आओ
ना,
भोर
की सुनहरी आभा से
धरती
और आकाश
उजागर
हो चुके हैं !
चलो
मिल कर गायें
कुछ
सुरीले गीत !
भर
दें इस संसार को
संगीत
की अलौकिक
मधुर
स्वर लहरियों से !
भर
लें अपने
मन और आत्मा में
मन और आत्मा में
यह
दिव्य उजास
जो
हमारे उर अंतर के
कोने-कोने
को जगमगा दे
और
नाप लें अपने
नन्हे-नन्हे
पंखों से
यह
गगन विशाल कि
आँखों
में समाया हर स्वप्न
साकार
होने के लिये
नव
ऊर्जा से स्फुरित हो
प्राणवान
हो सके !
चलो
ना,
भर
लें उड़ान !
साधना
वैद
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