सूनी अँधियारी रातों में
घनघोर अन्धकार से जूझते हुए
सितारों के धुँधले उजालों में मैंने
आसमान से धरती तक फैले
अंधकार के आवरण को चीरती
आलोक की एक प्रखर लकीर को
ढूँढ लिया है !
पहाड़ों के दामन से
बूँद-बूँद रिसती प्यासी जलधाराओं के
छिछले अवरुद्ध बहाव में मैंने
उद्दाम प्रवाह से कल-कल बहती
वेगवान नदी सी आकुलता को
ढूँढ लिया है !
तुम्हारे सपाट शुष्क चेहरे पर
मूर्तिकार के हाथों सँजोई गयी
पाषाणी मुस्कुराहट की रेखाओं में
मैंने अनुराग की कोमल
इबारतों को पढ़ने की कला को
सीख लिया है !
धधकते वीरान मरुथल के
अनन्त विस्तार में चहुँ ओर पसरी
मरीचिका के दर्पण में मैंने
सुरभित सुमनों से युक्त हरी शाख पर
अपने सुकुमार से नेह नीड़ के
झिलमिलाते प्रतिबिम्ब को
ढूँढ लिया है !
सच तो यह है कि अब मैंने
हर हाल में जीना सीख लिया है
क्योंकि जीवन है
तो कुछ हासिल भी है
वरना मृत्यु का तो अर्थ ही
सब कुछ यहीं छूट जाना है !
साधना वैद
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