Wednesday, March 20, 2013

पुनरावृत्ति क्यों.....



पिछले दो-तीन महीनों में दिल्ली, बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश और अब आगरा में जिस तरह की दिल दहला देने वाली घटनाएँ हुई हैं उन्होंने हर नारी के मन को झकझोर दिया है ! आश्चर्य होता है कि हम एक सभ्य समाज में रहते हैं ! अगर सभ्य और विकसित समाज का यह रूप होता है तो इससे तो हम पिछड़े ही अच्छे थे ! कम से कम तब समाज के लोगों में कुछ नैतिक मूल्य तो थे ! उनके मन में कुछ संस्कार और शालीनता तो थी ! अब तो जैसे यहाँ जंगल राज हो गया है ! लड़कियों का घर से बाहर निकलना दूभर हो गया है ! क्या करें ? कोई उपाय है आपके पास ? कैसे रक्षा करें वे अपनी कुछ सुझा सकते हैं आप ? या वे पढ़ाई-लिखाई, कैरियर-काम सब छोड़ कर घर में ही सिमट कर रह जाएँ ?

क्यों आज फिर
तुम्हारी हार हुई है ?
क्यों आज फिर
तुम इन दरिंदों के
हिंसक इरादों के सामने
इस तरह निरस्त हो गयीं ?
कहाँ चूक रह गयी
तुम्हारी तैयारी में ?
मैं जानती हूँ
तुम्हारी मानसिक तैयारी में  
कहीं कोई कमी नहीं !
तुम यह भी जानती हो
कि कैसे खून्खार और
हिंसक जानवरों से भरे
जंगल के रास्ते होकर ही
तुम्हें अपनी मंज़िल
की ओर बढ़ना होगा ,
लेकिन हर कदम
फूँक-फूँक कर रखने की
तुम्हारी सतर्कता के
बाद भी तुम
कहाँ और कैसे यूँ
कमज़ोर पड़ गयीं
कि दरिंदे तुम पर
हावी हो गये  
और एक प्रखर प्रकाश  
संसार को आलोकित
करने पहले ही
घने तिमिर में
प्रत्यावर्तित हो गया !
मोबाइल की जगह
तुम्हारे हाथ में
आत्म रक्षा के लिए
कटार क्यों नहीं थी ?
रूमाल की जगह
तुम्हारे हाथ में
तीखी लाल मिर्च की
बुकनी क्यों नहीं थी ?
और तुम्हारे मन में
औरों के प्रति सहज
विश्वास की जगह
संशय और साहस की आग
क्यों नहीं थी कि तुम
सतर्क और चौकस रहतीं
और उन दरिंदों को
अपने गंदे इरादों में
कामयाब होने से पहले ही
वहीं भस्म कर देतीं ?
यूँ तो रक्तबीज एक
दानव था लेकिन
आज मेरा मन चाहता है
कि जहाँ-जहाँ तुम्हारा
रक्त गिरा है वहाँ
तुम्हारे रक्त की हर बूँद
के स्थान पर
असुरों का संहार करने वाली
एक शाश्वत नारी शक्ति
का उदय हो जो
इन हिंसक पशुओं को
काबू में कर उन्हें
पिंजड़ों में कैद कर सके
या उनके असह्य भार से
इस धरती को उसी पल
मुक्त कर सके
जिस पल उनके मन में
नारी जाति के सम्मान को
पद दलित करने की
कुत्सित भावनाओं का
जनम हो !


साधना वैद



16 comments:

  1. .बहुत sashakt भावनात्मक प्रस्तुति आभार हाय रे .!..मोदी का दिमाग ................... .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  2. आपकी पोस्ट 21 - 03- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें ।

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  3. हमें ही मिलकर कुछ करना होगा,यदि क़ानून बनाने से जुर्म ख़त्म हो जाते तो आज अपराध ही नही होने चाहिए,

    Recent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,

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  4. शक्त कानून के साथ साथ समाज को अपनी नजरिया बदलना पड़ेगा तभी परिवर्तन होगा
    latest postअनुभूति : सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
    latest postऋण उतार!

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  5. बहुत अच्छी और सशक्त अभिव्यक्ति...

    सादर
    अनु

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  6. न जाने आज समाज किस ओर जा रहा है .... सशक्त अभिव्यक्ति

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  7. शारीरिक संरचना की स्थिति किसी शिक्षा से नहीं बदल सकती
    अपने अंतस को दृढ करना है
    कि गिरने से हार नहीं होती
    बिना गिरे संकल्प नहीं उभरता
    स्थापित होने से पहले खौफनाक तूफानों से जूझना होता है
    मन हार गया तो आत्महत्या - ! जो निराकरण नहीं
    मन की मजबूती नए दरवाज़े खोलती है
    तो रोना क्यूँ ? कब तक ...............

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  8. सशक्त अभिव्यक्ति... कुत्सित भावनाओं का दमन करने की आवश्यकता है, अकेले कानून कुछ नहीं कर सकता समाज को जिम्मेदारी लेनी होगी... आभार

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  9. बहुत ही भावपूर्ण अबिव्य्क्ति,आभार.

    "स्वस्थ जीवन पर-त्वचा की देखभाल"

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  10. आज यही आह्वान होना चाहिये।

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  11. बहुत अच्छी और सशक्त अभिव्यक्ति.

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  12. सशक्त रचना के लिए बधाई |मेरे ब्लॉग पर देखें नई रचना " जन्म दिन पर "|
    आशा

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  13. अच्छा आह्वान किया है आंटी! वैसे किसी कोई भी कानून या इस घटनाओं को रोकने का कोई भी उपाय तब तक सफल नहीं होगा जब तक कि संस्कार सिर्फ किताबी ज्ञान तक सिमटने की बजाय वास्तविक जीवन में उतर कर सामने नहीं दिखने लगें। सोच बदलेगी तो सब बदलेगा। सोच ही नहीं बदल सकी तो सब उपाय व्यर्थ हैं।

    सादर

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  14. जन्म से जूझती स्त्री हर बार प्रकृति द्वारा प्रदात अपने शरीर के कारण हार जाती है. स्त्री को सम्मान देना हमारे धर्म और संस्कृति में सिखाया जाता है, और पूरी दुनिया किसी न किसी धर्म और संस्कृति से बंधी है, फिर ...?
    आह्वाहन करती रचना, शुभकामनाएँ.

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  15. सार्थकता लिये सशक्‍त लेखन ...

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  16. आह्वाहन करती रचना,

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