Friday, July 6, 2012

चेहरे पर लिखी इबारतें


चेहरे की भाषा पढ़ना तो
वक्त शायद सबको ही सिखा देता है
लेकिन उसे पढ़ने के लिए
कम से कम चेहरे का
सामने होना तो ज़रूरी है !
लेकिन क्या मीलों दूर के
फासलों के साथ 
महज़ ख्यालों में ही
किसीके चेहरे का तसव्वुर कर
उस पर लिखी तहरीर को
पढ़ा जा सकता है ?
कैसे कोई जान सकता है
कब उमंग से छलछलाती,
व्यग्रता से उठती गिरती
पलकों के नीचे शनै: शनै:
हताशा की बदली घिर आती है
और आँखों से सावन भादों की
झड़ी बरसने लगती है ! 
 
कब चेहरे पर छाई मृदुल स्मित
की स्निग्ध रेखा विद्रूप की रेखा में
विलीन हो जाती है और
प्रिय मिलन की आस से
सलज्ज रक्ताभ चेहरा
अवश क्षोभ की आँच से तप
अंगार की तरह सुर्ख हो जाता है !
कब मन की हर कोमल भावना  
प्रीतम तक पहुँचाने को आतुर
अधरों की कँपकँपाहट धीरे-धीरे
निराशा के आलम में 
रुलाई के आवेग की थरथराहट में
तब्दील हो जाती है 
जिसे काबू में लाने के लिए
दाँतों का सहारा लेना पड़ता है !
फिर कैसे उदासी की
अपनी पुरानी चिर परिचित
पैबंददार चादर को ओढ़
चेहरे पर मौन का मुखौटा पहन  
आँखों को बाँहों से ढके वह
तकिये की पनाह में जाकर
इस बेदर्द बेरहम दुनिया से
बहुत दूर चले जाने का भ्रम
मन में पाल लेती है
और सबसे विमुख हो
अपने अतीत की वीथियों में
पलायन कर जाती है ! 
इतने लंबे फासलों के साथ
क्या इस अनुभव को
जिया जा सकता है ?  
क्या चेहरे पर हर पल
बदलती इन इबारतों को
पढ़ा जा सकता है ? 

साधना वैद

चित्र-गूगल से साभार !

20 comments:

  1. दिल से दिल की राह होती हैं.....
    क्या पता पढ़ ही लें..शायद आवाज़ सुन कर???

    बहुत प्यारे भाव साधना जी,
    सादर
    अनु

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  2. जी जिससे मन बहुत शिद्दत से जुड़ा हो तो अनहद नाद सुनायी दे जाती है ...!!
    सुंदर मन की बात ...!!

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  3. यह एहसास की बात है .... सामने चेहरा न हो तब भी अनुमान लगाया जा सकता है .... अपनी भावनाओं को खूबसूरत शब्द दिये हैं .... अच्छी प्रस्तुति

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  4. ऐसे अहसासों को और भावों को सिर्फ चेहरा देख कर जानने और समझाने की जरूरत नहीं होती. भावनाएं और अहसास ऐसे होते हें कि अगर हम जुड़े हें दिल से तो हर उस अहसास को जी लेते हें जिससे हम बहुत करीब है चाहे फिर मीलों दूर हों.

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  5. चेहरे पर तो यूँ भी कुछ नजर नहीं आता :)
    दिल से दिल की बात होती है तो दूरियां कितनी भी हो !
    अच्छा प्रश्न !

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  6. रुलाई के आवेग की थरथराहट में
    तब्दील हो जाती है
    जिसे काबू में लाने के लिए
    दाँतों का सहारा लेना पड़ता है
    ....खूबसूरत शब्द !
    बिल्कुल सही कह रही हैं आप्
    किसकी बात करें-आपकी प्रस्‍तुति की या आपकी रचनाओं की। सब ही तो आनन्‍ददायक हैं।

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  7. sabse pahle to is virah varnan ko yun shabdo me baandhna kamaal ka hai. iske liye badhayi.

    doosri baat ...ye sach hai ki agar ham kisi se dil ki gehraiyon se jude hain to doori koi maayne nahi rakhti ise ham doosre shabdo me telepathy kahte hain....so koi kitna bhi door ho uske chehre ki likhi to kya man ki ibaarte bhi jaani ja sakti hain.

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  8. मार्मिक अभिव्यक्ति।सही बात है दिल सेदूरियाँ हों तभी आदमी दिल की बात नही समझ सकता। दूर से क्या पास रहते हुये भी कई बार कोई किसी के दिल की बात नही समझ सकता। रचना दिल को छू गयी।

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  9. कैसे कोई जान सकता है
    कब उमंग से छलछलाती,
    व्यग्रता से उठती गिरती
    पलकों के नीचे शनै: शनै:
    हताशा की बदली घिर आती है
    और आँखों से सावन भादों की
    झड़ी बरसने लगती है ! ........... जान वही सकता है , जो उन्हीं एहसासों से गुजरता है ! वरना पास हों या दूर , चेहरे को हर कोई नहीं पढ़ सकता

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  10. सब अहसासो की बात है कभी कोई पास होकर भी बहुत दूर होता है और कोई दूर होकर भी सब जान लेता है ………सुन्दरता से भावों को पिरोया है।

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  11. हुत ही सहज शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी आपने..... खुबसूरत अभिवयक्ति....

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  12. यह एक ऐसा अहसास है जिसे पढने के लिए मेरे ख्याल से चेहरा सामने हो आवश्यक नहीं | बहुत सुन्दर शब्दों का लिवास पहने कविता और मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति |
    आशा

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  13. सहज शब्दों मे गहन अभिव्यक्ति..

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  14. हृदय जुड़े हों, भाव सम्बद्ध हो तो सब हो सकता है अनुमाणित!
    सुन्दर रचना!

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  15. bahut sunder bhav ki rachna......

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  16. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल रविवार को 08 -07-2012 को यहाँ भी है

    .... आज हलचल में .... आपातकालीन हलचल .

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  17. मार्मिक अभिव्यक्ति.

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  18. "भावनाओं से विनिर्मित, कल्पनाओं से सुसज्जित
    कर चुकी मेरे हृदय का, स्वप्न चकनाचूर दुनिया
    बात पिछली भूल जाओ, दूसरी नगरी बसाओ
    प्रेमियों के प्रति रही है, हाय कितनी क्रूर दुनिया
    आज मुझसे दूर दुनिया....."
    आपकी रचना पढ़कर बच्चन जी की ये पंक्तियां याद आ गयी ......

    "रुलाई के आवेग की थरथराहट में
    तब्दील हो जाती है
    जिसे काबू में लाने के लिए
    दाँतों का सहारा लेना पड़ता है".....अपने भी तो यही कहा है....
    बेजोड़

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  19. सब एहसासों का खेल है।

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  20. दूर होते हुए भी पास है हम
    अहसास रखना मेरा
    महसूस करोगे मुझे....
    अपने पास... अपने साथ...

    कोमल भाव लिए हृदयस्पर्शी रचना....
    :-)

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