हम भी चुप थे वो भी चुप थे
सब गाफिल थे अपने में ,
दिल के ज़ख्मों के मरहम को
इक जुमला ही काफी था !
किसने किसको कितना चाहा
नाप तोल कर क्या होगा ,
प्यार की छोटी सी दुनिया को
इक तिनका ही काफी था !
चाह कहाँ थी, मंज़िल तक
जाने की ज़हमत कौन करे ,
राहे वफ़ा पर संग चलने को
एक कदम ही काफी था
फर्क कहाँ पड़ता है
डूबे दरिया में या प्याली में ,
मरने को तो दर्दे ज़हर का
इक कतरा ही काफी था !
सात जनम का साथ भला कब
किसको हासिल होता है ,
करने को इज़हारे मोहोब्बत
इक लम्हा ही काफी था !
साधना वैद
बस वो एक जुमला ही तो नहीं कहा जाता , पूरी रचना बहुत सुंदर
ReplyDeleteकिसने किसको कितना चाहा
ReplyDeleteनाप तोल कर क्या होगा ,
प्यार की छोटी सी दुनिया को
इक तिनका ही काफी था !
....बहुत सही कहा है...बहुत सुन्दर और प्रभावी अभिव्यक्ति...
किसने किसको कितना चाहा
ReplyDeleteनाप तोल कर क्या होगा ,
प्यार की छोटी सी दुनिया को
इक तिनका ही काफी था !.... जीने को इक लम्हा ही बराबर था
मरने को तो दर्दे ज़हर का
ReplyDeleteइक कतरा ही काफी था !
आह!क्या बात कह दी।
असर कर जाए तो छोटी सी बात ही काफ़ी है।
ReplyDeletehttp://blogkikhabren.blogspot.com/2012/04/buniyad-blog.html
किसने किसको कितना चाहा
ReplyDeleteनाप तोल कर क्या होगा ,
प्यार की छोटी सी दुनिया को
इक तिनका ही काफी था !...
एकदम सच कहा है, जीवन भर जीकर भी वो लम्हा नहीं जी पाते जिसके जीने से पूरा जीवन सफल हो जाता है.
बहुत भाव पूर्ण प्रस्तुति |
ReplyDeleteआशा
.... एक जुमला ही तो नहीं कहा जाता....
ReplyDeletelovely
wah.....kya baat hai.
ReplyDeleteफर्क कहाँ पड़ता है
ReplyDeleteडूबे दरिया में या प्याली में ,
मरने को तो दर्दे ज़हर का
इक कतरा ही काफी था !
वाह.............
बहुत सुंदर!!!
सादर
फर्क कहाँ पड़ता है
ReplyDeleteडूबे दरिया में या प्याली में ,
मरने को तो दर्दे ज़हर का
इक कतरा ही काफी था !
वाह.............
बहुत सुंदर!!!
सादर
किसने किसको कितना चाहा
ReplyDeleteनाप तोल कर क्या होगा ,
प्यार की छोटी सी दुनिया को
इक तिनका ही काफी था !
अनुपम भावों की अभिव्यक्ति सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट
.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
किसने किसको कितना चाहा
ReplyDeleteनाप तोल कर क्या होगा ,
प्यार की छोटी सी दुनिया को
इक तिनका ही काफी था
................गहराई से आती रचना, गहराई तक जाती रचना..!!
हम भी चुप थे वो भी चुप थे
ReplyDeleteसब गाफिल थे अपने में ,
दिल के ज़ख्मों के मरहम को
इक जुमला ही काफी था !
प्रभावी प्रस्तुति.
हर अश आर मतले का ही सुन्दर विस्तार है .बढ़िया रचना .
ReplyDeleteफर्क कहाँ पड़ता है
ReplyDeleteडूबे दरिया में या प्याली में ,
मरने को तो दर्दे ज़हर का
इक कतरा ही काफी था !
सच क्या फर्क पड़ता है. भावपूर्ण प्रस्तुति.
फर्क कहाँ पड़ता है
ReplyDeleteडूबे दरिया में या प्याली में...
सुन्दर रचना....
सादर.
ReplyDelete♥
आदरणीया दीदी साधना जी
सादर प्रणाम !
भावनाओं की अच्छी अभिव्यक्ति हुई है आपकी इस रचना में-
फर्क कहां पड़ता है
डूबे दरिया में या प्याली में ,
मरने को तो दर्दे ज़हर का
इक कतरा ही काफी था
…और एक बात की ख़ास मुबारकबाद है कि इस रचना का प्रवाह देखते ही बनता है …
छंद पर आपकी पकड़ मजबूत होती जा रही है …
अब नवीन जी के यहां ठाले बैठे पर आपकी रचनाएं और भी आनंद देंगी …
:)
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत बहुत धन्यवाद राजेन्द्र भाई ! आपने मेरे प्रयत्न को सराहा आपकी आभारी हूँ ! इसी तरह अनुग्रह बनाये रखियेगा ! एक बार पुन: धन्यवाद !
ReplyDeletesadhna jinamaskaar....apki ye poem usi din padh li thi jb aapne mujhe link bheja tha...lekin vyavastTa vash apko response nahi de payi..deri k liye maafi chaahti hun.
ReplyDeleteis tarah ka lekhan bhi manbhawan aur uttam hai....pahle ki posts ki upeksha isme dard ki aahat kam he...acchha laga.
आदरणीय मौसीजी सादर नमस्ते,आज आपके ब्लॉग पर आई तो देखा की आपने इतनी सुन्दर गजल जो मन को भावुक कर गई.आपसे खुलकर बात भी नहीं हो पाई इसका मुझे खेद है और में क्षमा प्रार्थी हूँ ।
ReplyDeleteमरने को तो दर्दे ज़हर का
ReplyDeleteइक कतरा ही काफी था !
सच है!
सुन्दर अभिव्यक्ति!