हर
जगह, हर मोड़, पर इंसान ठहरा ही रहा,
वक्त
की रफ़्तार के संग ज़िंदगी चलती रही !
खुशनुमां
वो गुलमोहर की धूप छाँही जालियाँ
चाँदनी,
चम्पा, चमेली की थिरकती डालियाँ
पात
झरते ही रहे हर बार सुख की शाख से
मौसमों
की बाँह थामे ज़िंदगी चलती रही !
वन्दना
की भैरवी थक मौन होकर रुक गयी ,
अर्चना
के दीप की बाती दहक कर चुक गयी ,
पाँखुरी
गिरती रहीं मनमोहना के हार की
डोर
टूटी हाथ में ले ज़िंदगी चलती रही !
खोखले
स्वर रह गये और माधुरी चुप हो गयी ,
ज़िंदगी
के गीत की पहचान जैसे खो गयी ,
वेदना
के भार से अंतर कसकता ही रहा
और
टूटी तान सी यह ज़िंदगी चलती रही !
चाँद
सूरज भाल पर मेरे अँधेरे लिख गये ,
स्वप्न
सुंदर नींद में ही तोड़ते दम दिख गये ,
देवता
अभिशाप देके फेर कर मुँह सो गये
दर्द
की सौगात देकर ज़िंदगी चलती रही !
आत्मा
निर्बंध को बंधन नियम का मिल गया ,
पंख टूटी हंसिनी को गगन विस्तृत मिल गया ,
हर
कदम पर रूह घायल हो तड़प कर रह गयी
और
निस्पृह भाव से बस ज़िंदगी चलती रही !
साधना
वैद
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