स्वप्न नींदों मे,
अश्रु नयनों में,
गुबार दिल में ही
छिपे रहें तो
मूल्यवान लगते हैं यह माना ।
भाव अंतर में,
विचार मस्तिष्क में,
शब्द लेखनी में ही
अनभिव्यक्त रहें तो
अर्थवान लगते हैं यह भी माना ।
पर इतनी ज्वाला,
इतना विस्फोटक
हृदय में दबाये
खुद से बाहर निकलने के
सारे रास्ते क्यों बन्द कर लिये हैं ?
क्या यह आत्मघात नहीं है ?
साधना वैद
अभिव्यक्ति संजीवनी है ... इसे प्रवाहित होने देना है
ReplyDeleteपर इतनी ज्वाला,
ReplyDeleteइतना विस्फोटक
हृदय में दबाये
खुद से बाहर निकलने के
सारे रास्ते क्यों बन्द कर लिये हैं ?
विवशता उधर भी है. आतंकवाद भी एक चक्रवूह की तरह उसमें फंसे लोगों को निकलने का रास्ता नहीं देता भले ही वह आत्मघाती हो.
सुंदर प्रस्तुति.
सार्थक प्रश्न ........
ReplyDeleteमेरी तो जो अनिभूति होती है ,
लिख देती हूँ ..... गद्द होता है या पद्द ,
वो तो नहीं जानती ,
लेकिन जब तक लिख ना लूँ ,
गला में कुछ अटका सा लगता है ...........
सादर !!
बहुत ही सार्थक प्रस्तुतीकरण,आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा , मन को छू गयी पंक्तियाँ . आभार !
ReplyDeleteबहुत बड़ा विस्फोट होने को है ऐसा लगता है पर यह आत्मघाती न हो बस चिंता इस बात की है |उम्दा रचना |
ReplyDeleteआशा
आज की ब्लॉग बुलेटिन ताकि आपको याद रहे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपकी यह प्रविष्टि आज दिनांक 18-03-2013 को सोमवारीय चर्चा : चर्चामंच-1187 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
एकदम सटीक और सार्थक प्रस्तुति आभार
ReplyDeleteबहुत सुद्नर आभार अपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो
आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे
सार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआभार
बेहतर है उन्हें अभिव्यक्ति दे दी जाये... गहन भाव ... आभार
ReplyDeleteभावों को अभिव्यक्त करना ही बेहतर है .... गहन अभिव्यक्ति
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