रहा था ! आज भी मन उसे ढेरों आशीर्वाद देता है ! मैंने उसे रुपये देने की बहुत कोशिश की लेकिन उसने विनम्रता से मना कर दिया ! बस उसे प्यास लगी थी तो उसने मुझसे पानी माँगा और बॉटल में जितना भी पानी बचा था सब उसने पी लिया ! प्यास तो मुझे भी लगी थी लेकिन मैंने सोचा मैं मक्सी जाकर पी लूँगी !

मक्सी पहुँचे तो उज्जैन जाने वाली ट्रेन सामने ही उसी प्लेटफार्म पर चलने के लिये तैयार खड़ी थी ! एक बार मन हुआ कि वापिस उज्जैन लौट जाऊँ ! लेकिन २६ अप्रेल को आगरा में मेरी भतीजी का जन्मदिन था और २८ अप्रेल को मेरे देवर भी साउदी अरब से आने वाले थे कुछ दिनों के लिये ! ट्रेन्स में उन दिनों इतना रश चल रहा था कि पता नहीं फिर कितने दिनों के बाद रिज़र्वेशन मिले ! सो मन पक्का कर यही निर्णय लिया कि आगरा ही जाना है ! उज्जैन की ट्रेन मेरे सामने से चली गयी ! प्यास के मारे गला सूख रहा था ! पानी की प्याऊ पटरियों के पार दूसरे प्लेटफार्म पर थी ! अब और रहा नहीं जा रहा था और इतनी ताकत नहीं बची थी कि सारा सामान लेकर दूसरे प्लेटफार्म पर जाऊँ तो भगवान का नाम ले मैंने सारा सामान वहीं छोड़ दिया और पानी की बॉटल लेकर प्याऊ के पास पहुँची ! ऐसे में कोई सामान उठा कर ले जाता तो मैं उसको देख भी नहीं पाती ! खैर जी भर कर मैंने पानी पिया तो कुछ राहत मिली ! बॉटल में भी पानी भर लिया और अपने सामान के पास आ गयी ! तभी अनाउंससमेंट हुआ कि दूसरे प्लेटफार्म से ट्रेन दिल्ली के लिये जाने वाली है ! हिम्मत करके फिर सारा सामान उठाया और दूसरे प्लेटफार्म पर पहुँच कर भीड़ की धक्का मुक्की झेलते हुए जैसे तैसे डिब्बे में दरवाज़े के पास थोड़ी सी जगह बना सारा सामान टिका कर मैं उसीके पास खड़ी हो गई ! ट्रेन चलने ही वाली थी कि बड़े शोरगुल और नारेबाजी की आवाजें आने लगीं ! पता चला बिलासपुर जाने वाले यात्री बहुत हल्ला मचा रहे थे कि इस ट्रेन को बिलासपुर ही जाना होगा वे इसे दिल्ली नहीं जाने देंगे ! पब्लिक डिमाण्ड के आगे रेलवे प्रशासन को झुकना पड़ा और एक बार फिर मैं अपना सारा सामान लिये थकान से चूर आधी रात को प्लेटफार्म पर खड़ी थी !

तभी मुझे रेलवे का एक कर्मचारी दिखाई दिया ! मैंने उससे पूछा कि दिल्ली कौन सी गाड़ी जायेगी ! उसने अँधेरे में खड़ी एक गाड़ी की ओर इशारा किया ! मैं इतना थक चुकी थी अब और खड़ा रहना मेरी बर्दाश्त के बाहर था ! रात के दो बज रहे थे उस समय ! मैं किसी तरह हिम्मत जुटा कर उस ट्रेन में चढ़ गयी और सामान को चेन से लॉक कर बर्थ पर सो गयी ! थोड़ी देर में ही मुझे इतनी गहरी नींद आ गयी थी कि पता ही नहीं चला ट्रेन कब चली ! सुबह जब आँख खुली तो पाया कि ट्रेन अपनी पूरी रफ़्तार से दौड़ रही थी ! सहयात्रियों से जब मैंने पूछ लिया कि यह ट्रेन दिल्ली ही जा रही है तो मेरी जान में जान आई ! लेकिन रास्ते में जो स्टेशंस आ रहे थे उन्होंने मेरे माथे पर फिर से चिंता की लकीरें डाल दीं ! मालवा का सारा ट्रैक मेरा परिचित था ! लेकिन इस रास्ते में सारे स्टेशंस अलग आ रहे थे ! मुझे फ़िक्र हुई कहीं यह आगरा को बाईपास कर मथुरा से दिल्ली ना चली जाये ! ऐसे में मुझे मथुरा उतर कर आगरा के लिये दूसरी ट्रेन पकड़नी होगी ! पर्स के गिने चुने रुपये फिर ज़ेहेन में घूम गये ! अब तो भूख भी लग आई थी ! उज्जैन में घर से चलने के बाद मैंने अब तक एक कप चाय भी नहीं पी थी ! और अभी भी संभावना क्षीण ही नज़र आ रहीं थीं ! तभी टीटी ने डिब्बे में प्रवेश किया ! जब उसने यह कन्फर्म कर दिया कि यह ट्रेन आगरा होते हुए दिल्ली जायेगी तो मन को अपार शान्ति मिली ! और तब मैंने कुछ संतरे खरीदे !

जो ट्रेन सुबह साढ़े पाँच बजे आगरा पहुँचनी थी वह शाम को पाँच बजे आगरा पहुँची ! स्टेशन पर मेरा बेटा हैरान परेशान खड़ा हुआ था मुझे रिसीव करने के लिये ! उसे देख कर मेरी खुशी का कोई पार नहीं था ! मेरी फटी साड़ी और हाथ पैरों में लगी खरोंचे मेरे दर्दनाक अनुभव को खुद ही बयाँ कर रहे थे ! उस दिन घर पहुँच कर जो शान्ति, सुख और राहत मिली उसका वर्णन कर पाना नितांत असंभव है ! आज यह् सारा वाकया एक कहानी की तरह लग रहा है लेकिन जब मैं इस अनुभव से गुजरी थी और उस वक्त मुझ पर जो बीती थी ईश्वर से प्रार्थना है ऐसा दिन वह किसीको ना दिखाये !

साधना वैद

19 comments:

  1. ऐसा लगा आपके साथ हमने भी वो सफर किया........शुक्र है कोई जान माल की हानि नहीं हुई.....


    बेहद सशक्त लेखन...
    सादर.

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  2. बाप रे .... उस घड़ी की अनुभूति ! उन बच्चों के लिए आप देवदूत बनीं , आपके लिए वह युवा .... वाकई ऐसा किसी के साथ न हो

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  3. वाकई आपने तो फिर भी बहुत असरकारक तरीके से घटना को बयान कर दिया...वरना उस भय, तखलीफ, दर्द को बयां करना कहां संभव है...

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  4. साधना जी,

    आपका ये संस्मरण मेरे पास है लेकिन ये मेरे उस कांसेप्ट में सही नहीं बैठ रहा था इसलिए मैं इसको नहीं डाल पाई थी. इसके लिए क्षमा चाहती हूँ. वैसे इस तरह की घटना बहुत ही गहराई से अपने बयान की है और उस धैर्य की तारीफ करूंगी.

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  5. सशक्त लेखन....साधना जी

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  6. जीवन में कभी२ ऐसी घटनाओं हो जाती है, बहुत सुंदर घटना का सजीव चित्रण,

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....

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  7. सचमुच बहुत चुनौती और दहशत भरी रात थी वह, हमारा तो पढ़कर ही बुरा हाल है आप पर बीती होगी तो कैसा लगा होगा... लेकिन हर रात की सुबह होती है उस रात की भी हुई आप सकुशल घर पहुच गईं यह जानकर अच्छा लगा... जीवंत संस्मरण...सादर

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  8. एक सांस में पढ़ गया आपके इस दिल देहला देने वाले किस्से को...आपकी हिम्मत की जितनी दाद दी जाय कम होगी...

    नीरज

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  9. आपने लिखा तो लगा जैसे सब आँखों के सामने हो रहा है ....ये रास्ता तो मेरा बहुत जाना पहचाना है ....मुसीबत कब आ जाती है पता नहीं चलता ....!!
    बहुत बारीकी से किया यात्रा विवरण ...
    शुभकामनायें ....

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  10. बहुत सजीव चित्रण...हर पंक्ति पर धडकन बढ जाती...शुक्र है आप सुरक्षित रहीं...बहुत सशक्त प्रस्तुति...

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  11. सशक्त लेख के लिए बधाई |
    आशा

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  12. जब सिर पर पड़ती है तो भगवान हिम्मत जुटा देता है और अभी भी संवेदनएन खत्म नहीं हुई हैं इसी लिए आपको एक देवदूत भी मिल गया .... रोमांचक संस्मरण ... पढ़ कर अभी तक उस समय के हालातों के बारे में सोच रही हूँ ....

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  13. bahut hi sashakt lekhan hai apka is baat ko bahut acchhi tarah janti hun. yah sansmaran bhi adhura chhoda jane wala nahi tha...end tak bandhe rakha apke lekhan ne. aap ki takleef ka is baat se andaza lagaya ja sakta he ki san 1993 me guzre is haadse ki yaad aaj tak bhi jyu ki tyu aapke jehan me hai....jinhe waqt kabhi ki parte bhi bhoone nahi deti.
    aur us par apke sashakt lekhan ne aisa sajeev chitran kiya mano ham bhi aapke sath us takleefdeh safar me u hi andhere me roshni ki kiran dhoondh rahe the aur jab sham 5 baje aap agra pahuchi to hamne bhi chain ki sans li.

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  14. ईश्वर से प्रार्थना है ऐसा दिन वह किसीको ना दिखाये !
    ब्लॉगर्स मीट वीकली में आपका स्वागत है।

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  15. स्टेशन पर मेरा बेटा हैरान परेशान खड़ा हुआ था मुझे रिसीव करने के लिये ! उसे देख कर मेरी खुशी का कोई पार नहीं था ! मेरी फटी साड़ी और हाथ पैरों में लगी खरोंचे मेरे दर्दनाक अनुभव को खुद ही बयाँ कर रहे थे ! उस दिन घर पहुँच कर जो शान्ति, सुख और राहत मिली उसका वर्णन कर पाना नितांत असंभव है...
    आदरणीया साधना जी एक सशक्त लेख जिन्दगी के उतार चढाव और दुर्घटना के दृश्य को जीवंत करता हुआ ......अंत में आनंद और सुकून मिला --बेटे को देख --हृदय की दशा का सटीक वर्णन- अब सब मंगलमय हो -- जय श्री राधे ..मेरे ब्लॉग प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी पर समर्थन के लिए आभार ..कृपया अन्य पर भी स्नेह दें
    भ्रमर ५

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  16. .

    रोमांचित करने वाला अनुभव रहा सचमुच !
    आपने विवरण ऐसा प्रस्तुत किया कि रोंगटे खड़े हो रहे हैं …
    सजीव चित्रण !

    ईश्वर जिसके साथ होता है , उसका बड़े से बड़े हादसे में कुछ नहीं बिगड़ता …

    या मेरे मालिक ! तू सबका भला कर … आमीन !

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  17. अरे बाप रे ..
    दम साधे पूरा पढ़ गयी पर आपका वर्णन ऐसा कि घटना की भयावहता का पूरा अनुभव हुआ।

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  18. आज पढ़ा ,रोंगटे खड़े हो गए

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