एक
पल
जीने
की चाह में
हर
पल मैंने
जाने
कितनी
साँसें
खोई हैं !
एक
स्मित
पल
भर को
अधरों
पर खेल जाये
इसके
लिये
जाने
कितने घूँट
आँसुओं
के
कण्ठ
के नीचे
उड़ेले
हैं !
मात्र
पल भर को
उल्लसित
हो मन मयूर
झूम
कर नाच ले
इसके
लिये
सावन
की पहली फुहार
की
प्रतीक्षा में
ना
जाने कितने दिन
मैंने
अपने कोमल पंख
ज्येष्ठ
अषाढ़ की
तपती
धूप में
झुलसाये
हैं !
इन
क्षणिक उपलब्धियों
के
खुमार को
मैंने
सदा सँजो कर
अपने
आँचल से
बाँध
लेने की
निरर्थक
चेष्टा की है !
क्योंकि
जब-जब मैंने
सघन
पीड़ा के पलों में
अपने
आँचल की
गाँठ खोल
उन
गिने चुने
सुख
के पलों को
छू कर
अपने
सुखी होने के
भ्रम को
मैंने जीने की
कोशिश की है
भ्रम को
मैंने जीने की
कोशिश की है
अपने
आँचल को
तब-तब
तब-तब
रीता
ही पाया है !
अपने सुखी होने के
ReplyDeleteभ्रम को
मैंने जीने की
कोशिश की है
अपने आँचल को
तब-तब
रीता ही पाया है !
..भ्रम जब भी टूटता है तो यूँ ही अंतर्मन कराह उठता है
बहुत बढ़िया मनोभाव..
behad bhawbhini......
ReplyDeleteअंतर्मन की वेदना ....
ReplyDeleteबहुत प्रभावी अभिव्यक्ति साधना जी ...
छोटी सी आशा ... प्रभावी रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर साधना जी.....
ReplyDeleteमन की कही मन ने पढ़ ली.....
सादर
अनु
बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति .........
ReplyDeleteसंजोने का भ्रम तब तक ही सुख देता है , जब तक उसे खोला न जाए .... बेहतर है जीने के लिए कुछ भ्रम ही पाला जाए !
ReplyDeleteअंतर्मन की प्रभावी अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteक्यों ना भ्रम को भ्रम ही रहने दिया जाये, रीता आँचल बहुत दुखदाई होता है...
ReplyDeleteभ्रम सुखदाई होत्ता है टूटना मन को कष्ट पहुचाता है,,,,
ReplyDeleteRECENT POST-परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,
एक पल जीने के लिए न जाने कितनी साँसों को खोना ॥भ्रम बना ही रहने दीजिये .... ज़िंदगी बीत जाती है भ्रम में ...कम से कम आँचल तो रीता नहीं लगेगा ।
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना
ReplyDeleteअपने सुखी होने के
भ्रम को
मैंने जीने की
कोशिश की है
अपने आँचल को
तब-तब
रीता ही पाया है !
व्याकुल मनोदशा को दर्शाती रचना !
गज़ब!!
ReplyDeleteathaah koshishon ke baad bhi bhram toot jayen to us reete-pan ka dukh a-sahay hota hai. man ki peeda ko sashakt shabd diye hain.
ReplyDeleteuf ...........bhram mukt jane kab honge hum
ReplyDeleteक्षणिक उपलब्धियां भी आखिर कितनी हमदर्द होंगी ...कुछ पल का ही तो साथ देंगी फिर आँचल रीता का रीता ...
ReplyDeleteमगर हमने तो सुना कुछ पल की ख़ुशी पूरे जीवन का सबब हो जाती है :)
संवेदनशील रचना बहुत सुन्दर साधना जी
ReplyDeleteकभी चेष्टा निरर्थक नहीं होती |वैसे भी दुखों के बीच कभी कभी ही सुख मन समझाने को हल्की सी झलक दिखा जाता है |
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति सुन्दर शब्द संयोजन |
आशा