Friday, August 31, 2012

अगर शासन की बागडोर मेरे हाथ में आ जाये



सरकार चलाना एक बहुत बड़े प्रोजेक्ट को हैंडिल करने जैसा ही है ! समस्याएँ अनेक हैं, साधन भी कम हैं और समय की भी तो सीमा होती है ! ऐसे में आवश्यकता है उन समस्याओं की पहचान करना जिनके निदान से देश में सकारात्मक बदलाव लाया जा सके, त्वरित राहत मिल सके और उनका निदान हमारे पास उपलब्ध साधनों के द्वारा ही निकाला जा सके ! साधनों से मेरा तात्पर्य हमारे पास उपलब्ध धन, तकनीक व जनशक्ति से है ! मामला ज़रा टेढ़ा तो लगता है लेकिन अगर हमारे पास दूरदृष्टि है और साथ ही शासन की बागडोर भी हमारे हाथ में आ जाये तो फिर तो क्या कहने ! हम तो देश में ऐसा जादू कर दें कि लोग देखते ही रह जायें ! 
सबसे पहले तो विकास के नाम पर जिस तरह से पब्लिक मनी का दुरुपयोग हो रहा है उस पर मैं तुरंत रोक लगा दूँगी ! हमें शहरों के सौन्दर्यीकरण के लिए नये पार्क्स, मॉल्स, या मँहगी-मँहगी मूर्तियों और मनोरंजन स्थलों के निर्माण की कोई ज़रूरत नहीं है ! शहरों की मौजूदा सड़कों और नालियों की सही तरीके से सफाई, और मरम्मत कर दी जाये, सारे शहर में यहाँ वहाँ फैले कूड़े कचरे और गन्दगी के निस्तारण की उचित व्यवस्था कर दी जाये और शहरों में उचित स्थानों पर कूड़ा एकत्रित करने के लिए ढक्कनदार गार्बेज बिन्स को ज़मीन में ठोक कर मजबूती से लगा दिया जाये तो इस समस्या से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है ! बाज़ारों में और सड़कों पर समुचित व्यवस्था ना होने के कारण लोग यहाँ वहाँ गन्दगी करने के लिए विवश होते हैं ! इसे रोकने के लिए स्थान-स्थान पर शौचालयों और मूत्रालयों की व्यवस्था होनी चाहिए और उन्हें साफ़ रखने के लिए कर्मचारी तैनात किये जाने चाहिए ! उनका प्रयोग करने के लिए लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए ! यदि इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाये तो शहरों की सूरत ही बदल जाये ! मेरे हाथ में शासन की बागडोर आ जाये तो मैं सबसे पहले इसी दिशा में काम करना पसंद करूँगी और उन लोगों के साथ सख्ती से पेश आऊँगी जो इसका उल्लंघन करेंगे ! शहरों की सड़कों की मरम्मत और रख रखाव की तो ज़रूरत है ही वहाँ पर राँग पार्किंग और अनधिकृत निर्माण तथा फेरी वाले और चाट पकौड़ों के ठेल वाले और उनके ग्राहकों की भीड़ उन्हें और सँकरा बना देती हैं ! जहाँ थोड़ी सी भी जगह की गुन्जाइश होती है वहाँ कूड़ों के ढेर लग जाते हैं ! सड़कों के आजू बाजू के मकानों की पेंट पुताई और मरम्मत की ओर ध्यान दिया जाये, बाउण्ड्री वाल्स पर पोस्टर्स ना लगाए जाएँ तो यही शहर चमन लगने लगेगा ! हमें अपने शहरों को ढेरों धन व्यय करके लन्दन, पेरिस, रोम या न्यूयार्क नहीं बनाना है बस थोड़ा सा ध्यान देकर बिना अतिरिक्त धन खर्च किये उन्हें साफ़ सुथरा रखें तो ही बहुत फर्क पड़ जायेगा ! मेरे हाथ में शासन की बागडोर हो तो मेरा सारा ध्यान शहरों की साफ़ सफाई, सड़कों और नालियों की मरम्मत और रख रखाव पर ही होगा जिसके लिये धन खर्च करने से अधिक मुस्तैदी से काम करने की ज़रूरत अधिक होगी !   
कोई भी प्रोजेक्ट बिना जन समर्थन के कामयाब नहीं होता ! इसके लिए नये-नये क़ानून बनाने से अधिक जनता में जागरूकता फैलाने के लिये प्रचार प्रसार माध्यमों का सही तरीके से उपयोग करने पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए ! हम इन्हें मजबूत बना कर लोगों को और शिक्षित व सचेत कर सकते हैं और उनकी संकीर्ण सोच को बदल देश में क्रान्ति ला सकते हैं  ! कन्या भ्रूण ह्त्या, बाल विवाह, विधवा विवाह, दहेज, खर्चीली शादियाँ, मृत्यु भोज, परिवार नियोजन आदि सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ सिनेमा, नाटक, नुक्कड़ नाटक, टी वी धारावाहिक, सार्थक साहित्य, नृत्य नाटिकायें, पेंटिंग्स इत्यादि को माध्यम बना कर लोगों की सोच में बदलाव लाया जा सकता है ! दृश्य और प्रिंट मीडिया इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं ! मेरे हाथों में शासन की बागडोर आ जाये तो मैं इस दिशा में अवश्य सार्थक पहल करूँगी ! जब जब इनके लिये क़ानून बनाये गये उनका दुरुपयोग किया गया और जनता सरकार के विरुद्ध खड़ी हो गयी ! कानूनों को मन मुताबिक़ तोड़ने मरोड़ने के लिए भ्रष्टाचार बढ़ा ! इनसे निबटने के लिए क़ानून बनाने से अधिक लोगों में सही गलत का निर्णय खुद लेने की क्षमता विकसित करने की अधिक ज़रूरत है !  
बढ़ती जनसंख्या के दबाव के चलते स्थान की कमी हो रही है और जंगल बड़ी मात्रा में काटे जा रहे हैं जिनसे पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा पैदा हो रहा है ! मेरे हाथों में शासन की बागडोर आ जाये तो जो स्कूल कॉलेज वर्तमान में चल रहे हैं मैं ना केवल उन्हीं की दशा में हर संभव सुधार लाकर उन्हें और बेहतर बनाऊँगी वरन उन्हीं में दो शिफ्ट्स चला कर नये स्कूल कॉलेज खोलने के खर्च के बोझे से जनता को बचाऊँगी ! इस तरह से बिना किसी अतिरिक्त खर्च के शिक्षा के क्षेत्र में जो कमी आ रही है उसका निदान हो सकेगा ! इसी तरह स्वास्थ्य सेवाओं को भी सुधारा जा सकता है ! नये-नये अस्पताल खोलने की जगह यदि वर्तमान में मौजूद स्वास्थ केन्द्रों, अस्पतालों और नर्सिंग होम्स की दशाओं को सुधारा जाये तो स्थिति में बहुत सार्थक परिवर्तन लाया जा सकता है !
शासन की बागडोर मेरे हाथ में आ जाये तो मेरा अगला कदम यहाँ की न्याय व्यवस्था में सुधार लाने की दिशा में होगा ! न्यायालयों में वर्षों से लंबित विचाराधीन मुकदमों का अविलम्ब निपटारा होना चाहिए ! ऐसे कानून जिनका कोई अर्थ नहीं रह गया उन्हें तुरंत निरस्त कर दिया जाना चाहिए ! हर केस के लिए समय सीमा निर्धारित की जानी चाहिए ताकि लोगों को समय से न्याय मिल सके और शातिर अपराधियों को सबूत मिटाने का या गवाहों को खरीद फरोख्त कर बरगलाने का मौक़ा ना मिल सके ! मेरा फोकस इस दिशा में होगा और मैं इसके लिए हर संभव उपाय करूँगी !  
कई उत्पादों जैसे सिगरेट, शराब, पान तम्बाकू, गुटका, पान मसाला आदि पर वैधानिक चेतावनी लिखी होती है कि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं ! मुझे आश्चर्य होता है कि यदि ये वाकई हानिकारक हैं तो इन्हें बनाने और बेचने का लाइसेंस सरकार देती ही क्यों है ! मेरे हाथों में यदि शासन की बागडोर आ जाये तो सबसे पहले मैं इन हानिकारक वस्तुओं के उत्पादन एवं बिक्री पर रोक लगा दूँगी जो मनुष्य को शारीरिक, मानसिक और साथ ही आर्थिक तौर पर भी खोखला बना देते हैं और वह अपना विवेक खोकर मनुष्य से जानवर बन जाता है !
भ्रष्टाचार का दानव सबसे अधिक हमारी प्रशासनिक व्यवस्था में पैर पसार कर जमा हुआ है ! इसे वहाँ से हटाना बहुत मुश्किल हो रहा है ! लेकिन ब्यूरोक्रेसी को डाउन साइज़ करके हम इसके आकार प्रकार को कम ज़रूर कर सकते हैं ! मेरे हाथों में शासन की बागडोर आ जायेगी तो सबसे पहले मैं ऐसे नियम कानूनों को हटाऊँगी जिनका अनुपालन भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है ! जनता को कानूनों के फंदे में लपेटने से अधिक उचित है कि उनमें सही तरीके से सिविक सेन्स डेवलप किया जाये ताकि वे अपने देश के आदर्श नागरिक बन सकें और स्वयं देश के प्रति अपने दायित्वों और प्राथमिकताओं को समझ कर उनका स्वेच्छा से पालन करें ! यदि वे कायदे कानूनों की अहमियत को नहीं समझते तो वे उनका पालन भी नहीं करते और जब कभी क़ानून के लपेटे में आ जाते हैं तो पैसा ले देकर स्वयं को बचाने की कोशिश में जुट जाते हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं ! मेरे हाथों में जिस दिन शासन की बागडोर आ जायेगी इन सभी अनियमितताओं पर मैं ज़रूर अंकुश लगा दूँगी ! लेकिन वह दिन आये तभी ना ! ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी !


साधना वैद

8 comments:

  1. बीना शर्माAugust 31, 2012 at 9:26 AM

    साधना जी शासन की बागडोर आपके हाथों में हो हम सभी ऐसा चाहते हैं पर जब तक ऐसा हो हम कम सेकम जो चीजें हमारे हाथ में है उनमें सार्थक हस्तक्षेप कर सकते हैं | बहुत सुन्दर विचार हैं यदि क्रियान्वित हो गए तो सोने में सुहागा होगा| सकारात्मक विचारों के लिए बधाई
    बीना

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  2. बीना शर्माAugust 31, 2012 at 9:26 AM

    साधना जी शासन की बागडोर आपके हाथों में हो हम सभी ऐसा चाहते हैं पर जब तक ऐसा हो हम कम सेकम जो चीजें हमारे हाथ में है उनमें सार्थक हस्तक्षेप कर सकते हैं | बहुत सुन्दर विचार हैं यदि क्रियान्वित हो गए तो सोने में सुहागा होगा| सकारात्मक विचारों के लिए बधाई
    बीना

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  3. शासन की बागडोर हाथ में लेने के लिए तेल खुद ही निकालना होगा ... बहुत सार्थक विचार हैं .... सरकार चलाने के लिए राजस्व इकट्ठा करना भी एक समस्या है । वैधानिक चेतावनी देने के बाद भी सरकार ऐसे उद्योग बंद नहीं करती क्यों कि उससे सरकार को बहुत आमदनी होती है ।

    बढ़िया लेख

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  4. बागडोर वहीँ होगी अब - जहाँ यह सोच नहीं .

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  5. विभा रानी श्रीवास्तव जी की टिप्पणी जो उन्होंने ई-मेल से भेजी -------

    यदि जनता कायदे कानूनों की अहमियत को नहीं समझते तो वे उनका पालन भी नहीं करते और जब कभी क़ानून के लपेटे में आ जाते हैं तो पैसा ले देकर स्वयं को बचाने की कोशिश में जुट जाते हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं !
    सहमत हूँ !

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  6. साधना जी बहुत अच्छा आलेख है ...ज्वलंत समस्याओं पर प्रहार करता हुआ ...!!अपने ही स्तर पर हम कुछ जागरूकता ला सकें तो भी लगेगा कुछ सार्थक किया !!सार्थक आलेख ..!!

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  7. बढ़िया लिखा है |सकारात्मक सोच के लिए बधाई |
    आशा

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  8. bahuch acchha lekh hai. maine ise udanti par bhi padh liya tha. kafi samvedansheel muddo par sawal aur sath unko suljhane ki raste bhi batate hue prabhaavshali vichar paish kiye hain. mana ki har kaam jitna kehna/sochna aasan hai use kaaryanvit karna utna hi mushkil lekin na-mumkin to nahi hai. haal hi ke aamir k show se bhi hame aisi hi prerna milti hai.

    badhayi aapke is lekh k udanti par prakashit hone k liye.

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